पिंड से राशि उगाही की परंपरा बरकरार
कमल नयन, गया
शब्दों के झमेले में मत पड़िए। 'कर' या 'टैक्स' दोनों एक है। लेकिन इसे पितृपक्ष मेले में कहीं से प्रयोग नहीं किया जाता है। राशि की वसूली होती है। कहीं स्वेच्छा से तो कहीं कूपन काटकर। पिंड की गणना के मुताबिक शुल्क का निर्धारण करना और उसे वसूलना मेले में एक आम बात है। ऐसी बात नहीं कि वसूली की यह शुरूआत आज की है। पौराणिक काल से चले आ रहे इस मेले में पूर्वजों ने भी पिंडदान के कर्मकांड में पिंड के लिए राशि चुकता की होगी। ऐसा उदाहरण पुस्तकों में है। लेकिन अब यह सिस्टम बदल गया है। यहां अब कर की वसूली नहीं होती। भले, इसे मंदिर के व्यवस्था हेतु राजभोग के लिए सहयोग के रूप में ली जाती है। खासियत यह है कि यह राशि यजमान से नहीं बल्कि कर्मकांड कराने वाले पुरोहित से ली जाती है, जो गयापाल पंडा के प्रतिनिधि होते हैं।
विष्णुपद क्षेत्र में पिंडदानियों के कर्म कराने वाले पुरोहित से प्रति पिंड 5 रुपये की वसूली होती है। विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष कन्हैया लाल मिश्र बताते हैं कि यह तो मंदिर की व्यवस्था के लिए बना है। इसमें कोई हर्ज भी नहीं है। चूंकि जो पुरोहित कर्मकांड कराते हैं उनसे यह राशि ली जाती है और यह पूरे गयापाल समाज की जानकारी में होता है। साल भर मंदिर की व्यवस्था इसी राशि से की जाती है। मंदिर के पास अलग से कोई और आय का स्रोत नहीं है।
यह तो बात हुई विष्णुपद क्षेत्र की। अलग-अलग वेदियों पर भी कुछ ऐसी ही व्यवस्था है। प्रेतशिला और ब्रह्माकुंड की स्थिति कुछ अलग है। यह धामी पंडों का क्षेत्र माना जाता है। जो यजमानों से सीधे नहीं बल्कि पुरोहित के माध्यम से राशि चुकता कराते हैं। अक्षयवट में भी मिली-जुली व्यवस्था है। इससे साफ होता है कि वर्षो से चल रही पिंड की गणना के आधार पर राशि लेने का सिस्टम सिर्फ रूप बदल रहा है। इसे अब कर भले नहीं कहे लेकिन चुकता तो होता ही हैं।
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यात्री से वसूला जाता सेवा शुल्क
गया: प्रशासन के नियंत्रण में चलने वाली 'संवास सदन समिति' के द्वारा भी विभिन्न तरीके से शुल्क वसूले जाते हैं। वाहन द्वारा आने वाले यात्रियों से बड़ी बस 250 रुपये, छोटी गाड़ी 100 और 50 रुपये की दर से वसूली की जाती है। इसे समिति ने 'सर्विस फी' नाम दिया है। इस सर्विस फी को लेकर मामला उच्च न्यायालय तक गया है। इतना ही नहीं, यात्रियो के आवासन स्थल पर व्यवस्था के लिए प्रति यात्री 1 रुपये की वसूली होती है। यह राशि भी समिति के खाते में जाती है। जिसे कई पंडा समाज प्रशासन द्वारा 'कर' वसूली मानते हैं। गयापाल पंडों को तो परिचय पत्र बनाने तक के लिए राशि समिति को देनी पड़ती है। रेल से आने और जाने वाले यात्रियों को पितृपक्ष मेले के दौरान 'मेला सरचार्ज' के रूप में 5 से 25 रुपये तक प्रति यात्री लिया जाता है, जो समिति के खाते में जाता है।
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श्रीविष्णु के पास 'लक्ष्मी' का झगड़ा
गया : विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में स्थित 'श्रीपाद' का श्रृंगार प्रतिदिन संध्या बेला में किया जाता है। चंदन और रोली से सजे चरण को मलमली कपड़े पर छाप उतारने का निर्धारित शुल्क तो नहीं है, लेकिन इसे लिया जाता है। जो श्रद्धालु थोड़ा भी आनाकानी करते हैं तो उन्हें युवा पंडों की झिड़की सुननी पड़ती है। वैसे एक छाप का दर 120 रुपये बुधवार की शाम देखा गया। प्रबंधकारिणी समिति के सचिव गजाधर लाल पाठक कहते हैं कि यह गलत है। अगर ऐसा होता है, तो उस पर वे रोक लगाएंगे।