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बिना काम वेतन पर खर्च पर हो रहा सालाना एक करोड़

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का प्रेस अब सिर्फ नाम का रह गया है। यहां कार्यरत कर्मियों को बिना काम के वेतन दिया जा रहा है। यहां कार्यरत कर्मी एक दशक में चंद महीने ही काम किए हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jul 2017 02:01 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jul 2017 02:01 AM (IST)
बिना काम वेतन पर खर्च पर हो रहा सालाना एक करोड़
बिना काम वेतन पर खर्च पर हो रहा सालाना एक करोड़

भागलपुर । तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का प्रेस अब सिर्फ नाम का रह गया है। यहां कार्यरत कर्मियों को बिना काम के वेतन दिया जा रहा है। यहां कार्यरत कर्मी एक दशक में चंद महीने ही काम किए हैं। जबकि कर्मियों के वेतन मद पर सालाना एक करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।

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चार साल पूर्व 30 लाख रुपये से खरीदा गई ऑफसेट मशीन बेकार पड़ी हुई है। पुरानी मशीनें जंग खा रही हैं। प्रेस की क्षमता प्रतिदिन आठ हजार कॉपियां छापने की है। प्रतिवर्ष लगभग सवा लाख छात्र परीक्षा में शामिल होते हैं और उनके लिए छह लाख कॉपियों की आवश्यकता पड़ती है। हालांकि वर्तमान कुलपति डॉ. नलिनी कांत झा ने विवि प्रेस में ही कॉपियों की छपाई कराने का निर्णय लिया है।

विवि में 11 तृतीय वर्गीय व 36 चतुर्थ वर्गीय कर्मी कार्यरत हैं। इन कर्मियों के वेतन मद में प्रतिमाह साढ़े सात लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। पूर्व कुलपति डॉ. प्रेमा झा ने विवि प्रेस में खाली पदों को भरने का प्रयास किया था। उनके कार्यकाल में मैनेजर सहित कई कर्मियों की बहाली हुई थी। डॉ. प्रेमा झा के कार्यकाल में परीक्षा की कॉपियों की छपाई विवि प्रेस में हुई थी। उनके बाद के कुलपति ने बाहर से कॉपियां छपवानी शुरू कर दीं। सबसे अधिक कॉपियों की खरीद पूर्व कुलपति डॉ. अंजनी कुमार व डॉ. निलांबुज किशोर वर्मा के कार्यकाल में हुई। पूर्व कुलपति डॉ. रमा शंकर दुबे ने एक वर्ष की परीक्षा की कॉपी की छपाई विवि प्रेस में कराई थी। हालांकि उन्हें कॉपियों की खरीद नहीं करनी पड़ी। बची कॉपियों से ही उन्होंने अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान परीक्षाएं आयोजित करा लीं। डॉ. दुबे ने कॉपियों की छपाई के लिए कागज की खरीद के लिए हिन्दुस्तान प्रेस पटना को 29 लाख रुपये अधिक की राशि जमा की थी। लेकिन प्रेस के बंद हो जाने के कारण कागज विवि को नहीं मिल सका। उक्त राशि या फिर कागज उपलब्ध कराने की मांग वर्तमान कुलपति डॉ. नलिनी कांत झा ने हिन्दुस्तान प्रेस से की है। सत्र नियमित कराने को लेकर वर्तमान कुलपति द्वारा भी कॉपियों की खरीद बाहर से कराई गई है। लेकिन उन्होंने आगे की परीक्षा की कॉपियां विवि प्रेस में ही छपवाने का निर्णय लिया है।

प्रेस दे सकता है विवि को फायदा

विवि से जुड़े 29 अंगीभूत कॉलेज हैं। इन कॉलेजों से जुड़े कागजातों की छपाई बाहर के प्रेसों में होती है। टेस्ट परीक्षा की कॉपी, अटेंडेंस रजिस्टर, रसीद आदि की छपाई होती है। विवि में भी इसकी आवश्यकता पड़ती है। मा‌र्क्स फाइल की छपाई वर्षो से एक निजी कंपनी द्वारा कराई जा रही है। इतने कार्य अगर विवि प्रेस से कराए गए तो विवि को आर्थिक बचत तो होगी ही, साथ ही फायदा भी होगा।


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