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शहर के छवि बिगाड़ता बाईपास का फुटपाथ

गया। शहर में दक्षिणी इलाके से प्रवेश करते हैं, तो पहले बाईपास पर अवैध रूप से संचालित फुटपाथी स्वा

By Edited By: Published: Mon, 29 Jun 2015 10:07 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jun 2015 10:07 PM (IST)
शहर के छवि बिगाड़ता बाईपास का फुटपाथ

गया। शहर में दक्षिणी इलाके से प्रवेश करते हैं, तो पहले बाईपास पर अवैध रूप से संचालित फुटपाथी स्वागत करते हैं। बोधगया और विष्णुपद मंदिर जाने का प्रमुख मार्ग बाईपास है। बाईपास होकर ही प्रतिदिन दर्जनों की संख्या में देशी व विदेशी पर्यटकों की बसें गुजरती है। उस बस पर बैठे पर्यटक सोचते हैं कि यह कैसे शहर है, जहां प्रवेश द्वार पर इतनी अव्यवस्था है, तो शहर के अंदर का हाल इससे भी बुरा होगा। ऐसा विचार उनके मन जरूर आता है। कारण तीर्थयात्री विष्णुपद मंदिर जाने के लिए बाईपास मार्ग का सहारा लेते हैं। कुछ यात्री वाहन मंदिर जाने से पहले यहां पर कुछ समय के लिए रूकते हैं। निश्चित तौर यह बाईपास पर बसे फुटपाथ शहर पूरी छवि को बिगाड़ने का काम कर रही है। यहां पर तो बाईपास सड़क को पूरी तरह अतिक्रमित कर दर्जनों की संख्या में सब्जी एवं अन्य दुकान लगाई जाती है। इनका यहां अपना साम्राज्य चलता है। चाहे कुछ भी हो जाए इसे हटाने के लिए प्रशासन प्रयास तक नहीं करता है। चाहे जो भी प्रशासन के नाकामी की वजह से यहां अतिक्रमण के साथ-साथ जाम भी लगता है।

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गया-बोधगया जाने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या टेम्पो भी बेतरीव तरीके से खड़े किए जाते हैं। ऐसे में एक तरफ फुटपाथ को अतिक्रमित सब्जी मंडी तो सड़क पर कब्जा कर टेम्पा लगाए जाते हैं। इस विषम परिस्थिति में बेचारे आम राहगीर चले तो कहां चले। उनके चलने के लिए इन अतिक्रमणकारियों ने कोई जगह नहीं छोड़ी है। पैदल चलने वाले स्थान पर फुटपाथी ने कब्जा जमा लिया है। इस वजह से पैदल चलने वाले वाहन के बीच में सड़क के बीच चलने को मजबूर है। सड़क के बीच में चलने के कारण कई बार सड़क हादसा भी होती है। फिर भी फुटपाथ को हटाने की जरूरत नहीं समझी जाती है।

डोभी की ओर से आने बड़े वाहन जो नवादा जाती है। वैसे वाहन बाईपास होकर गुजरती है। इन अतिक्रमणकारियों के कारण बाहर आने वाले बड़े जाम में फंस जाते हैं। इस निजात जिला प्रशासन की ओर नहीं निकला जाता है। अगर प्रशासन चाहे तो आम लोगों को पैदल चलने का अधिकार यानि फुटपाथ दिला सकती है। परन्तु इस बारे में प्रशासन और नगर निगम के अधिकारी सोचते कहां है। उनके नहीं सोचने की वजह से आम आदमी परेशानी को झेल रहे हैं।


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