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यहां जांच के नाम पर बिकता है 'भगवान' का ईमान

बक्सर । राजपुर के मुनीलाल की पत्नी फुलबसिया की तबीयत अचानक खराब हो गयी तो गांव के साहूकार

By Edited By: Published: Thu, 26 May 2016 03:06 AM (IST)Updated: Thu, 26 May 2016 03:06 AM (IST)
यहां जांच के नाम पर बिकता है 'भगवान' का ईमान

बक्सर । राजपुर के मुनीलाल की पत्नी फुलबसिया की तबीयत अचानक खराब हो गयी तो गांव के साहूकार से ब्याज पर रुपये लेकर वह इस उम्मीद के साथ सदर अस्पताल आयी कि जिले के सबसे बड़े अस्पताल में उसका बेहतर इलाज हो जाएगा। हुआ भी। उसे अस्पताल में उपलब्ध गैस्ट्रिक के साथ पेट दर्द की दवा दे दी गयी। महिला ठीक भी हो गयी। लेकिन गैस्ट्रिक के चलते तेज पेट दर्द से परेशान हुई महिला को दो हजार से भी ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ गये।

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असल में, यहां के चिकित्सकों ने एक नया ट्रेंड ईजाद किया है। मरीजों के शोषण के नाम पर वे जरा भी नहीं हिचकते। मरीज चाहे ब्याज पर पैसा लेकर आये या अनाज बेचकर।'धरती के भगवान'को उससे कोई लेना देना नहीं रहता। उन्हें तो बस अपना टार्गेट पूरा करना रहता है। ओपीडी में जांच के नाम पर पैसा कमाने का टार्गेट। उसी लक्ष्य को पूरा करने में वे मरीजों का शोषण करने से नहीं चूकते। दूसरे शब्दों में कहें तो यहां धरती के भगवान ने जांच के नाम पर अपना ईमान बेच दिया है। फुलबसिया के मामले में भी यही हुआ। चिकित्सक ने ब्लड सुगर और अल्ट्रासाउंड से लेकर एलएफटी तक की जांच लिख दी। इससे महिला ठीक तो हो गयी लेकिन उस कर्ज से शायद वो आज भी नहीं उबर पायी है।

चिकित्सकों में रहती है जांच लिखने की होड़

सदर अस्पताल के एक-दो चिकित्सकों को छोड़ दिया जाये तो अन्य सभी में जांच लिखने की होड़ मची रहती है कि कौन कितना जांच लिखता है। खास बात यह कि इसमें महिला चिकित्सक भी पीछे नहीं रहतीं। बहती गंगा में वे भी मजे से हाथ धोती हैं।

एलएफटी से अल्ट्रासाउंड तक में परहेज नहीं

मरीज को क्या बीमारी है, उसके लिए कौन सी जांच जरूरी है। चिकित्सक यह देखना भी मुनासिब नहीं समझते। अलबत्ता वे मरीज को एलएफटी से लेकर अल्ट्रासाउंड तक लिख देते हैं। या यूं कहें कि जिसमें कमीशन अधिक रहता है वह लिख डालते हैं।

पचास प्रतिशत पर तय होता है मामला

चिकित्सक के जांच लिखने के बाद मरीज चाहे शहर के जिस पैथोलाजी में जांच कराये, अमूमन उसका कमीशन डाक्टर साहब तक पहुंच जाता है। चिकित्सक व पैथोलाजी के बीच यह कमीशन पचास फीसद से लेकर उससे अधिक तक पर तय रहता है। एक पैथोलाजी संचालक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि डाक्टर यदि अपना कमीशन छोड़ दें तो आज के आज जांच की फीस आधी हो जाये। लगभग पचास प्रतिशत सीधे कमीशन देना होता है और यह मजबूरी है।

डेढ़ बजते घनघनाने लगता है फोन

ओपीडी का समय समाप्त होने से आधा घंटा पहले डेढ़ बजे के करीब चिकित्सकों का फोन जांच घर में जाता है कि अब उन्हें निकलना है। इसके बाद जांच घर का कोई कर्मचारी संबंधित चिकित्सक का कमीशन लेकर निकलता है और चिकित्सक जहां कहते हैं उनसे मिल लेता है।

यह दुखद बात है कि चिकित्सकों द्वारा अनावश्यक मरीजों की जांच लिखी जाती है। इसकी सूचना मुझे मिली थी। उसके बाद मैनें एक पत्र जारी कर सबको हिदायत दी थी। फिर अगर ऐसा हो रहा है तो चिकित्सकों पर कार्रवाई की जाएगी।

डा.ब्रज कुमार ¨सह, सिविल सर्जन, बक्सर।


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