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धर्म से नहीं होता भाषा का नाता

दरभंगा। विश्व पटल पर हमारा देश भारत एक ऐसा अनोखा देश है जिसमें अनेक भाषाएं एक साथ फल फूल रही हैं। सा

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jul 2017 12:58 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jul 2017 01:43 AM (IST)
धर्म से नहीं होता भाषा का नाता
धर्म से नहीं होता भाषा का नाता

दरभंगा। विश्व पटल पर हमारा देश भारत एक ऐसा अनोखा देश है जिसमें अनेक भाषाएं एक साथ फल फूल रही हैं। साथ ही निरंतर इन भाषाओं का विकास हो रहा है। भाषा के मामले में भारत दुनिया का सबसे समृद्ध देश है। एमएलएसएम कॉलेज में आयोजित सेमिनार में गुरुवार को अमेरिका के विद्वान प्रोफेसर एमजे वारसी ने ये बातें कहीं। उन्होंने उर्दू भाषा की समस्या एवं निदान विषय पर बोलते हुए कहा कि भाषा का संबंध किसी धर्म से नहीं होता। क्योंकि भाषा तो किसी खास क्षेत्र की उपज होती है। इसकी किसी जाति और धर्म से रिश्ता नहीं होता। उन्होंने कहा कि उर्दू का क्षेत्र व्यापक है। भूमंडलीकरण के दौर में अन्य भाषाओं की तरह उसके सामने भी

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समस्याएं हैं। इसके निदान के लिए उर्दू भाषियों को बुनियादी शिक्षा पर जोर देना चाहिए। जब किसी भाषा की शिक्षा का आधार मजबूत नहीं होगा उस वक्त तक उसका साहित्य भी सफल नहीं हो सकता। प्रधानाचार्य डॉ. मुस्ताक अहमद ने कहा कि भारत में राजनीति में यहां की भाषाओं को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। उर्दू भी सियासत की शिकार हुई है। उर्दू के संबंध में एक गलतफहमी है वह यह कि यह विदेशी भाषा है। जबकि सच्चाई यह है कि यह भारतीय संस्कृति की उपज है। उर्दू खड़ी बोली की कोख से पैदा हुई है। गंगा और यमुना संस्कृति की यह देन है। इसका प्रमाण यह है कि उर्दू प्रेमचंद, कृष्णचंद्र, गोपीचंद, नारंग, फिराक गोरखपुरी व आनंद नारायण की मातृभाषा उर्दू रही है। उर्दू को मात्र शेरो शहरों की भाषा तक सीमित नहीं करने की अपील उन्होंने की। साथ ही कहा कि उर्दू में आधुनिक तकनीक से संबंधित पुस्तकें उपलब्ध हैं। आवश्यकता है कि उर्दू भाषी उसके लाभ उठावें। प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा ने कहा कि बच्चों को मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाए तो वह कठिन से कठिन विषय को भी समझने में सफल रहेगा मौके पर प्रो. जफर हबीब, प्रो. अनीस साबर आदि ने आलेख पढ़ा। डॉ. सतीश ¨सह, डॉ. कृष्णानंद मिश्र, डॉ. आफताब अशरफ, रेहान कादरी, मोहम्मद अरशद आदि ने अपने आलेख में उर्दू भाषा की शिक्षा के रास्ते में जो कठिनाई हो रही है उस पर प्रकाश डालें। अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. विद्यानाथ झा ने कहा कि उर्दू भाषा में भारतीय साहित्य को समृद्धशाली बनाया है इस भाषा का किसी जाति या धर्म से कोई लेना देना नहीं है। संचालन डॉ. मुस्तफा अहमद व धन्यवाद ज्ञापन डॉ. आफताब अशरफ अध्यक्ष उर्दू विभाग ने किया। मौके पर काफी संख्या में शिक्षक शोधार्थी वह छात्र -छात्राएं मौजूद थे।


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