खंडहर बन चुके केवटी खादी भवन को उद्धारक की तलाश
सुध ही नहीं ::::::
18 डीआरजी 50
विजय कुमार राय, केवटी
मधुबनी लोकसभा क्षेत्र के केवटी स्थित खादी ग्रामोद्योग में सैकड़ों हाथ चरखों पर चलते थे। आज वहां चौरतफा सन्नाटा पसरा है। आसपास के घरों से आती चरखों की आवाज भी गुम हो चुकी है। बेजार व्यवस्था की वजह से बापू की खादी ने यहां हार मान ली है। करीब 14 कट्ठा के रकबे में सन 1962 में स्थापित खादी भवन खंडहर बन चुका है तो सैकड़ों बुनकर बेरोजगार हो चुके हैं। दर्जनों कारीगर दिल्ली, मुंबइ्र, मुरादाबाद, गाजियाबाद आदि शहरों में पलायन कर चुके हैं। तो कुछ दूसरा पेशा अपना चुके हैं। उस जमाने के चर्चित दाउद अंसारी, बेचन अंसारी, मंजूर अंसारी, इद्रीश अंसारी आदि बनुकर अल्लाह को प्यारे हो चुके हैं। खंडहर बन चुके इस खादी भवन की देखभाल करने वाला भी आज कोई नहीं है। यह अपने उद्धारक की तलाश में है। केवटी खादी ग्रामोद्योग निर्मित एटी आपूर्ति कपड़ा देश भर प्रसिद्ध था। यह कपड़ा वर्दी निर्माण के लिए रक्षा मंत्रालय भेजा जाता था। मसलीन चरखे से यहां 260 नंबर तक का सूत कातने के साथ कपड़े की बुनाई भी होती थी। वही साढ़े चार लाख रुपये तक के सूत का उत्पादन तथा दो से ढाई लाख रुपये तक की कपड़े की बिक्री भी यहां हुआ करती थी। मसलीन का सूत कातने में यहां की महिलाएं बेहत मानी जाती थी। सन 1962 में जब केवटी के तत्कालीन विधायक हृदय नारायण चौधरी सूबे के सहकारिता मंत्री बनने के बाद पहली बार जब यहां पहुंचे तो उनका काटे गये मसलीन सूत के माला से स्वागत किया गया था। बुनकर संघ के प्रखंड अध्यक्ष अब्दुल मन्नान अंसारी बताते हैं कि खादी भवन के पुनर्जीवित नहीं होने से यहां बुनकरों की स्थिति दयनीय हो गई है।