बस के भाड़े में ढीली होती है जेब
नामांकन का खेल :::::::लोगो लगाएं
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दरभंगा, संस : निजी स्कूलों में सिर्फ किताब, ड्रेस या मासिक शिक्षण शुल्क के नाम पर ही अभिभावक शोषण का शिकार नहीं होते बल्कि छात्रावास और सवारी के नाम पर भी जेब खाली की जाती हैं। स्कूल से आपके घर की दूरी एक किमी हो या पांच, भाड़ा तो वही पांच सौ रुपये लगेंगे। उस पर भी एक बस में दर्जनों बच्चे। सीट मिले या खड़ा होकर जाना पड़े, भाडे़ में कोई रियायत नहीं। साथ ही डीजल का दाम जहां 50 पैसे प्रति लीटर बढ़ा तो और अधिक भाड़ा देने के लिए तैयार रहिए। सचमुच निजी स्कूलों ने बच्चों को पढ़ाने के नाम पर अभिभावकों की जेबें ढीली करने की हर व्यवस्था कर रखी है। नामांकन के खेल कालम में मंगलवार को दर्जनों अभिभावकों ने जागरण को फोन कर शोषण की कहानी बयान की।
किताब संग पानी का बोझ भी
महंगे नामांकन शुल्क, मासिक शिक्षण शुल्क और विभिन्न प्रकार के विविध शुल्क लेने वाले स्कूलों में बच्चों को पीने के लिए शुद्ध पानी तो मयस्सर ही नहीं। छोटे-छोटे बच्चों के कंधों पर ढेर सारी कॉपी और किताब का बोझ तो रहता ही है, पानी भरा बोतल भी ढोना पड़ता है। इतना शुल्क लेते हैं तो वाटर फ्रीजर की व्यवस्था तो करनी ही चाहिए।
बसों में निर्धारित हो सीटें
अभिभावक सवारी भाड़ा स्कूलों को भुगतान करते हैं तो बच्चों को सीट भी मिलनी चाहिए। भेड़ बकरियों की तरह बस में बच्चों को लादकर स्कूल लाना और घर पहुंचाना जोखिम भरा कदम हो सकता है। खड़े-खड़े बस में आना जाना बच्चों के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से कष्टदायक भी है।
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ग्रीन लैंड पब्लिक स्कूल में फीस यथावत
कक्षा 2013 2014
पहली से तीसरी 300 300
चौथी से छठी 400 400
सातवीं आठवीं 500 500
'हम अभिभावकों से उतना ही फीस लेते हैं जितना बच्चों पर खर्च होता है। मिशन के रूप में स्कूल चला रहे हैं।'
इशरत हुसैन, निदेशक
ग्रीन लैंड पब्लिक स्कूल, शिवधारा।
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इन्होंने बतायी पीड़ा
अजय कुमार, हनुमाननगर, राजेश कुमार पासवान, मिर्जापुर कौव्वाही, दुलारे, बेंता, सोनी देवी, अभंडा, राजकिशोर झा, आजमनगर, संजीव कुमार झा बहेड़ा।
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