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आठ सौ वर्ष पुरानी है शाही जामा मस्जिद

दरभंगा। शाही जामा मस्जिद किला घाट किसी परिचय का मोहताज नहीं है। बागमती नदी के तट पर बनी यह मस्जिद अप

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 May 2017 01:37 AM (IST)Updated: Tue, 30 May 2017 01:52 AM (IST)
आठ सौ वर्ष पुरानी है शाही जामा मस्जिद
आठ सौ वर्ष पुरानी है शाही जामा मस्जिद

दरभंगा। शाही जामा मस्जिद किला घाट किसी परिचय का मोहताज नहीं है। बागमती नदी के तट पर बनी यह मस्जिद अपनी खूबसूरती व बनावट के लिए प्रसिद्ध है। इससे अधिक यह बुजुर्ग हस्तियों की इबादतगाह के रूप में जानी जाती है। छोटे-छोटे सुंदर मीनारों से घिरे गुंबद की छटा देखते ही बनती है। मुगल काल की इस मस्जिद में समय-समय पर विस्तार भी किया गया। लेकिन इसकी सुंदरता एवं पाकीजगी का हमेशा ध्यान रखा गया है। पतली ईंट से बनी मस्जिद की अंदरुनी दीवार 4 से 5 फीट चौड़ी है। खूबसूरत मेहराब एवं गुंबदों पर की गई कारीगरी आज भी कौतूहल का विषय है। नए दौर के अभियंता आज भी निर्माण की विधि देखकर अपना सिर खुजलाने लगते हैं।

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लगभग दो दशक से इमामत कर रहे मौलाना वारिस अली ने बताया कि मस्जिद के नूरानी एवं शांत वातावरण के कारण ही कई बुजुर्ग हस्तियों ने इस मस्जिद को अल्लाह की इबादत के लिए चुना था। इस मस्जिद का इतिहास और अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हजरत मखदूम भीका शाह सैलानी, हजरत समरकंदी, हजरत रमजानी शाह, हजरत कश्मीरी शाह जैसे ऊंचे दर्जे के बुजुर्ग अल्लाह की इबादत यहीं किया करते थे। उन्होंने बताया कि यह मस्जिद तुगलक काल में बनी थी। इसका

सबूत मस्जिद के मुख्य द्वार पर लगे शिलापट्ट पर अंकित सन 1235 है। मस्जिद का आध्यात्मिक महत्व भी किसी से छिपा नहीं है। यही कारण है कि आबादी के बढ़ने के साथ-साथ मस्जिद को विस्तार भी दिया गया। लेकिन विस्तार के क्रम में हमेशा यहां के स्वच्छ एवं शांत वातावरण को बरकरार रखा गया। मस्जिद की देखरेख

के लिए बनाई गई कमेटी में भी अल्लाह वाले लोगों को रखा गया है। मौलाना अब्दुल वाजिद कादरी, मौलाना फैजानुर रहमान सुबहानी, सैयद अब्दुर रहमान, परवेज अहमद आदि मस्जिद की सुंदरता एवं पवित्रता बनाए रखने में अहम योगदान दे रहे हैं। कमेटी के सदस्य परवेज अहमद ने बताया कि मस्जिद की सुंदरता को बरकरार

रखते हुए मरम्मत का कार्य प्रगति पर है। मस्जिद के उत्तर एवं पश्चिम स्थित

कब्रिस्तान का भी जीर्णोद्धार किया जा रहा है। नमाजियों की बढ़ती संख्या को

देखते हुए मुख्य द्वार से पूर्व बने नए वजूखाने को व्यवस्थित किया जा रहा

है। रमजानुल मुबारक में आते ही नमाजियों की संख्या बढ़ गई है। रोजेदारों की इबादत से मस्जिद ही नहीं बल्कि पूरा मोहल्ला अल्लाह अल्लाह की सदा से गुंजायमान है। बरकत वाले इस महीना में सभी अपने रब को खुश करके अपनी मुरादे पूरी करने में लग गए हैं। ऐसे में लोगों को शांत एवं स्वच्छ माहौल शाही जामा मस्जिद के अलावा कहां मिलेगा। रमजान का चांद नजर आते ही विशेष नमाज तरावीह

