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तुम्हारी मुस्कुराहटों पे हो निसार..

By Edited By: Published: Tue, 03 May 2011 11:14 PM (IST)Updated: Wed, 16 Nov 2011 04:44 PM (IST)
तुम्हारी मुस्कुराहटों पे हो निसार..

अरुण प्रसाद, आरा : मुस्कुराहट, खिलखिलाहट, ठहाकों व प्रसन्नचित अभिव्यक्तियों के मुरीद सिर्फ आशिक ही नहीं होते, बल्कि आपकी यह अदा जमाने में आपकी एक अलग पहचान भी बना देती है। यही नहीं आपका प्रसन्नोन्मुखी चरित्र कई गंभीर बीमारियों को भी पास नहीं फटकने देता है। जीवन में हास्य व विनोद का कितना महत्व है, इसकी पड़ताल आप अपनी भागदौड़ व तनाव भरी जिंदगी के बीच से हंसी के दो पल निकालकर स्वत: कर सकते हैं। यह भी सच है कि विकास के इस दौर में अल्प समय में ही सब कुछ पा लेने की मृगतृष्णा के बीच एक समय ऐसा भी आता है, जब हमारे सारे अरमान मुट्ठियों में रेत की तरह फिसलते हुए प्रतीत होने लगते हैं। ऐसे में अपनी व जमाने की खुशियों को बरकरार रखने के लिए यह जरूरी है कि तमाम चिंताओं के बीच से हंसने-हंसाने का बहाना भी ढूंढ लिया जाय। हास्य दिवस के अवसर पर शहर के स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कई चिकित्सकों व विशेषज्ञों की राय भी कुछ इसी तरह की है।

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आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़े डा. अरुण कुमार मिश्र बताते हैं कि कई गंभीर बीमारियों से बचाव का सरल उपाय तथा स्वस्थ मनुष्य का लक्षण प्रसन्नचित मुद्रा से बेहतर कुछ भी नहीं है। और मन को प्रसन्न रखने की सबसे बेहतर कला हास्य व विनोद ही है। इसके माध्यम से अनिद्रा, अनपच, रक्तचाप तथा हृदय की बीमारियों को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

पतंजली योग समिति, भोजपुर के जिलाध्यक्ष व योग प्रशिक्षक सुरेन्द्र चौरसिया के अनुसार हास्यासन नित्य अभ्यास से हमारे शरीर के तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक असर होता है। खुलकर हंसने से धमनियां व शिराएं पूरी तरह खुल जाती है, जिससे हमारा रक्त संचार भी सुगम हो जाता है। इस आसन के लिए सुबह का समय सबसे उपयुक्त होता है। श्री चौरसिया ने बताया कि किसी भी अभ्यास में अति सर्वत्र वर्जित है। आपकी अनावश्यक हंसी आपको असामान्य भी बना सकती है। उन्होंने बताया कि लगभग 80 प्रतिशत बीमारियों का प्रमुख कारण तनाव और अवसाद ही है। प्रसन्नचित रहकर इसे भी नियंत्रित किया जा सकता है।

चर्चित मनोचिकित्सक व जेनरल फिजिसियन डा. यू.के. चौधरी बताते हैं कि प्रसन्नचित रहने से रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। इस तरह की प्रवृत्ति शुगर, कैंसर व हार्ट डिजिज में भी विशेष फायदा पहुंचाती है।

चर्चित फिजिसियन व हृदय रोग विशेषज्ञ डा. टी.पी. सिंह के अनुसार प्रसन्नचित रहने से हृदय पर दबाव नहीं बन पाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे लोगों के बीच नकारात्मक चिंतन के बदले सकारात्मक सोच विकसित होती है।

जेनरल फिजिसियन व सदर अस्पताल, आरा के उपाधीक्षक डा. बी.के. प्रसाद बताते हैं कि सदा खुश रहने वालों की आयु लंबी होती है। तनाव से जुड़ी बीमारियों के इलाज में यह प्रवृत्ति विशेष सहायक होती है।

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