अद्भुत! बिहार का एक संग्रहालय, जहां रखी है एक इंच की रामायण, गीता व कुरान
दरभंगा के चंद्रधारी संग्रहालय के विशेष दीर्घा में रखे हैं तीन धार्मिक ग्रंथ- रामायण, गीता कुरान, इन तीनों धार्मिक ग्रंथों की लंबाई और मोटाई मात्र एक इंच है।
यहां कई बहुमूल्य वस्तुएं हैं। सुरक्षा की दृष्टि से आम लोगों की नजरों से दूर रखा गया है। ब्रह्मा का दुर्लभ पांचजन्य शंख है। दाईं ओर मुंह वाला दक्षिणवर्ती शंख है। 24 तरह के डायमंड हैं। एक ऐसी अंगूठी है, जिसको पहनने से शरीर के तापमान की जानकारी मिलती है। हीरा जडि़त शिव विद्या यंत्र, श्रीचक्र, एकमुखी रुद्राक्ष समेत सोने के कई सिक्के हैं।
दरभंगा [मुकेश कुमार श्रीवास्तव]। महज एक इंच की पुस्तक में समाया हुआ है धर्मग्रंथ। रामायण हो या दुर्गा सप्तशती अथवा कुरान, सबका आकार यही है। करीब तीन सौ वर्ष पूर्व प्रकाशित ये पुस्तकें फिलहाल दरभंगा के चंद्रधारी संग्रहालय में संग्रहित हैं। अध्येता इन पुस्तकों को लेंस की मदद से ही पढ़ पाते हैं। यहां कई अन्य दुर्लभ चीजें भी हैं, जिनको देखने से समृद्ध विरासत की स्मृतियां जीवंत हो उठती हैं।
संग्रहालय की विशेष दीर्घा में रखे इन तीनों धार्मिक ग्रंथों की लंबाई और मोटाई मात्र एक इंच है। लेकिन, उनमें रामायण या दुर्गा सप्तशती के सभी अध्याय और कुरान की तमाम आयतें समाहित हैं। लेखक अचलाईनाथ योगी ने पूरे ग्रंथ को इस तरह से समायोजित किया है कि देखने वाले आश्चर्यचकित हो जाते हैं। इनका प्रकाशन बनारस के गोरखानंद पुस्तकालय से हुआ है।
हर आदमी के पास धार्मिक ग्रंथ हो, इसलिए इन्हें छोटे आकार में तैयार किया गया। पिछले चार दशक से कार्यरत शिवेश्वर चौधरी आंगतुकों को इन ग्रंथों की विशेषता बताते हैं। इनकी महत्ता को देखते हुए रासायनिक तरीके से संरक्षित करने की योजना बनी है।
कई हस्तियां आईं हैं देखने
संग्रहालय में देश की कई हस्तियों का आगमन हो चुका है। महाराजा कामेश्वर ङ्क्षसह खुद धरोहरों का अवलोकन कर चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, लोकनायक जयप्रकाश नारायण व उनकी पत्नी प्रभावती, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सह, कर्पूरी ठाकुर, पूर्व राज्यपाल डॉ. एआर किदवई, डॉ. एलपी शाही, जगन्नाथ कौशल आदि इसका मुआयना कर चुके हैं।
1957 में हुई थी स्थापना
चंद्रधारी संग्रहालय की स्थापना 7 दिसंबर 1957 में की गई। पहले मिथिला संग्रहालय नाम पड़ा। बाद में मुख्यदाता मधुबनी जिले के रांटी ड्योढ़ी के जमींदार बाबू चंद्रधारी ङ्क्षसह के नाम पर नामकरण हुआ। उनसे प्राप्त कलाकृतियों व धरोहरों से इसका निर्माण कराया गया है। यहां 11 दीर्घाओं में पुरातात्विक व कलात्मक कृतियां प्रदर्शित हैं। आम दर्शकों के लिए दस से चार बजे तक संग्रहालय खुला रहता है। फिलहाल, कोई शुल्क नहीं लगता।
कहा - संग्रहालयाध्यक्ष ने-
'एक इंच की पुस्तक में धार्मिक ग्रंथों का समावेशन यहीं देखने को मिलता है। दूसरे स्थानों पर ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। हालांकि, इन ग्रंथों को पढऩे के लिए लेंस की जरूरत पड़ती है। इन दुर्लभ ग्रंथों को रासायनिक ढंग से संरक्षित करने की योजना है। उम्मीद है कि शीघ्र यह कार्य कर लिया जाएगा।'
- डॉ. सुधीर कुमार यादव, (संग्रहालयाध्यक्ष, चंद्रधारी संग्रहालय, दरभंगा)