ज्ञान की देवी संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करती
[विनय कुमार मिश्र] बोधगया (गया): माता सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। जिनकी आराधना न सिर्फ पढ़ने वाले छात
[विनय कुमार मिश्र] बोधगया (गया): माता सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। जिनकी आराधना न सिर्फ पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं व पढ़ाने वाले शिक्षक करते हैं। बल्कि साहित्य व कला से जुड़ाव रखने वाले भी करते हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल बोधगया के पूरब दिशा में बकरौर पंचायत अंतर्गत मुहाने नदी के तट पर स्थित प्राचीन सरस्वती मंदिर न सिर्फ ज्ञान बल्कि संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करने के लिए ख्यात हैं। इस मंदिर की महत्ता की चर्चा कई भारतीय धार्मिक ग्रंथों में उद्धृत है। मंदिर से कुछ दूर उत्तर दिशा में दो नदी क्रमश: निरंजना व मुहाने का संगम स्थली है। धर्मग्रंथों व धर्मावलंबियों के मान्यता के अनुसार जहां दो नदियों की धाराएं एक स्थल पर मिलती है, वहां अंतर धारा 'सरस्वती' स्वरूप सम्मिलित हो जाती है। इसी मान्यता के आधार पर सोमवती (सोमवारी) अमावस्या के दिन इस स्थल का दर्शन, स्नान, दान, पूजा-पाठ करने की प्रथा है।
चौकोर कमरेनुमा मंदिर के अंदर मां सरस्वती की लगभग चार फीट दुर्लभ काले पत्थर की मूर्ति पूरब मुख की स्थापित है। मां सरस्वती की यह प्रतिमा अष्टभूजी है। और प्रतिमा के बांये हाथ में वीणा जैसी कोई वस्तु और दांये हाथ में पुस्तक दृष्टिगत होती है। पत्थर की मूर्ति में मां सरस्वती के गले और हाथ की कलाई पर आभूषण भी दिखाया गया है। मंदिर से सटे उत्तर दिशा में कई शिवलिंग और एक चरण चिन्ह स्थापित है।
मंदिर की महता को वर्षो पूर्व बोधगया स्थित आदि शंकराचार्य मठ द्वारा उजागर किया गया था। और मंदिर सुरक्षित रखने हेतु चारदिवारी के साथ-साथ एक धर्मशाला का निर्माण कराया गया था। जिसका अब अवशेष अवलोकित होता है। आज भी मंदिर की देखरेख से लेकर पूजा के पुजारी की तैनाती मठ प्रबंधन द्वारा किया गया है। मंदिर के बाहर एक महिला सालों भर फूल की टोकरी लेकर बैठी श्रद्धालुओं को राह तकती है। महिला सुमित्रा देवी कहती है आम दिनों में इक्का-दुक्का, बसंत पंचमी व सोमवारी अमावस्या के अलावे पितृपक्ष मेला में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। क्योंकि पितृपक्ष में इस नदी के तट पर तर्पण का विधान धर्मशास्त्रों में अंकित है।
जानकार बताते हैं कि यह जिले का इकलौता प्राचीन सरस्वती मंदिर है। लेकिन इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आज भी रास्ता सुगम नहीं है। जिसके कारण मंदिर उपेक्षित है। गत वर्ष से बौद्ध महोत्सव के दौरान ज्ञान यात्रा की शुरूआत की गयी। इस यात्रा में शामिल श्रद्धालु ढुंगेश्वरी से चलकर इसी मार्ग से होते हुए बोधगया तक जाते हैं। उस वक्त मंदिर तक मार्ग सुलभ कराने की घोषणा हुयी थी। लेकिन एक वर्ष बाद भी कोई ठोस पहल नहीं दिखता।