मिनी इंडिया के लुक में दिख रहा गयाजी
गया। ¨हदुओं की प्रसिद्ध तीन तीर्थ स्थलों में गया, काशी और प्रयाग है। विश्व प्रसिद्ध राजकीय पितृपक्ष
गया। ¨हदुओं की प्रसिद्ध तीन तीर्थ स्थलों में गया, काशी और प्रयाग है। विश्व प्रसिद्ध राजकीय पितृपक्ष मेला ऐसा मेला है जहां देश के ही नहीं बल्कि विदेशी भी यहां अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए आते है। 27 सितम्बर से शुरू हुए पीपी मेला में देश के सभी राज्यों के पिंडदानी आकर अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए गयाजी के पिंडवेदियों पर पिंडदान व तर्पण कर रहे है। पौराणिक गया शहर 17 दिनों के लिए पूरी तरह से मिनी इंडिया के लुक में दिख रहा है। पितृपक्ष मेला के दौरान गयाजी में देश के कोने-कोने से लोग आकर अपने भाषा का इस्तेमाल कर रहे है। साथ ही उनकी वेशभूषा भी यहां के लोगों से बिल्कुल अलग-थलग है। बंगाली पिंडदानियों की भाषा बंगला होने के साथ सेठ साहुकार सिर पर टोपी जरूर लगाये रहते है। राजस्थान से आये महिला पिंडदानियों की भाषा में परिवर्त्तन होने साथ ही हाथ, पैर, गले में बडे़-बड़े जेवरात होते है। तमिलनाड़ु से आये हुए पिंडदानी सर्ट या कुर्ता के साथ ही धोती का होना जरूरी है। इनकी भाषा भलें ही यहां के लोगों के समक्ष में नहीं आए। परंतु, व्यापारी व पंडाजी को इनकी भाषा खूब समझ आती है। व्यापारी पहले पिंडदानी की भाषा को समझता है और उसके बाद उसकी भाषा को समझकर उसका सामान पैक करता है।
---
पिंडदानी के भाषा में होता है पिंडदान
---
गयाजी में सभी राज्यों के पिंडदानियों के लिए पंडाजी है। आजकल गया में जम्मू काश्मीर, असम, राजस्थान, केरल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल के अलावे देश के सभी जगहों के लोग आए हुए है। यहां पर हर प्रकार की भाषा बोलते हुए लोगों को देखा जा रहा है। जिस राज्य के पिंडदानी पिंडदान व कर्मकांड करने के लिए आते है। पंडितजी द्वारा उसी के भाषा में पिंडदान करवाया जा रहा है। पूरा गया वैदिक मंत्रोचारण से गूंज रहा है।
---
सबकी अभिलाषा पितरों को मिलें मोक्ष
---
भगवान गौतम बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया व विष्णु की नगरी को मोक्ष धाम के नाम से भी जाना जात है। ऐसी मान्यता है कि अगर किसी की मौत हो गई और उसकी मौत के बाद आत्मा भटकती है। अगर उसके परिवार का सदस्य गयाजी में आकर पिंडदान करता है। तो भटकती आत्मा को मोक्ष मिल जाती है। भटकती आत्मा को मोक्ष मिलने के साथ ही जो पिंडदान व तर्पण करता है उसके घर में एक साल तक दु:ख व कष्ट नहीं आता है। इसकी अभिलाषा होती है कि पितरों को मिल जाये मोक्ष।
---
महिलाएं भी करती है पिंडदान
मर्यादा पुरूषोतम भगवान श्रीराम वनवास यात्रा के दौरान पिता राजा दशरथ की मौत के बाद भाई लक्ष्मण व पत्नी सीता माता के साथ पिंडदान करने के लिए गया पहुंचे। पिंडदान की सामग्री के लिए भगवान राम व लक्ष्मण गया नगर की ओर चल दिया। पिंडदान करने का समय बितता जा रहा था और इसी बीच स्व राजा दशरथ की आत्मा पिंडदान मांग दी। तब सीता मां ने फल्गु, केतकी के फूल, गया व वट के वृक्ष को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर पिंडदान की थी। उस समय से यहां महिलाओं ने भी पिंडदान करने का विधान है।
---
हर राज्य के अलग धर्मशाला व पंडाजी भी
--
जिस राज्य के पिंडदानी आते हैं। उस जगह के अलग-अलग पंडाजी होते है। पंडाजी के साथ ही धर्मशाला भी अलग है। परंतु, पिंडदानियों की जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती है होटल में भी पिंडदानियों को ठहरना पड़ता है।