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आओ खेलें परीक्षा का खेल

मेरे आंगन में परीक्षा का माहौल है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 27 Feb 2017 03:03 AM (IST)Updated: Mon, 27 Feb 2017 03:03 AM (IST)
आओ खेलें परीक्षा का खेल
आओ खेलें परीक्षा का खेल

दरभंगा। मैं दरभंगा हूं। अभी भले ही मौसम का मिजाज अनुकूल हो, लेकिन मेरे आंगन में परीक्षा का माहौल है। अभी-अभी इंटरमीडिएट की परीक्षा संपन्न हुई है। दो दिन बाद मैट्रिक की परीक्षा शुरू होगी। थोड़ी राहत के बाद छात्रों के साथ फिर प्रशासनिक तंत्र को भी अग्निपरीक्षा देनी होगी। इंटर की परीक्षा शांतिपूर्ण संपन्न हो गई। काफी राहत मिली। वैसे भी हमारी पहचान शिक्षा व परीक्षा से ही है। यह दीगर बात है कि शिक्षा के मामले में....। वहीं परीक्षा तो होती है। होनी ही है। हां, मैट्रिक व इंटर की परीक्षा तो कमोवेश समय पर ले भी जाती है, लेकिन उच्च शिक्षा की कक्षाओं में परीक्षा से पहले धैर्य की परीक्षा देनी होती है। हाईस्कूलों में तो बच्चों की कोलाहल सुनने को मिलती है, लेकिन कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को अपना हाथ जगन्नाथ का पाठ पढ़ाया जाता है। बच्चों को अपने बूते ज्ञान अर्जन का प्रशिक्षण दिया जाता है। फिर सत्र या कैलेंडर की बात छोड़िए, कभी न कभी न परीक्षा ले ही ली जाती है। खासकर स्नातक की परीक्षा में लेटलतीफी...। नहीं चर्चा मत कीजिए। छोड़िए। परीक्षा हो जाती है, डिग्री मिल जाती है। यही बड़ी बात है। एक ही परिसर में दो-दो विश्वविद्यालय होने का गौरव दरभंगा शहर को प्राप्त है। इसे बिहार ही नहीं, बल्कि भारत में एक बौद्धिक शहर के रूप में नाम है। फिर, नियमित कक्षा की उम्मीद क्यों? खुद के बूते हासिल ज्ञान अथवा परीक्षा के दौरान मिलने वाली राहत के सहारे उत्तीर्ण होइए। खैर अब इसे छोड़िए। यह तो सरकारी संस्थाएं हैं। इसमें आपका क्या जाता है। तैयार रहिए। उन संस्थानों की सेवा के लिए, जो नए सत्र के नाम पर कुछ फरमान जारी करने वाले हैं। किताब, पोशाक, वार्षिक शुल्क, पुनर्नामांकन, वगैरह, वगैरह...। नए अरमान के साथ ये संस्थाएं तैयार हैं। इनका दावा है कि वे सरकारी व्यवस्था से इतर शिक्षादान देते हैं। सरस्वती की कृपा के लिए लक्ष्मी की मदद लीजिए। आदान-प्रदान तो प्रकृति का नियम है। मेरे आंगन में कदम-कदम पर ज्ञान देने वाली पाठशालाएं विविध रूप में हैं। सरकारी विद्यालय, निजी विद्यालय, को¨चग सेंटर की कमी नहीं है। यहां ज्ञान व विज्ञान के सपने दिखाए जाते हैं। लुभावने वादों के बूते नई पीढ़ी को संवारने की कसरत होती है। खैर इन बातों को भी छोड़िए। पिछले दिनों बड़े ही उम्मीद से मेरे लाडलों ने एक प्रतियोगी परीक्षा दी थी। वह रद हो गई। घोर निराशा हुई। मासूम भी मायूस हुए। मै भी दंग हूं। यह क्या हो रहा है? ऐसे में न जाने क्या होगा मेरे नौनिहालों का?


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