इलेक्शन की सवारी ट्रैक्टर
गया। लोक सभा और विधान सभा के चुनाव के बाद अब पंचायत चुनाव में भी ट्रैक्टर इलेक्शन का प्रमुख सवारी बन
गया। लोक सभा और विधान सभा के चुनाव के बाद अब पंचायत चुनाव में भी ट्रैक्टर इलेक्शन का प्रमुख सवारी बना है। कलस्टर और बूथों तक मतदान कर्मियों और पुलिस कर्मियों को पहुंचाने के लिए जिन वाहनों का प्रयोग इस चुनाव में किया गया है उनमें सर्वाधिक 98 ट्रैक्टर गाड़ी हीं शामिल है। चुनाव में ट्रैक्टर का प्रयोग करना कई सवाल खड़ा कर रहा है। कृषि और माल ढुलाई कार्य के रूप में प्रयोग आने वाला ट्रैक्टर को चुनाव जैसे संवेदनशील कार्यो में लगाने का क्या औचित्य है। बात गले नही उतरती। एक तरफ सरकार और उनके नुमाईन्दे पुरे बिहार में चिकनी और चौड़ी सड़कों का जाल बिछाने का दावा करने से नही थकती है। तो उन सड़कों पर उबड़-खाबड़, नदी नाले और खेत खलियान की लोकप्रिय सवारी ट्रैक्टर को चुनाव कार्य में लगाना और मतदान कर्मियों के साथ सुरक्षा बल को सवारी कराना विरोधाभास उत्पन्न कर रहा है।
मतदान के दौरान प्रशासनिक अधिकारियों को भी किसी आपात स्थिति में घटना स्थल तक पहुंचने के लिए ट्रैक्टर के हवाले कर दिया जाता है। जबकि मतदान कर्मियों को बूथ तक पहुंचाने और मतदान के बाद मतपेटी तथा मतदान कर्मियों को वज्रगृह तक वापस लाने के लिए ट्रैक्टर को लगाया जाना इंगित करता है कि या तो क्षेत्र में सड़कों का निर्माण बिल्कुल नही हुआ है अथवा अत्यंत जर्जर स्थिति में है। या मतदान कर्मियों की जान की किमत निर्वाचन आयोग, सरकार और प्रशासन की नजर में बहुत हीं सस्ती है। नक्सली ईलाकों में भी मतदान कर्मियों को लाने ले जाने के लिए ट्रैक्टर का प्रयोग किया जाना सरकार की इसी मंशा को पुष्ट करती है।