संस्कृत से हो सकता विश्व का कल्याण - कुशवाहा
दरभंगा। का¨सदसंविवि की ओर से आयोजित संस्कृत सप्ताह समारोह का समापन मंगलवार को दरबार हॉल में हुआ। मौ
दरभंगा। का¨सदसंविवि की ओर से आयोजित संस्कृत सप्ताह समारोह का समापन मंगलवार को दरबार हॉल में हुआ। मौके पर लनामिविवि के कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने कहा कि संस्कृत एक अनोखी भाषा है। लेकिन, आज यह पूजा-पाठ की भाषा बन कर रह गई है। उन्होंने संस्कृत के विद्धानों का आह्वान करते हुए कहा कि इस भाषा को विज्ञान से जोड़कर अन्वेषण करें ताकि इसे विश्व के पटल पर रख जा सके। सप्ताह पर से चल रहे समारोह पर उन्होंने कहा कि विषयगत शोध से आउटपुट निकल कर आना चाहिए। तभी इसकी सार्थकता सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि वेद, व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष में वैज्ञानिकता के साथ प्रायोगिक रूप में अनुसंधान कर समाज के बीच रखा जाए। संस्कृत की ओर पाश्चात्य देश टकटकी भरी ²ष्टि से देख रहे हैं। उन्होंने कहा संस्कृत में ऐसा विज्ञान छिपे हैं जिससे विश्व का कल्याण हो सकता है। मौके पर विशिष्ट अतिथि डॉ. विनोद चौधरी ने कहा कि संस्कृत के विकास में सबों का सहयोग अपेक्षित है। इसलिए इसे विश्वविद्यालय भवन से निकालकर जन-जन तक पहुंचाने का काम करें। विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने जनक, याज्ञवलक्य, गौतम, कणाद के योगदान पर चर्चा करते हुए कहा कि अयाची के पुत्र शंकर मिश्र पांच वर्ष की अवास्था में ही तीनों लोकों के वर्णन करने में समर्थ थे। आज मिथिला में पुन: वैसी प्रतिभा की आवश्कता है। उन्होंने इस भाषा को जन-जन की भाषा बनाने के लिए प्राइमरी स्कूलों से लेकर उच्च शिक्षा तक में संस्कृत की पढ़ाई को अनिवार्य करने पर बल दिया। का¨सदसंविवि के कुलपति डॉ. देवनारयण झा ने कहा है कि ऐसे आयोजन से संस्कृत समृद्ध होगा। उन्होंने कहा कि अर्थवेद में कृषि व औषधि विज्ञान की चर्चा है। खाद के निर्माण की चर्चा भी अर्थवेद में है। इसमें उल्लेखित है कि दूध में मधु मिलाकर ¨सचाई करने से आम का फल उत्तम कोटि का होता है। ठीक उसी तरह मनुस्मृति में वेदों के ज्ञान भरे पड़े हैं। इसलिए मनु सर्व ज्ञानमय कहे गए हैं। उन्होंने वेदों के रहस्यों पर अनुसंधान करने पर विशेष बल दिया। कहा वेद का तात्पर्य आत्मस्वरूप को जानने में है। इसका उद्देश्य मात्र कर्म कांड से नहीं है। यहां के छात्र इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। उन्होंने प्रारम्भिक से उच्च शिक्षा तक संस्कृत को अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाई को लेकर सरकार को प्रस्ताव भेजने की बात कही। वहीं पंजाब से आए विशिष्ट अतिथि आयुर्वेद बोर्ड के वाइस चेयरमैन वैध जगजीत ¨सह, रजिस्टार डॉ. संजीव गोयल व ¨प्रसपल डॉ. श्याम लाल अरोड़ा ने आयुर्वेद द्वारा स्वस्थ्य रहने की विधि पर प्रकाश डाला। डॉ. शशिनाथ झा के संचालन में आयोजित समापन समारोह को प्रतिकुलपति डॉ. नीलिमा झा, डॉ. आरके मेहता, कुलानुशासक डॉ. चौठी सदाय आदि ने संबोधित किया। डॉ. विनय कुमार मिश्र ने वैदिक मंगलाचरण व डॉ. दिलीप कुमार झा ने लौकिक मंगलाचरण किया। धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक डॉ. सुरेश्वर झा ने किया। कार्यक्रम के अंत में आयोजित प्रतियोगिता के सफल प्रतिभागियों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
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