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..तब शंकराचार्य मठ होगा आकर्षण का केन्द्र

[विनय कुमार मिश्र]गया: बोधगया के पावन निरंजना नदी के तट पर स्थित आद्यशंकराचार्य के दशनामी संप्रदा

By Edited By: Published: Mon, 18 Apr 2016 07:07 PM (IST)Updated: Mon, 18 Apr 2016 07:07 PM (IST)
..तब शंकराचार्य मठ होगा आकर्षण का केन्द्र

[विनय कुमार मिश्र]गया:

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बोधगया के पावन निरंजना नदी के तट पर स्थित आद्यशंकराचार्य के दशनामी संप्रदाय के गिरिनामा सन्यासियों का मठ जल्द ही आकर्षण का केन्द्र बनेगा। जर्जर व विरान मठ के जीर्णोद्धार व विकास की जिम्मेवारी बोधगया महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति ने उठायी है। और इसका प्राक्कलन तैयार कराया है। प्राक्कलन के अनुसार लगभग साढ़े तीन लाख का व्यय जीर्णोद्धार व विकास कार्य पर आएगा। इसके निमित हाल के दिनों में समिति के पदेन अध्यक्ष सह जिलाधिकारी कुमार रवि ने महंथ रमेश गिरि को 2 लाख रुपये का चेक प्रदान किया। ताकि कार्य आरंभ हो सके। यहां यह बता दें कि बोधगया मठ वर्तमान में बिहार धार्मिक न्यास परिषद के अधीन है। लेकिन परिषद भी इस प्राचीन धरोहर की सुध नहीं ले रहा। नतीजतन शंकराचार्य मठ दशकों से उद्धारक की बाट जोह रहा है।

शंकराचार्य मठ का गौरवशाली इतिहास रहा है। कभी सैकड़ों लोगों का भरण-पोषण इस मठ से होता था। और तो और मठ द्वारा स्थापित श्री महंथ शतांनद गिरि हरिहर संस्कृत महाविद्यालय में अध्ययन करने वाले छात्रों द्वारा प्रात: व संध्या बेला में मंत्रोच्चार के बीच की जाने वाली मंगल आरती की चर्चा दूर तक होती थी। मठ परिसर में आज भी मौसमीय फलों और औषधिय पौधे की भरमार है। मठ प्रबंधन ने कई शैक्षणिक संस्थान खोलने के लिए सैकड़ों एकड़ भूखंड दान में दिए। लेकिन भूमि को लेकर ही 1975 में भूमि मुक्ति आंदोलन भी झेला। जिसके बाद मठ के पास रहे अधिकांश जमीन सिलिंग एक्ट के तहत गरीबों व भूमिहीनों में बांट दिया गया। मठ के भूखंड पर मगध विश्वविद्यालय, गया कालेज गया, अनुग्रह मेमोरियल कालेज गया, शेरघाटी में कालेज, सुलेबट्टा, फतेहपुर व डोभी का उच्च विद्यालय स्थापित है। इस मठ से न सिर्फ सनातन धर्मी बल्कि बौद्धों का भी इतिहास जुड़ा है। मठ के आतंरिक भाग में भगवती अन्नपूर्णा व महादेव नाथ सहित ठाकुरबारी में अनवरत जलता घृत का दीप दर्शनीय है। वहीं, मठ के दक्षिणी भाग में जिसे बारहदरी कहा जाता है। वहां से म्यांमार के राजा मिंडुमिन का इतिहास जुड़ा है। कहा जाता है कि विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य के क्रम में राजा मिंडुमिन इस बारहदरी में रहकर कार्य का निरीक्षण करते थे। बारहदरी के एक छोटे से मंदिर में सफेद पत्थर पर वर्मी लिपी में कुछ अंकित है। जिसे गतेक दिनों म्यांमार के पुरातत्वविद् व इतिहासकार देखने आए थे। इतना ही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की पुत्री भी अपने शोध कार्य के क्रम में इस मठ व बारहदरी का भ्रमण कर चुकी हैं।

21 जनवरी 2012 को मठ के अतीत की गौरवशाली परंपरा जीवंत होने की उम्मीद जगी। उस दिन मठ के इतिहास के लिए ऐतिहासिक दिन था। जब आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर का मठ परिसर में कदम पड़ा था। अपेक्षा से हटकर श्री श्री ने तत्कालीन महंथ दिवंगत सुदर्शन गिरि को मठ की रक्षा और विकास का भरोसा दिलाया था। उन्होंने महंथ से कहा था-'आप चाहें तो कुछ शिष्य हमे दें। हम उन्हें वेद मर्मज्ञ बनाकर वापस आपके मठ को देंगे।' श्री श्री पहले व्यक्ति रहे जिन्होंने मठ को कुछ देने की बात कही थी। अन्यथा सभी ने मठ से कुछ न कुछ लिया ही।

19 अप्रैल 2014 को कथावाचक श्री मोरारी बापू का कदम मठ में पड़े। उन्होंने वर्तमान महंथ रमेश गिरि से मठ के गौरवशाली अतीत की जानकारी प्राप्त की और मठ के विकास हेतु हरसंभव मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने प्रसाद स्वरूप मठ से एक रोटी भी मांगी थी। आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक व मोरारी बापू के आगमन और आश्वासन का फलाफल आज तक दृष्टिगत नहीं हुआ। हालांकि इसके लिए मठ प्रबंधन ने भी कोई ठोस पहल नहीं की। अंतत: पर्यटन को बढ़ावा देने के मद्देनजर महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के सदस्यों ने मठ के जीर्णोद्धार कर आकर्षक बनाने का निर्णय लिया। भविष्य में जीर्णोद्धार व विकास कार्य को मूर्तरूप दिए जाने के पश्चात शंकराचार्य मठ बोधगया स्थित अन्य बौद्ध दर्शनीय स्थल की भांति आकर्षण का केन्द्र होगा।


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