कभी यहां अच्छा इंतजाम किया गया है। नूरानी माहौल में इबादत करने का मजा ही कुछ और होता है।

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¨जदगी जीने के प्रशिक्षण का महीना है रमजान

फोटो : 29 डीआरजी 28--

दरभंगा, संस : रमजान रहमतों का महीना है। अल्लाह ने अपने बंदों को तरह-तरह के नेमतों से नवाजने

के लिए रमजान को तीन भागों में बांटा है। रमजान का पहला 10 दिन रहमत, दूसरा 10 दिन मगफिरत और तीसरा और अंतिम 10 दिन ऐसे लोगों के लिए है। जिसने अपने गुनाहों से रब की नाराजगी मोल ले ली। जहन्नुम की आग से डर रहा हो अल्लाह

रमजान की बरकत और इंसान की तौबा से उसे भी माफ कर देंगे। उक्त बातें शाही जामा मस्जिद किला घाट के इमाम मौलाना मो. वारिस अली ने कही। उन्होंने लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि रमजान एक तरह से अच्छे और सच्चे रास्ते पर चलने के लिए ट्रे¨नग का महीना है। जैसे रमजान का चांद देखने के बाद से ही लोगों में एक अलग तरह का अहसास पैदा होता है। आदमी रोजा रखकर अपने रब के सामने समर्पण ही तो करता है। खाना पानी इत्यादि लोगों के सामने होने के बाद भी खाने पीने से रुका रहता है। ऐसा ही नहीं लोग रोजा में केवल खाना पानी ही छोड़ते हैं बल्कि सभी प्रकार के गुनाहों से बचने लगते हैं। कई तो ऐसे गुनाह है जिसे केवल बंदा आया उसका रब जानता है उसे भी आदमी रुक जाता है। ऐसे में

ईश्वर उन्हें अपने नेमतों से भरपूर नवाजता है। इसलिए बंदों को भी चाहिए कि हर साल रमजान को अपनी ¨जदगी का अंतिम रमजान मानकर अपनी बख्सिस करवा लें। अल्लाह रोजेदारों के लिए पहले 10 दिनों में बेशुमार रहमतों से बंदा को नवाजता है। 10 दिन से 20 रमजान तक अल्लाह से सभी लोगों को माफ कर देता है जो अपने लिए अल्लाह से माफी मांगता है। 20 से 30 रमजान तक अल्लाह ऐसे लोगों को भी माफ कर देते हैं जिसने कोई बड़ा गुनाह करके अपना नाम जहन्नुम में लिखा

लिया है। रमजान में रोजेदार यदि सच्चे दिल से बिना किसी दिखावा के रोजा रखता है और अल्लाह के हुकुम को मानता उन्हीं लोगों को रमजान और रोजा का फायदा भी पहुंचता है। दिखावा या काम से बचने के लिए रोजा रखने वालों से अल्लाह का

कोई वादा नहीं है। मौलाना वारिस अली ने कहा कि लोगों को चाहिए कि रोजा रखकर इमान को ताजा करें। एक माह के रमजान में जो हालत लोगों की रहती है बाद रमजान भी लोगों को वैसे ही नेक और पाकीजा ¨जदगी जीना चाहिए। रमजान और रोजा की

सार्थकता लोगों में तभी दिखाई देगी जब उन दिनों में भी लोग वैसे ही

इमानदारी से अल्लाह और उसके बंदों का हक अदा करें। रमजान में चाहिए कि लोग ज्यादा से ज्यादा रोजा रखे। नमाज पढ़ने और अल्लाह से अपने लिए नेक हिदायत मांगे।


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