गाय की पूंछ पकड़कर पितरों को कराया वैतरनी पार
गया। विश्व प्रसिद्ध राजकीय पितृपक्ष मेला-2016 में गुरूवार को वैतरणी तालाब में पिंडदानियों ने पिंड
गया। विश्व प्रसिद्ध राजकीय पितृपक्ष मेला-2016 में गुरूवार को वैतरणी तालाब में पिंडदानियों ने पिंडदान करने के उपरांत पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए गाय दान किया। उस समय बहुत से पिंडदानियों ने गाय को सिर को पकड़कर रोते बिखलते व भावुक हुए देखा गया। कुछ पिंडदानी इस बात से खुश थे कि अब उनके पितरों को इहलोक से परलोक चले जाएंगे। सभी पिंडदानियों ने गाय की पूंछ पकड़े हुए थे और पंडितजी मंत्रोच्चारण कर रहे थे। यहां की ऐसी मान्यता है कि जिनकी मौत शास्त्रादि व अकाल होती है। वैसे पितरों के परिवार के सदस्य वैतरणी तालाब में आकर स्नान करते है और पिंडदान करने के साथ ही गाय का दान करते है। परंतु, वैतरणी में स्नान करने वाले पिंडदानियों की संख्या गुरूवार को बहुत ही कम थी। चूंकि, एक तो वैतरणी तालाब में बहुत ही ज्यादा पानी थी और दूसरी बात थी कि लगभग सभी पिंडदानी अपने होटल, डेरा व जहां ठहरे हुए थे। वहीं से स्नान करके पिंडदान करने के लिए यहां आए हुए थे। इस कारण पिंडदानियों ने स्नान करने की जगह शरीर पर सिर्फ तालाब के पानी को ही छिकड़ लिया और पिंडदान करने के लिए बैठ गए। वैतरणी तालाब में पानी ज्यादा होने के कारण माईक से बार-बार बोला जा रहा था कि पिंडदानी तालाब में प्रवेश नहीं करें।
--
गाय की पूछ पकड़कर पितरों को कराया वैतरनी पार
--
किताबों में ऐसा उल्लेख है कि यमराज के दरवाजे पर महाघोर वैतरणी है और त्रैलोक्य में जो विद्युत वैतरणी है। वहीं गयाजी में अवतीर्ण हुई है। मुक्ति की ईच्छा रखने वाले हजारों ऋ्िरष मुनी ने वैतरणी पार किया था। उस समय से अभी तक यहां पर हर साल लाखों पिंडदानी आकर पिंडदान करने के बाद गाय दान जरूर करते हैं।
--
21 पीढ़ी का होता है उद्धार
--
वैतरणी में स्नान करने से श्राद्ध कर्मकांड करने वाले पिंडदानी के 21 पीढि़यों तक का उद्धार होता है। गाय दान करते समय पिंडदानी के हाथों में चांदी, सोना, तांबा, तिल, कुश जो सुलभ हो उसे जरूर रखना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि खाली हाथ किया गया तर्पण व पिंडदान स्वीकार नहीं किया जाता है।
एक ही गाय को कई पिंडदानियों ने किया दान
--
वैतरणी तालाब पर पिंडदान करने के साथ ही गाय दान करने का भी विधान है। यहां पिंडदानियों ने तो गाय का दान किया। परंतु, गाय की कमी होने के कारण उसी गाय को दुबारा फिर से बांध दिया गया। जो पिंडदानी नहीं जान पाए कि जो गाय वह दान करने वाले हैं। उसे पहले से ही दान किया जा चुका है। ऐसे हालत में उसी गाय को खरीद कर दान कर दिया गया। कई बार तो एक गाय को तीन से चार बार दान करते हुए देखा गया। गाय को भारतीय महिला की तरह सजाया गया था। जिस प्रकार एक औरत साड़ी पहनकर रहती है। गले में हार की जगह घूंघरू थे। पिंडदानियों ने फूल की माला पहनाया। और गाय के पछड़े को भी नहला कर कपड़ा पहनाकर कपड़ा गया था। गाय व बछड़े का यह रूप देखने में काफी सुंदर लग रहा था।
--
मार्कंडेय मंदिर में शिव का किया पूजा
--
वैतरणी तालाब पर सारे कर्मकांड करने के बाद पिंडदानी मार्कंडेय मंदिर में जाकर भगवान शिव का दर्शन किया। पिंडदान करने के बाद शिव का दर्शप करना अनिवार्य माना गया है। इस मंदिर में भी पिंडदानियों को पिंडदान करते हुए देखा गया। इस मंदिर में काफी संख्या में पिंडदानियों की भीड़ पिंडदान व दर्शन करने के लिए देखने को मिली।