प्रकृति की पाठशाला में परिवार का पाठ
दरभंगा। नवविवाहिताओं को पारिवारिक जीवन शैली की शिक्षा व कल्याण के लिए साधना का पाठ पढ़ाने वाला त्योह
दरभंगा। नवविवाहिताओं को पारिवारिक जीवन शैली की शिक्षा व कल्याण के लिए साधना का पाठ पढ़ाने वाला त्योहार मधुश्रावणी मंगलवार से शुरू होगा। इसमें नवविवाहिताओं को प्रकृति की पाठशाला में परंपरा व परिवार का पाठ पढ़ाया जाता है। प्रतिवर्ष श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी से लेकर शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तक इसे मनाया जाता है। अमूमन 13 दिनों तक यह पर्व होता है, लेकिन इस बार यह 14 दिनों तक मनाया जएगा।
कैसे मनाया जाता है यह पर्व
इस पर्व में नवविवाहिताएं मायके में रहते हुए ससुराल का ही भोजन करती है। इसके माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि अब ससुराल में उपलब्ध साधन ही उसके लिए है। मायके की सुख-सुविधा से दूर रहने की आदत डाली जाती है। पति के प्रति प्रेम का भाव जगाया जाता है। 13 दिनों तक नवविवाहिताएं साधना करती है। इस अवधि में नवविवाहिताएं नमक रहित भोजन करती है। कुछ तो सिर्फ फलाहार पर ही रह जाती है। वहीं नवविवाहिताओं
को खाने की व्यवस्था भी ससुराल की ओर से ही की जाती है। इस दौरान महिलाएं मायके का अन्न ग्रहण करने से परहेज करती हैं।
-----महिला पंडित सुनाती है कथा
सबसे अधिक लंबे समय तक चलने वाले पर्व में शुमार मधुश्रावणी का पर्व एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें पुरोहित की भूमिका में महिला ही होती है। सभी दिनों के लिए अलग-अलग कथाएं होती हैं। नवविवाहिता के साथ ही अन्य महिलाएं भी इस कथा को सुनती है। कथा के केंद्र में माता गौरी होती है। विषहारा की भी कथा सुनाई जाती है।
----बासी फूल से होती है पूजा
इस पर्व में बासी फूल से ही पूजा की जाती है। महिलाएं एक दिन पहले शाम में फूल तोड़ती है। नवविहाताओं का झुंड सामूहिक रूप से बगीचों में जाकर फूल लोढ़ती है। फिर उसे रात भर रखा जाता है और दूसरे दिन उसी से पूजा की जाती है। इस दौरान गौरी की पूजा का विशेष महत्व है। पूजा के माध्यम से सोहाग की रक्षा की कामना की जाती है। इसे लेकर महिलाओं में विशेष उत्साह रहता है। सभी प्रकार के फूलों का संकलन करने की होड़ रहती है।
--- समय के साथ सिमट रहा स्वरूप
विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे बदलाव का असर इस पर्व पर भी पड़ा है। सबसे बड़ा बदलाव तो सामूहिक आयोजन के स्वरूप पर पड़ा है। अब इसका स्वरूप एकाकी होने लगा है। बात चाहे फूल तोड़ने की हो अथवा पूजा के दौरान जुटने वाली भीड़ की हो। मैथिली की प्राध्यापिका व साहित्यकार डॉ.वीणा ठाकुर कहती हैं कि मधुश्रावणी प्रकृति, परंपरा व परिवार से प्रेम का पाठ पढ़ाने वाला त्योहार है। लेकिन, बदलते समय में इसमें हुए बदलाव का असर समाज व परिवार पर भी देखने को मिल रहा है। लक्ष्मीसागर निवासी प्रमिला झा कहती हैं कि मधुश्रावणी शारीरिक व मानसिक साधना का पर्व है।