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जल संरक्षण : सभी बेफिक्र, नारायण जी को तालाब बचाने की फिक्र

दरभंगा में सूखे की स्थिति से निपटने के लिए समाजसेवी नारायण चौधरी तालाबों को बचाने के लिए भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ रहे हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Wed, 22 Mar 2017 05:50 PM (IST)Updated: Wed, 22 Mar 2017 11:00 PM (IST)
जल संरक्षण : सभी बेफिक्र, नारायण जी को तालाब बचाने की फिक्र
जल संरक्षण : सभी बेफिक्र, नारायण जी को तालाब बचाने की फिक्र

दरभंगा [ब्रह्मेंद्र झा]। दुनिया जलसंकट से चिंतित है, क्योंकि हर साल भू-गर्भी जल नीचे जा रहा है। नदियां भी सूख रही हैं। इस संकट से निपटने के लिए बड़ी-बड़ी बातें, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं। ऐसे में एक समाजसेवी नारायणजी चौधरी तालाबों को सिर्फ जलस्त्रोत ही नहीं, बल्कि विरासत समझकर इसे बचाने के लिए 'व्यवस्था' से लड़ रहे हैं।

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पांच साल पहले तक दरभंगा बाढ़ की चपेट में रहता था। इसके बाद से सूखे की स्थिति होने लगी तो इनकी चिंता बढ़ी। नारायणजी ने बौद्धिक स्तर पर अभियान चलाया। फिर 'तालाब बचाओ' अभियान के बैनर तले जागरूकता कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने जिला मुख्यालय से तालाबों के इतिहास, भूगोल व वर्तमान स्थिति की जानकारी हासिल की।

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बुद्धिजीवियों, प्राध्यापकों, समाजसेवियों व पर्यावरणविदों को एक मंच पर लाने की कसरत शुरू की। विभिन्न वर्गों के साथ संगोष्ठियों के माध्यम से यह एहसास कराया कि यदि तालाबों व जलस्त्रोतों को नहीं बचाया गया तो भविष्य भयावह हो जाएगा। जिलाधिकारी से लेकर राष्ट्रपति तक पत्राचार किया। हर स्तर पर कार्रवाई का आश्वासन मिला। कार्रवाई नहीं होने के बाद भी उन्होंने अपने अभियान को जारी रखा है।

अतिक्रमण पर लगा विराम
पहले चरण में शहर के तालाबों को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए लगातार प्रयास किया। वर्ष 2014 में तत्कालीन जिलाधिकारी कुमार रवि ने शहर के तीन प्रमुख तालाबों की मापी कराई। हराही, दिग्घी व गंगासागर की जमीन खोजी गई और अतिक्रमणकारियों को चिह्नित किया गया। इस प्रयास के बाद इन तीनों तालाब के अतिक्रमण पर ब्रेक लग गया। श्री चौधरी ग्रामीण क्षेत्र के तालाबों को बचाने के लिए रणनीति बनाने में लगे हैं। यदि आवश्यकता पड़ी तो अदालत का दरवाजा भी खटखटाएंगे।

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इमारत देख मिली प्रेरणा
तालाबों को बचाने की प्रेरणा उन्हें दूसरे राज्यों की विशाल इमारत व ऐतिहासिक स्थलों को देखने से मिली। नारायणजी कहते हैं कि दक्षिण के राज्यों में इमारतों को देख सवाल उठने लगा कि आखिर बौद्धिक रूप से धनी मिथिला में ऐसा क्यों नहीं है? फिर जब यहां तालाबों को देखा तो संतोष हुआ कि हमारे पूर्वजों ने तो अमूल्य संपदा दी है। इसके उपरांत अभियान की शुरुआत की।

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