मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें बनीं जान की दुश्मन
मोबइल टावरों से निकलने वाले तरंग मैना जैसे छोटे पंक्षियों के जान का दुश्मन साबित हुआ है। जो मैना पहले खेत, घर की मुडेर और आंगन में दिखते थे, अब उनका दर्शन दुर्लभ हो गया है।
बक्सर [जेएनएन]। अस्सी के दशक में फिल्म 'फकीरा’ का गाना 'तोता-मैना की कहानी पुरानी हो गई...’ भले ही तब फिल्म में प्रेम के टूटे रिश्ते पर आधारित था। परंतु, आज तोता-मैना के वजूद पर गाने का मुखड़ा बिल्कुल सटीक बैठ रहा है। गाने का एक किरदार तोता का वजूद तो एक मुद्दत से ङ्क्षपजड़े में ही सिमट कर रह गया है। अब मैना के भी दर्शन दुर्लभ होने लगे हैं। शहर में तो यह दिखती ही नहीं है। अलबत्ता गांवों में पेड़ों पर यदा-कदा इसके दर्शन हो जाते हैं।
फसलों की है रक्षक मैना का इस तरह विलुप्त होना पर्यावरण के लिए शुभ-संकेत नहीं है। मैना की लगातार घटती संख्या से ही हानिकारक कीड़ों का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। मैना का मुख्य आहार फसलों के लिए हानिकारक कीड़े होते हैं। ऐसे में कीड़ों का प्रकोप फसलों पर हावी हो रहा है। सरसों की खेती करने वाले किसान रामाधार ङ्क्षसह बताते हैं कि यही एक पक्षी है जो फसलों को नुकसान पहुंचाने की बजाय कीट-पतंगों को निवाला बना उपज बढ़ाने में मदद करती है।
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लगातार घट रही संख्या
इस बाबत वन विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि मैना की संख्या घटने के गुणात्मक आंकड़े तो उन लोगों के पास नहीं हैं। परंतु, यह जरूर कहा जा सकता है कि मैना की विलुप्त होने की अगर रफ्तार यही रही तो इस पक्षी को भी अगले कुछ वर्षों में केवल पिंजड़े में ही देखा जा सकेगा। यह पर्यावरण के लिए गंभीर विषय है।
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किसान भी हैं परेशान
पक्षी की घटती संख्या ने क्षेत्र के किसानों की परेशानी बढ़ा दी है। पूर्व के वर्षों के अनुपात में क्षेत्र के खेतों में लगे फसलों को अब हानिकारक कीड़े ज्यादा प्रभावित कर रहे हैं। कृषि विभाग द्वारा जिले व प्रखंडों में लगने वाले शिविरों में किसानों की ज्यादा शिकायतें फसलों में लगने वाले कीड़े को लेकर ही रहती है। किसान हवलदार ङ्क्षसह ने बताया कि पहले के मुकाबले अब कीटों का फसल पर ज्यादा असर देखने को मिलता है। ऐसे में कीटनाशकों का प्रयोग बढ़ गया है। जो फसलों की गुणवत्ता के लिहाज से ठीक नहीं है।
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मोबाइल टावर बन रहे दुश्मन
हाल ही में जारी एनवायरमेंटल रिसर्च एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल फोन व टावरों से निकलने वाली तरंगें पक्षियों और खासकर मैना के लिए नुकसानदेह साबित हो रही हैं। बक्सर जैसे छोटे से शहर में भी मोबाइल टावरों का आंकड़ा सौ से भी ज्यादा पार कर गया है। रिपोर्ट के मुताबिक टावर से मोबाइल फोन के बीच इस्तेमाल होने वाली 900 से 1800 मेगाहर्टज की कम फ्रिक्वेंसी वाली तरंगों से पक्षियों के अंडे के बाह्व आवरण प्रभावित होते हैं। वहीं, इनकी इंद्रियों पर भी असर पड़ता है। शहरों में पेड़-पौधे कम होने से पक्षी मोबाइल टावरों पर ही आश्रय लेते हैं। इससे उनका प्रजनन साइकिल प्रभावित होता है।
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