Move to Jagran APP

आखिरी अशरा की फजीलत व बरकत बेशुमार

By Edited By: Published: Fri, 25 Jul 2014 09:11 PM (IST)Updated: Fri, 25 Jul 2014 09:11 PM (IST)
आखिरी अशरा की फजीलत व बरकत बेशुमार

जागरण संवाददाता,आरा : रहमत व बरकत का महीना रमजान के अंतिम जुमा अर्थात अलविदा जुमा की नमाज मुसलमानों ने विभिन्न मस्जिदों में अदा की। अलविदा जुमा को लेकर मस्जिदों में काफी भीड़ देखी गयी। शाही मस्जिद में अधिक भीड़ के कारण सड़क पर भी मुसलमानों ने नमाज अदा की। सभी मस्जिदों में खुतबे के पूर्व ओलमाए कराम ने अपनी तकरीर के दौरान रमजान माह की विशेषता पर रौशनी डाली। स्थानीय शाही मस्जिद, खानका फरिदिया मस्जिद, डिंस टैंक मस्जिद, मेहरू मस्जिद, चौधरियाना मस्जिद, ख्वाजा साहब की मस्जिद, बीबी जान की मस्जिद, पकड़ी मस्जिद, करमन टोला-नवादा मस्जिद, मिलकी अनाईठ मस्जिद समेत अन्य मस्जिदों में मुसलमानों ने अलविदा जुमा की नमाज अदा की। अलविदा नमाज के पहले ओलमाए कराम ने खुतबे में कहा कि रमजानुल मुबारक के आखिरी अशरा की फजीलत व बरकत बेशुमार है। अल्लाह तआला कुरान पाक में इरशाद फरमाते हैं कि बेशक हमने कुरान लैलतुल कद्र में नाजिल फरमाया। तुम जानते हो कि लैलतुल कद्र क्या है? इसका जवाब अल्लाह तआला खुद फरमाते हैं कि लैलतुल कद्र की एक रात अफजल है एक हजार महीने की इबादत से। इस रात में खुदावन्दी हजरते जिब्रील अमीन सिदरसूल मुमतहा के 70 हजार फरिश्तों के साथ रूये जमीन पर तशरीफ लाते हैं। फिर फरिश्तों से हजरते जिब्रील फरमाते हैं कि रूये जमीन पर फैल जाओ। सरकार ने इरशाद फरमाया कि कोई ऐसा हुजरा, कोई ऐसा घर, कोई ऐसी कश्ती नहीं, जिसमें कोई मोमीन मर्द या मोमीन औरत हो और फरिश्ते उसमें दाखिल न हो। पूरी रात फरिश्ते मोमीन की जियारत करते हैं। उन्होंने कहा कि रमजान का जब आखिरी अशरा और रमजान जब हमसे रुखसत होता है तो हमारी उम्मत के मुसीबत को देखकर जमीनों आसमान और फरिश्तें रोते हैं। इस पर हजरत जाबिर ने अर्ज किया रसूल अल्लाह जमीनों आसमान व फरिश्तें क्यों रोते हैं? हुजूर सल्लाहो अलैहे वस्सलम ने फरमाया कि उम्मते मोहम्मदिया सल्लाहो तआला अलैहे वस्सलम से ये महीना रूखसत हो रहा है। क्योंकि इस महीने में खुद इबादत व रियाजत की जाती है। हर मुसलमान इसमें खूब इबादत करता है। इस महीने में अल्लाह तआला दुवाओं को कबूल फरमाता है। अल्लाह उसके गुनाहों को माफ कर देता है। उन्होंने कहा कि रमजान माह में रोजा, नमाज आदि के साथ सदकाए फित्र व जकात देना जरूरी है। प्रत्येक मालिके निसाब(मालदार) पर सदकाए फित्र व जकात देना निहायत जरूरी है। यह दोनों वाजिब है। ओलमाए कराम का कहना है कि जो लोग सदकाए फित्र नहीं देते हैं, उनका रोजा कबूल नहीं होता है। जो लोग जकात नहीं देंगे, मरने के बाद कब्र में उनके दोनों जबड़ों को गंजा सांप खीचेंगा और कहेगा कि मैं तुम्हारा माल हूं, जिसका तुमने जकात नहीं निकाला।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.