'त का हम कुंवारे रहें..' से टूटी रंगमंच की खामोशी
जागरण संवाददाता, आरा : कई माह से आरा रंगमंच पर छाई खामोशी हास्य नाटक 'त का हम कुंवारे रहें..' की दो
जागरण संवाददाता, आरा : कई माह से आरा रंगमंच पर छाई खामोशी हास्य नाटक 'त का हम कुंवारे रहें..' की दो दिवसीय प्रस्तुति से टूटी। बैड थियेटर(भोजपुरिया आर्ट एण्ड ड्रामा थियेटर) के बैनर तले स्थानीय नागरी प्रचारिणी सभागार में हास्य नाटक 'त का हम कुंवारे रहें..' का मंचन उद्घाटन मशहूर हड्डी रोग विशेषज्ञ डा.कुमार जितेन्द्र ने दीप जलाकर किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि नाटक अपनी बातों को प्रस्तुत करने का सशक्त माध्यम है। इसके माध्यम से हम समाज में व्याप्त कुरीतियों को लोगों के समक्ष बहुत ही आसानी से प्रस्तुत करते हैं। मंच पर मौजूद कलाकार और प्रेक्षागृह में बैठे दर्शकों के बीच नाटक प्रस्तुति के दौरान सीधा संपर्क होता है। इसमें कोई टेक व रिटेक नहीं होता है।
सतीश कुमार मिश्र द्वारा लिखित और सर्वज्ञ मोहन द्वारा निर्देशित इस यथार्थवादी नाटक में विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से दृश्य संरचना को कलाकारों ने व्यंग्य करते हुए समाज में व्याप्त दहेज जैसी कुरीतियों को बड़े ही मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया। नाटक की कहानी एक विकलांग युवक के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने पिता से शादी करवाने की बात करता है। उसका पिता धन का लोभी है, जो दहेज की मांग करता है। लेकिन बीच में एक ठग पुजारी के हाथों उसका बेटा लुट जाता है।
नाटक के प्रमुख पात्रों में सर्वज्ञ मोहन(ज्ञानगुण सागर प्रसाद) और निशीकांत कुमार(पिता) में अमिट छाप छोड़ी। इस प्रस्तुति में कई कलाकार नए थे। बावजूद उनके अभिनय को प्रेक्षकों ने सराहा। रीतेश गौरव(ठग), प्रशांत कुमार चौधरी(पंचफोरन प्रसाद) और रंजन यादव(धूर्तानंद) का अभिनय सराहनीय रहा। अन्य भूमिकाओं में प्रिंस कुमार सिंह, लड्डू भोपाली, राजीव मिश्रा, सलमान महबूब और अमित कुमार का अभिनय को भी लोगों ने सराहा। नृत्य निर्देशक त्रृशा शर्मा और धीरज कुमार थे। संस्था की इस प्रथम प्रस्तुति ने प्रेक्षकों को काफी प्रभावित किया। मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय, भोपाल के छात्र सर्वज्ञ ने बताया कि इस प्रस्तुति के पूर्व 60 दिवसीय नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया गया था, जिसमें प्रतिभागियों को नाटक के विभिन्न पक्षों की जानकारी दी गयी। साथ ही हास्य नाटक 'त का हम कुंवारे रहें..' को तैयार किया गया है। यह नाटक ही क्यों? के सवाल पर सर्वज्ञ ने बताया कि वर्षो पूर्व सतीश कुमार मिश्र द्वारा लिखित यह नाटक आज भी प्रासंगिक है, इसलिए इसकी प्रस्तुति का निर्णय लिया गया।