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लूटखसोट की पर्याय बनी एमडीएम

-फर्जी उपस्थिति पर हर माह हजारों डकार रहा विद्यालय प्रबंधन -बच्चों के निवाले से झोली भर र

By Edited By: Published: Mon, 31 Aug 2015 06:40 PM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2015 06:40 PM (IST)
लूटखसोट की पर्याय बनी एमडीएम

-फर्जी उपस्थिति पर हर माह हजारों डकार रहा विद्यालय प्रबंधन

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-बच्चों के निवाले से झोली भर रहे नैनिकता की सीख देने वाले गुरूजी

सिमरी (बक्­सर) :

बक्सर। प्रखंड क्षेत्र के प्राथमिक एवं मध्­य विद्यालयों मे संचालित मिड डे मिल योजना में व्­यापक पैमाने पर लूटखसोट जारी है। बच्­चों की फर्जी उपस्थिति दिखाकर विद्यालय प्रवंधन विभागीय अधिकारियों के संरक्षण में इस मद का हजारों रूपये प्रति माह डकार रहे हैं। केन्­द्र सरकार प्रायोजित इस योजना को मूर्त रूप देते समय विशेषज्ञों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले गुरूजी खुद बच्­चों के निवाले से अपनी झोली भरेंगे। किन्­तु शिक्षकों की अर्थलोलुपता के चलते यह योजना भी भ्रष्­टाचार की शिकार है।

भवन निर्माण एवं विकास के पैसे का तो पहले से ही शिक्षक दुरूपयोग करते रहे हैं। उनकी जो कुछ विश्­वसनीयता व मर्यादायें अभी शेष बची थी। उसे भी इस योजना की राशि हजम कर तार-तार करने से वे बाज नहीं आ रहे हैं। वैसे इस योजना की राशि डकारने वाले शिक्षको की तादाद बहुत ज्­यादा नहीं है। मगर इससे पूरा शिक्षक समुदाय को बदनामी झेलनी पड़ रही है।

प्रावधानों की उड़ रही धज्जियां

पोषक क्षेत्र के दिनेश कुमार, सोना देवी, गीता देवी आदि लोगों ने बताया कि इस योजना के संचालन में प्रधानाध्­यापकों के समक्ष विभाग द्वारा निर्धारित सारे प्रावधान गौंण हो गये है। इसे देखने और रोकने वाला कोई नहीं है। प्रखंड एमडीएम प्रभारी भी जांच के लिए विद्यालयों मे जाने के बजाय बीआरसी अथवा पुराना भोजपुर चौक पर प्रधानाध्­यापकों को बुलाकर योजना का अनुश्रवण कर लेते हैं। ऐसी स्थिति में विद्यालय प्रबधन पठन-पाठन की व्­यवस्­था सुनिश्चित कराने के बदले मध्­यान भोजन के पैसे के जोड़ घटाव में ही ज्­यादा समय व्­यतीत कर रहे हैं।

क्­या कहते हैं अधिकारी

इस मामले में जब एमडीएम प्रभारी प्रवीण कुमार से संपर्क किया गया तो उन्होंने ने भी माना की विद्यालयों में इस योजना का क्रियान्­वयन सही ढ़ंग से नहीं हो रहा है। उन्­होंने तो यहां तक कहा कि यहां की व्­यवस्­था से मैं आजिज आ गया हूं। मेरा यहां से ट्रांसफर हो जाता तो बेहतर होता।


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