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सूरज को बनाया अंधेरे का हथियार

भागलपुर [बलराम मिश्र] बाढ़ पीड़ित भी राहत के लिए सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहते। इसलिए

By Edited By: Published: Sun, 28 Aug 2016 03:25 AM (IST)Updated: Sun, 28 Aug 2016 03:25 AM (IST)
सूरज को बनाया अंधेरे का हथियार

भागलपुर [बलराम मिश्र]

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बाढ़ पीड़ित भी राहत के लिए सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहते। इसलिए पांच दर्जन से ज्यादा पीड़ित अपने घरों को रोशन करने के लिए 'सोलर लाइट' का इस्तेमाल कर रहे हैं। दिलदारपुर बिंद टोली में बाढ़ के पानी से भारी तबाही हुई है। इस गांव के पांच दर्जन से ज्यादा परिवार टीएमबीयू परिसर स्थित रविंद्र भवन (टील्हा कोठी) में शरण लिए हुए हैं। इनमें अधिकतर परिवार अपनी अस्थायी झोपड़ियों में रोशनी के लिए सोलर प्लेट का इस्तमाल कर रहे हैं।

प्रशासनिक व्यवस्था से आहत सोलर का किया प्रयोग

कुछ ग्रामीणों ने बताया कि बाढ़ की विभिषिका कुछ वर्षो पहले भी गांव वालों ने देखी थी। किंतु प्रशासनिक व्यवस्था किसी से भी छुपी हुई नहीं है। शिविरों में कई दिन बाद प्रशासनिक मदद लोगों को पहुंचती है। इसलिए लोग प्रशासनिक इंतजाम के भरोसे नहीं रहे और उन्होंने खुद ही सोलर से रोशनी की व्यवस्था कर ली है। हालांकि बाढ़ पीड़ितों के आने के तीन दिन बाद प्रशासन ने बिजली का इंतजाम किया है।

मोबाइल कर रहे चार्ज

बाढ़ पीड़ितों ने मोबाइल चार्ज करने के लिए सोलर का जुगाड़ कर लिया हे। सोलर प्लेट से ही लोग अपने मोबाइल की बैट्री चार्ज कर रहे हैं। ताकि दूर दराज के लोगों से उनका संपर्क बना रहे। सरकारी व्यवस्था में लोगों के लिए केवल रोशनी की व्यवस्था दी जाती है। किंतु मोबाइल चार्ज करने के लिए उन्होंने जुगाड़ अपनाया।

बिजली के भरोसे नहीं रह सकते गांव में

दिलदारपुर के सिकंदर महतो ने बतया कि वे गांव में भी एक साल से रोशनी के लिए सोलर का प्रयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि गांव में बिजली की समस्या अक्सर उत्पन्न होती है। इसके लिए उन्होंने सोलर की जानकारी ली और उसका प्रयोग शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि लगभग आधा गांव अभी सोलर उर्जा का प्रयोग कर रहा है।

लाने ले जाने में होती है आसानी

सोलर प्लेट का प्रयोग करने वाले कारेलाल महतो ने बताया कि इसे आसानी से कहीं भी ले कर जा सकते हैं। उनका कहना था कि बाढ़ का पानी घरों में आने की बात से वे पहले ही अलर्ट थे। इसलिए उन्होंने गांव से निकलते समय सोलर प्लेट को साथ रख लिया। ताकि तत्काल उन्हें अस्थायी झोपड़ियों में अंधेरे में रात ना गुजारना पड़े। इसके लिए उन्होंने धूप की रोशनी को ही अपने अंधेरे का हथियार बनाया।


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