आबादी व क्षेत्रफल बड़ा, पर नहीं मिला थाने का दर्जा
संवाद सूत्र, मोहनपुर (गया) : शेरघाटी अनुमंडल का अतिनक्सल प्रभावित सबसे बड़ा थाना क्षेत्र सह प्रखंड मोहनपुर को 35 वर्षो बाद भी मूल थाना का दर्जा प्राप्त नहीं है। यह थाना ओपी के रूप में कार्यरत है। इस क्षेत्र की प्राथमिकी वैधानिक रूप से बाराचट्टी में दर्ज की जाती है।
प्रयाप्त जगह के बावजूद थाना का कोई अपना भवन नहीं है। फलस्वरूप प्राथमिक स्वास्थ केंद्र मोहनपुर के आवासीय परिसर के एक हिस्से में संचालित है। कार्यरत पुलिस क्रमियों को प्राय: प्रयाप्त संसधान का अभाव है। यही कारण है। उग्रवाद प्रभावित उक्त थाने की पुलिस अपराधियों के विरूद्व कोई बडी कार्रवाई करने में परहेज करते है। पूर्णत: स्वय महफूज नहीं है। 18 पंचायत के 131 गांव के ढाई लाख से अधिक आबादी वाला थाना अपना मूल अस्तित्व प्राप्त नहीं किया है। थाने का क्षेत्रफल 85,303,80 एकड़ है। आवादी और क्षेत्रफल की दृष्टि से संभवत सबसे बडा उक्त थाने में सुविधाओं का घोर अभाव है। थाना की स्थापना 1979-80 में हुई है। अपना भवन नहीं है। कार्यरत भवन भी रहने योग नहीं है। थाने में कागजात और मलखाने का समान सडने की स्थित में है। कुछ सड़ चुका है। बताया जाता है कि अपना भवन नहीं रहने के कारण मरम्मत का कार्य नहीं हो पा रहा है। वर्तमान थानाध्यक्ष धनन्जय कुमार ने बताया कि क्षेत्र के मुताविक वाहन उपलब्ध नहीं है। शौचालय के अभाव में पुलिसकर्मी खुले मैदान में शौच जाने कोि बिवश है। जनरेटर सुविधा र्है जिससे रौशनी की स्थिति ठिक है। मोहनपुर वासीयो में इसे थाना का दर्जा प्राप्त न होने का अफसोस है। स्थानीय निवासी सुनिल कुमार सिंह, शम्भु नाथ सिंह, भुनेश्वर सिंह, मो. मिनहाज, डा. दिनेश आदि कई बुद्धिजीवियों ने कहा कि अति पिछड़ा होने के कारण राज्य एवं जिला प्रशासन लोगो की भावनाओ को अपेक्षित रख रहे है । पूर्ण थाने के दर्जा देने के लिए वर्ष 2009 में पंचायत सतिति सदस्यों द्वारा प्रस्ताव पारित कर जिला पुलिस प्रशासन को भेजा गया है। परन्तु अबतक पदाधिकारियो का ध्यान इस ओर नहीं गया है।
थानाध्यक्ष धनन्जय कुमार ने बताया कि मूल थाना न होने के कारण जनता को भी प्राथमिकी के कागजात दूसरे या तीसरे दिन मिल पाता है। इसके लिए कोई भी प्राथमिकी दर्ज होने के बाद चौकीदार या पुलिस को बाराचट्टी भेजकर प्राथमिकी दर्ज करायी जाती है। श्री कुमार ने यह भी बताया कि मोहनपुर में थाना बनाया जा रहा है। परन्तु कब अपना भवन मिलेगा यह कहना बहुत मुश्किल है। संसाधन का घोर अभाव है। अतिनक्सल प्रभावित होने के बावजूद भी वाहन की कमी खटकती है।