अब कम दिखते गिद्ध व चील
भोजपुर । प्रकृति का सफाईकर्मी कहलाने वाला तथा दूर तक दृष्टि रखने वाले गिद्ध व चील आज दूर-द
भोजपुर । प्रकृति का सफाईकर्मी कहलाने वाला तथा दूर तक दृष्टि रखने वाले गिद्ध व चील आज दूर-दूर तक दिखाई नहीं देते। शहरीकरण, घटते वनस्पति व कृषि क्षेत्र में रासायनिक दवाओं के बढ़ते प्रभाव ने प्रकृति के इस सफाई दूत को विलुप्त होने के कगार पर ला दिया है। समय रहते यदि विलुप्त प्राय: इस पक्षी को संरक्षित नहीं किया गया तो पर्यावरण को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण भोजपुर एवं आसपास के जिलों में पशुपालन बड़े पैमाने पर किया जाता है। पशुओं की मौत के पश्चात अक्सर खुले मैदान में उसके शव को छोड़ दिया जाता है। बड़ी संख्या में गिद्ध ताड़ के वृक्षों से उतरकर उक्त स्थान पर पहुंचकर कुछ ही पलों में मांस खाकर केवल कंकाल छोड़ देते थे। परंतु आज इनकी अनुपस्थिति में पशुओं का शव खुले मैदान में पड़ा रहता है जिसके दुर्गध से वातावरण काफी दूषित हो जाता है। गिद्ध को पर्यावरण का अपघटक कहा जाता है। गिद्धों में दूर तक देखने की क्षमता बहुत अधिक होती है। इसके अतिरिक्त गिद्ध प्रकृति एवं धरती के बीच संतुलन कायम करने वाले प्राणी भी माने जाते हैं। गिद्ध के समान चील भी इसी तरह संकट के दौर से गुजर रहे हैं।