बाबू साहेब की स्मृति चिह्न इस बार भी रह गये उपेक्षित
सुधीर मिश्र,आरा : स्वतंत्रता संग्राम के वीर योद्धा बाबू कुंवर सिंह के विजयोत्सव पर बुधवार को शहर से देहातों तक धूम रही। राज्य सरकार द्वारा घोषित अवकाश तथा सरकारी गैर सरकारी स्तर पर आयोजित समारोहों में लगभग हरेक वर्गो के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। शायद चुनाव आचार संहिता के कारण कोई भी प्रमुख राजनेता का आगमन नहीं हो सका, लेकिन लोगों में इस बात की कसक दिखीं कि उनकी स्मृति में कई अधूरे वायदे इस बार भी मूर्त रूप नहीं ले सका। आजादी के लगभग साढ़े छह दशक का लंबा समय गुजर चुका है। वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार लड़ाई में अपराजित रहे बाबू कुंवर सिंह की प्रमुख स्मृति चिह्न आज भी जीर्ण-शीर्ण दशा में उनके पैतृक गांव जगदीशपुर समेत आरा शहर के ईद-गिर्द मूक गवाह बना है। आजादी के बाद से आज तक इन चर्चित स्थलों पर कई प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल एवं मुख्यमंत्रियों का आना हुआ। कई अवसरों पर सैनिक स्कूल खोलने, जगदीशपुर के किला, आरा हाऊस से जगदीशपुर किला तक का लगभग 16 किलोमीटर लंबा जीर्ण-शीर्ण भूमिगत सुरंग (लगभग बंद पड़ा) जैसे दर्जन भर ज्यादा ऐतिहासिक चिह्न हैं, जिनकों पर्यटक स्थल के रूप से संजोने एवं संवारने की आवाज गरमाते रही। बड़े व प्रमुख नेताओं का आश्वासन भी मिलता रहा, लेकिन इनमें से किसी प्रमुख मुद्दों को मूर्त रूप देने का ईमानदारी से कोशिश नहीं किया गया।