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मोक्ष की प्राप्ति भारतीय दर्शन का मूल उददेश्य : वीसी

परलोक के संबंध में भी विस्तार से चर्चा है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Mar 2017 03:03 AM (IST)Updated: Sun, 26 Mar 2017 03:03 AM (IST)
मोक्ष की प्राप्ति भारतीय दर्शन का मूल उददेश्य : वीसी
मोक्ष की प्राप्ति भारतीय दर्शन का मूल उददेश्य : वीसी

दरभंगा। भारतीय दर्शन में इस जगत की व्याख्या के साथ ही परलोक के संबंध में भी विस्तार से चर्चा है। चारों पुरूषार्थों में श्रेष्ठ व महत्वपूर्ण मोक्ष है। दर्शन में जीव की दु:ख निवृति के लिए ही मोक्ष की राह दिखाई गई है। कामेश्वर ¨सह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग की ओर से आयोजित संगोष्ठी के उदघाटन संबोधन में वीसी डॉ. विद्याधर मिश्र ने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि धर्म, अर्थ व काम की प्राप्ति करते हुए मोक्ष की ओर हमारी प्रवृति हो यही भारतीय दर्शन का मूल उददेश्य है। इस व्याख्यान से प्रतिभागी सहित समाज के लोगों को काफी लाभ होगा। भारतीय दर्शन में मुक्तिवाद पर बतौर मुख्यवक्ता अपना विचार रखते हुए काशी ¨हदू विवि के प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कांत शर्मा ने कहा कि दु:खों से निवृति होने में ही दर्शनों की प्रवृति रही है। प्रत्येक संसारी जीव दु:खों से छुटकारा पाने की चेष्टा करता है। त्रिविध दु:खों की निवृति को सांख्य दर्शन में अपवर्ग की संज्ञा दी गई है। ताकि फिर से उन दु:खों की आवृति न होने पाए। सांख्य दर्शन में दो प्रकार जीवन मुक्ति व विदेह मुक्ति की बात कही गई है। बीएचयू के प्रो. कमलेश झा ने कहा कि वेदश्रुति व तंत्रश्रुति को ही अवलंब करके दर्शन की उत्पति हुई है। इन सभी दर्शनों में कहीं भी विरोध् नहीं है। उन्होंने शैव दर्शन पर अवलंबित तत्व को प्रस्तुत करते हुए कहा कि परमेश्वर भाव में साधना के बल पर ऊपर बढ़ना ही मोक्ष है। पूर्व कुलपति डॉ. उपेंद्र झा ने कहा कि वेद ने सारे संसार को एक ही आत्मा बताया है। सारी सृष्टियों के मूल में एक ही तत्व है। अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. भगीरथ मिश्र ने कहा कि जितने दर्शनशस्त्र हैं उनमें दु:ख निवृति को ही मोक्ष कहा गया है। इन मुक्ति के लिए उपासना की परमावश्यकता है। विषय प्रवर्तन के क्रम में विभागाध्यक्ष डॉ. बौआनंद झा ने कहा कि पुरूषार्थ में मोक्ष की महत्ता है। मोक्ष ही स्वतंत्रता है। बंधन को परतंत्रता माना गया है। मुक्ति का साधन ज्ञान है। मुक्ति के संबंध में आधुनिक भैतिकवादी की मान्यता पर भी विस्तार से इन्होंने अपने विचार रखे। मौके पर प्रो. कालिका दत्त झा, प्रो. फूलचंद्र मिश्र रमण, प्रो. विद्येश्वर झा, डॉ. सुधीर कुमार झा, डॉ. नंद किशोर चौधरी, प्रो. अमर नाथ झा आदि ने अपने विचार रखे। संगोष्ठी के प्रारंभ में वैदिक व लौकिक मंगलाचरण क्रमश: अखिलेश तथा प्रमोद कुमार ने किया।


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