विस चुनाव : जेपी की विरासत को भूल गए उनके सिपाही
बिहार में जेपी की विरासत अपनी बदहाली से निकलने की बाट जोह रही है। इतना ही नहीं बक्सर जिले की डुमरांव विधानसभा सीट में बिहार के जनक डा. सच्चिदानंद सिन्हा का घर भी बिहार की राजनीति की दुर्दशा का शिकार है।
बक्सर [नितिन प्रधान]। बिहार में जेपी की विरासत अपनी बदहाली से निकलने की बाट जोह रही है। इतना ही नहीं बक्सर जिले की डुमरांव विधानसभा सीट में बिहार के जनक डा. सच्चिदानंद सिन्हा का घर भी बिहार की राजनीति की दुर्दशा का शिकार है।
बक्सर जिले की चार विधानसभा सीटों में एक डुमराव के हृदय में जयप्रकाश नारायण और सच्चिदा बाबू के बचपन की यादें बसती हैं। यहां के चौगाई और नावांनगर में इन दोनों महान हस्तियों का बचपन बीता। जयप्रकाश नारायण के पिता हरखू श्रीवास्तव नावांनगर के सिकरोल लख में सिंचाई विभाग में कार्यरत थे और जेपी के बचपन के बारह वर्ष यहीं सिंचाई विभाग के मकान में बीते। यहीं के प्राइमरी स्कूल में उन्होंने पढ़ाई भी की।
लेकिन, आज उनकी इस विरासत का यहां नामलेवा भी नहीं है। उनके खुद के आंदोलन से उपजे बिहार के नेता भी नहीं। चौगाई में रहने वाले रामजी यादव बेहद आहत स्वर में कहते हैं, 'जयप्रकाश बाबू के घर को स्मारक बनाने के लिए कई बार राज्य सरकारों को लिखा गया। नीतीश के मुख्यमंत्री रहते भी उन तक यह बात पहुंचाई गई। लेकिन कुछ नहीं हुआ। और सबसे बड़ा दुख यह है कि इस क्षेत्र की विरासत को अब लालू-नीतीश ददन यादव के हवाले करने जा रहे हैं।' ददन डुमराव से महागठबंधन के प्रत्याशी हैं।
ऐसी ही कुछ कहानी चौगाई प्रखंड के ग्राम मुरार में डा. सच्चिदानंद सिन्हा के घर की है। सच्चिदाबाबू को बिहार का जनक कहा जाता है। उन्हीं के प्रयासों के बाद 1911 में बिहार को बंगाल से निकाल कर अलग राज्य बनाया गया। डा. सिन्हा 1946 में बनी संविधान सभा के अंतरिम अध्यक्ष भी रहे। लेकिन, उनकी जन्मस्थली भी प्रदेश की जातिगत राजनीति में उलझकर धूल खा रही है। यादव कहते हैं कि नीतीश के शासन में प्रदेश में मुख्य सड़कों का निर्माण तो हुआ, लेकिन उसका फायदा सटे इलाकों में भीतर तक नहीं पहुंचा। यही वजह है कि सच्चिदानंद सिन्हा के जन्मस्थान तक राजनेता भी कभी नहीं पहुंच पाए।
डुमरांव विधानसभा सीट राजग गठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा के हिस्से में आई है। यहां से कुशवाहा के पुराने साथी रामबिहारी सिंह ददन यादव के मुकाबले मैदान में हैं। दोनों के बीच सीधी लड़ाई में करीब पौने तीन लाख मतदाताओं को 28 अक्टूबर को फैसला सुनाना है। लालू नीतीश ने ददन को यहां के सिटिंग विधायक दाउद अली का टिकट काटकर मैदान में उतारा है। अली अब पप्पू यादव की पार्टी के उम्मीदवार हैं।
वैसे तो यहां सवर्ण और खासतौर पर राजपूत मतदाता बहुलता में हैं। लेकिन इस लड़ाई को जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को अन्य जातियों के समर्थन की आवश्यकता भी होगी।
चौगाई-मुरार पहुंचने के रास्ते में कोटन सराय नाम पर एक चाय की दुकान पर यही चर्चा तीखी बहस में बदल जाती है कि इन जातियों का समर्थन किसे मिलेगा। मनभन सिंह यादव जोर देकर कहते हैं कि नीतीश का काम दिखता है, इसलिए उनको अन्य जातियों का समर्थन मिलना निश्चित है।
हालांकि, इसी क्षेत्र के चिल्हरी गांव में प्रचार कर रहे राजग प्रत्याशी रामबिहारी सिंह से जब मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा कि नीतीश ने प्रदेश को सामाजिक रूप से तोडऩे का काम किया है। इसका अंदाज अब लोगों को भी है। इसी को वजह बताते हुए वह खुद को सभी वर्गों का समर्थन मिलने की बात भी कहते हैं। जीतन राम मांझी के चलते यह संभव भी हो सकता है। लेकिन, इसका फैसला मतदान के वक्त ही होगा।