गुमशुदा बच्चों पर गंभीर हो पुलिस महकमा
दरभंगा, जासं : सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद ही सही बिहार में गुमशुदा बच्चों का ब्योरा जुटाने के प्र
दरभंगा, जासं : सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद ही सही बिहार में गुमशुदा बच्चों का ब्योरा जुटाने के प्रति पुलिस महकमा अब गंभीर नजर आ रहा है। जिले में स्पेशल जुबेनाइल पुलिस यूनिट का गठन किया जा चुका है। थानेदार ही बाल कल्याण पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं लेकिन खुद थानेदा भी इससे अंजान हैं। जुवेनाइल बच्चों से जुड़े मामलों की सुनवाई विशेष जुवेनाइल पुलिस को करनी है। इसके लिए स्पेशल यूनिट गठित की जा चुकी है। बच्चों से जुड़े मामलों की शीघ्र सुनवाई और उनके पुनर्वास को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया है। इसका जिम्मा केवल बच्चों से संबंधित मामलों की जाच और प्रभावित बच्चों के शीघ्र पुनर्वास की व्यवस्था करनी होगी। पुलिस अफसरों , बाल सुधार गृह व बाल गृह के प्रतिनिधियों के साथ बुधवार को समाहरणालय के सभा भवन में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित हुई। लावारिस अथवा उपेक्षित बच्चा मिलने पर देखभाल का जिम्मा किसका होगा, उस मामले को कैसे निपटाया जाएगा और क्या-क्या जरूरी कदम उठाए जाने हैं इस पर इस कार्यशाला में विचार-विमर्श हुआ। यानी भूला-भटका बच्चा कहां जाएगा, उससे कैसे पूछताछ होगी, पुलिस की उसमें क्या भूमिका होगी इन सब बातों पर मशविरा हुआ। बैठक में सिटी एसपी हिमांशु शेखर त्रिवेदी, बाल सुधार गृह के अधीक्षक अजय कुमार, बाल गृह के अधीक्षक दीपक सिंह, यूनिसेफ के मास्टर ट्रेनर राकेश कुमार, अजमतुन नेशा, महिला थानाध्यक्ष सीमा कुमारी के अलावा जिले के सभी थानेदार व पुलिस इंस्पेक्टर मौजूद थे। स्पेशल जुबेनाइल पुलिस यूनिट (एसजेपीयू) स्थापित हुई है। लावारिस अथवा उपेक्षित बच्चा मिलने पर देखभाल का काम एसजेपीयू ही करेगा। थाने के कंप्यूटर में बच्चे की पूरी जानकारी तुरंत दर्ज की जाएगी। यदि बच्चा जानकारी देने की स्थिति में नहीं होगा तो उसकी फोटो व अन्य जानकारी सॉफ्टवेयर में डाल दी जाएगी ताकि उसके आधार पर शिनाख्त हो सके। 6-18 उम्र वर्ग के लापता बच्चों को बाल गृह में रखा जाना है जबकि आपराधिक मामलों से जुड़े बच्चों को बाल सुधार गृह में शरण देनी है लेकिन पुलिस वालों को ऐसे केस में बच्चों के साथ बिल्कुल ही सख्ती नहीं बरतनी है।
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गुमशुदा बच्चों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की फटकार
गुमशुदा बच्चों के मामले में सुप्रीम कोर्ट बिहार सरकार को फटकार लगा चुकी है। बच्चों की गुमशुदगी के सभी मामलों में तुरंत एफआइआर न दर्ज करने पर बिहार को आड़े हाथों लिया है। राज्य में बच्चों की गुमशुदगी के सिर्फ कुछ फीसद मामलों में ही एफआइआर दर्ज होती है। 60 फीसद मामलों में तो एफआइआर दर्ज ही नहीं होती। अगर एफआइआर दर्ज हो तो बच्चों को ढूंढना आसान होता है। सभी मामलो की एफआइआर क्यों नहीं दर्ज की जाती इस पर सरकार ने पक्ष रखा कि पहले सूचना की डायरी इंट्री होती है और बाद में एफआईआर दर्ज की जाती है। हालाकि गत वर्ष के सुप्रीम के एक आदेश के अनुसार, इन मामलों में पहले एफआइआर दर्ज होनी चाहिए। कोर्ट का कहना था कि सरकार उनके माता पिता की परेशानी और चिंता नहीं समझ रही है।
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लापता बच्चों की तलाश के लिए विशेष सॉफ्टवेयर
पुलिस अब नए साल में एक विशेष सॉफ्टवेयर के जरिए लापता बच्चों की तलाश करेगी। इस सॉफ्टवेयर से देश भर के थानों को जोड़ने की योजना है। इसमें लापता बच्चे एवं व्यक्तियों की फोटो व अन्य जानकारी फीड की जाएगी। देशभर में कहीं भी उनका सुराग मिलते ही संबंधित थाने को इत्तला की जाएगी। इस कवायद में स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट की विशेष भूमिका रहेगी। पुलिस मुख्यालय एवं महिला बाल विकास विभाग द्वारा संयुक्त रूप से यह अभियान चलाया जाएगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय की पहल पर देश के सभी थानों में यह सुविधा शुरू की जा रही है।
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थानों में नियुक्त किये हैं बाल कल्याण पदाधिकारी
जिले में किशोर न्याय (बालकों की देखरेख व संरक्षण) अधिनियम 2000 एवं किशोरों न्याय नियम 2007 के नियम 84 के आलोक में प्रत्येक थानों में बाल कल्याण पदाधिकारी नियुक्त किए गए हैं। लेकिन आलम यह है कि थानेदारों को खुद भी नहीं मालूम कि थानेदार के अलावा वे इस भूमिका में भी हैं।
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