टीएनबी लॉ कॉलेज के प्राचार्य हटाए गए
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय प्रशासन ने टीएनबी लॉ कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसके पांडेय को पदमुक्त कर दिया है।
भागलपुर । तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय प्रशासन ने टीएनबी लॉ कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसके पांडेय को पदमुक्त कर दिया है। विवि प्रशासन ने यह कदम विवाद व छात्र आंदोलन को ठंडा करने के लिए उठाया है। हालांकि कुलपति डॉ. नलिनी कांत झा का कहना है कि डॉ. पांडेय ने प्राचार्य के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। विवि एक्ट के मुताबिक एक कॉलेज में कोई भी पांच वर्ष के लिए प्राचार्य रह सकता है। कॉलेज के ही दूसरे वरीय शिक्षक डॉ. मधुसूदन सिंह को प्राचार्य बनाया गया है। डॉ. सिंह ने बुधवार को पदभार ग्रहण भी कर लिया है।
डॉ. एसके पांडेय टीएनबी लॉ कॉलेज के सबसे वरीय शिक्षक हैं और लॉ फेकेल्टी के डीन भी हैं। उन्हें तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा 2010 में टीएनली लॉ कॉलेज का प्राचार्य बनाया गया था। उनका पांच वर्ष का कार्यकाल 2015 में ही पूरा हो गया था। लेकिन कार्यकाल पूरा होने के बावजूद तत्कालीन कुलपति डॉ. रमा शंकर दुबे ने उन्हें प्राचार्य बनाए रखा। 2015 तक डॉ. पांडेय का कार्यकाल ठीक-ठाक रहा, लेकिन 2016 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया से कॉलेज को मान्यता नहीं मिलने के सवाल पर छात्रों ने उनके खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था जो अब तक जारी है। छात्रों के आंदोलन को देखते हुए विवि प्रशासन ने बुधवार को डॉ. एसके पांडेय को पदमुक्त कर दिया।
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सभी को साथ लेकर करेंगे कॉलेज का विकास : डॉ. मधुसूदन सिंह
टीएनबी लॉ कॉलेज के नए प्राचार्य डॉ. मधुसूदन सिंह ने कहा है कि वे पूरी ईमानदारी से दायित्व का निर्वहन करेंगे। वे छात्रों, शिक्षकों व कर्मियों के सहयोग से कॉलेज को ऊंचाई पर ले जाएंगे। कॉलेज में पठन-पाठन का माहौल कायम करेंगे। बार काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता दिलाने के लिए वे भरसक प्रयास करेंगे। जबतक बीरसीआइ से मान्यता नहीं मिलती है, तबतक नए सत्र में छात्रों का नामांकन नहीं लिया जाएगा।
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कोट
टीएनबी लॉ कॉलेज के प्राचार्य के रूप में डॉ. एसके पांडेय ने पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। विवि एक्ट के मुताबिक पांच साल से अधिक एक कॉलेज में एक प्राचार्य नहीं रह सकते हैं। दूसरे वरीय शिक्षक डॉ. मधुसूदन सिंह को कॉलेज का नया प्राचार्य बनाया गया है।
डॉ. नलिनी कांत झा, कुलपति
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय
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काम करने की मिली सजा : डॉ. एसके पांडेय
टीएनबी लॉ कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. एसके पांडेय ने कहा है कि कॉलेज के लिए दिन-रात काम करने की सजा उन्हें मिली है। 2010 में पदभार ग्रहण करने के बाद वे लगातार कॉलेज में पठन-पाठन का माहौल बनाने में लगे रहे। शिक्षकों की कमी के बावजूद छात्रों की कक्षाएं बाधित नहीं हुई। कॉलेज को नैक से मूल्यांकन कराया गया। कॉलेज के माहौल को देखते हुए नैक ने कॉलेज को बी ग्रेड दिया। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने सभी लॉ कॉलेजों को स्थायी मान्यता रद कर दी है। बावजूद इसके बीसीआइ से प्रोविजनल मान्यता दिलाई गई। बीसीआइ की टीम ने कॉलेज का निरीक्षण किया और मान्यता दी। उन्होंने कहा कि जिस सत्र को मान्यता नहीं मिली है, उसके लिए लगातार प्रयास कर रहा था। लेकिन एक-दो छात्रों ने कॉलेज का माहौल खराब करने का प्रयास किया। ऐसे छात्रों पर कार्रवाई होने के बजाय उन्हें ही प्राचार्य के पद से हटा दिया गया। उन्हें यह जानकारी नहीं है कि पांच साल में अधिक होने पर प्राचार्य को हटा दिया जाता है। अगर हटाना था तो 2015 में ही मुझे हटा दिया जाता।
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प्राचार्य के पास छात्रों की नहीं गलती थी दाल
टीएनबी लॉ कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एसके पांडेय के पास किसी भी छात्र की दाल नहीं गलती थी। दबंग छात्र भी उनके पास नहीं फटकते थे। यही कारण था कि पूर्व कुलपति डॉ. राम आश्रय यादव ने उन्हें 2001 में पहली बार प्राचार्य बनाया था। जिस समय उन्हें प्राचार्य बनाया गया था, उस समय वे शिक्षक संघ भुटा के संयुक्त सचिव थे। इसके बाद 2010 में उन्हें एक बार फिर उन्हें कॉलेज का प्राचार्य बनाया गया। उनके कामकाज व कॉलेज के प्रति सक्रियता को देखते हुए आधा दर्जन कुलपतियों ने उन्हें हटाने की नहीं सोची। छात्रों की कॉलेज में एक नहीं चलने के कारण कई छात्र नेता बन गए और छात्रों को भड़काने लगे। कॉलेज में सुनवाई नहीं होने के कारण छात्र विवि जाकर कुलपति के समक्ष आंदोलन करने लगे। कभी परीक्षा की तिथि बढ़ाने, कभी परीक्षा केंद्र बदलने, एक साथ परीक्षा केंद्र बनाने, बार काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता दिलाने की मांग को लेकर छात्र 2016 से लगातार आंदोलन चला रहे हैं।
डॉ. नलिनी कांत झा के कुलपति बनने के बाद लॉ कॉलेज के छात्र कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गए। लॉ का परीक्षा कार्यक्रम जारी होने के बाद छात्रों ने पहले बार काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता दिलाने तक परीक्षा की तिथि बढ़ाने की मांग की। लेकिन विवि प्रशासन द्वारा घोषित तिथि पर ही परीक्षा लेने पर अड़ने के कारण 30 मई से शुरू हुई परीक्षा का छात्रों ने बहिष्कार करना शुरू कर दिया। परीक्षा बहिष्कार करने के साथ-साथ छात्र प्राचार्य को हटाने की भी मांग करने लगे। ऐसे में छात्रों के दबाव में आकर विवि प्रशासन का झुकना पड़ा और डॉ. एसके पांडेय को प्राचार्य के पद से हटा दिया गया।