सौहार्द के लहू ने लिखी इंसानियत की इबारत
गया। लहू तो लहू होता है, उसकी कोई जात नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता। बस, एक रंग कि वह जीवन देता ह
गया। लहू तो लहू होता है, उसकी कोई जात नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता। बस, एक रंग कि वह जीवन देता है। सोमवार को जब मो. हंजला अनुपमा वर्मा को रक्तदान कर रहे थे तो यह महज रक्तदान भर नहीं था, इसमें एक संदेश था। सौहार्द का लहू इंसानियत की इबारत लिख रहा था। हमारे समाज की संवेदना और भाईचारे की परिभाषा गढ़ रहा था।
फल्गु नदी के पूर्वी तट पर बसा है एक मोहल्ला मोरिया घाट। मो. हंजला वहीं के रहने वाले हैं। अनुपमा वर्मा एक प्रौढ़ महिला हैं, जिन्हें रक्त की जरूरत पड़ गई। वे माड़नपुर बाइपास की रहने वाली हैं। अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें तत्काल रक्त की जरूरत पड़ गई। इस आशय की जानकारी सोशल मीडिया पर दी गई।
मो. हंजला को जैसे ही यह जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत अनुपमा वर्मा के पुत्र महेंद्र प्रसाद को फोन किया और अस्पताल पहुंच गए। उन्होंने अनुपमा को एक यूनिट रक्त देकर उनकी जिंदगी बचाई। महेंद्र ने कहा कि रक्त चढ़ाने के बाद डॉ. श्याम रजक और डॉ. कृष्णा प्रसाद से मां के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अब हीमोग्लोबिन ठीक है। वे अच्छा महसूस कर रही हैं।
महेंद्र प्रसाद ने इससे पहले खुद ही रक्त दिया था। वे बताते हैं, इस बार डॉक्टर ने फिर जरूरत बताई तो उन्हें औरों का सहारा लेना पड़ा। इसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया। मो. वशीम नैयर ने रक्त की आवश्यकता के संबंध में वाट्सएप ग्रुप पर सूचना डाली। मो. हंजला को जानकारी मिली। धामीटोला रोड के एक मार्केट में उनकी आर्टिफिशियल ज्वेलली की दुकान है। उन्होंने तुरंत संपर्क किया। इससे पहले भी 2016 में एक बहन के लिए रक्तदान कर चुके हैं। जब किसी को रक्त की जरूरत होती है तो वे निकल पड़ते हैं।
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हर व्यक्ति को समय-समय पर रक्तदान करते रहना चाहिए। इसके कई फायदे हैं। रक्तदान जात-पात और धर्म से उपर है। किसी की जिंदगी बचाना हर मनुष्य को अपना कर्तव्य समझना चाहिए।
मो. हंजला, मोरियाघाट, गया