डेढ़ सौ साल बाद जमालपुर में एक और सुरंग बनाने की तैयारी में रेलवे
जमालपुर के पहाड़ में एक और सुरंग बनाने की प्रक्रिया तेज हो गई है। वन विभाग की हरीझंडी के इंतजार में काम रुका था। विभाग ने एनओसी जारी कर दिया है। पुरानी सुरंग 1850 के आसपास बनी थी।
पटना [वेब डेस्क ]। वन विभाग से एनओसी मिलने के बाद जमालपुर पहाड़ में सुरंग बनाने की तैयारी रेलवे ने तेज कर दी है। पूर्वी बिहार की सबसे बड़ी पर्वत श्रेणी से एक और रास्ता लेने की प्रक्रिया 165 साल बाद शुरू हुई है। सुरंग बनाने की तैयारी अंतिम चरण में है। वन विभाग से एनओसी नहीं मिलने के कारण इस काम में देरी हो रही थी। जमालपुर पहाड़ में एक सुरंग तब का है जब हावड़ा-दिल्ली के बीच लूप लाइन बनायी जा रही थी।
रेलवे के इंजीनियर इस कवायद में लगे हैं कि जमालपुर पहाड़ में एक और सुरंग बनाने के साथ रेल लाइन के दोहरीकरण का काम भी पूरा कर लिया जायगा। प्रस्तावित सुरंग के 25 मीटर हटकर बनेगी। यह आकार में लगभग वैसी ही होगी। इसके बाद दोहरीकरण इस हो जाएगा। अभी एक सुरंग होने की वजह से यहां सिंगल लाइन है और इसकी वजह से ट्रेने प्रायः विलंब से चलती हैं।
1857 की क्रांति से भी पुरानी है जमालपुर की सुरंग
अभी वाली सुरंग 1857 की क्रांति से भी पुरानी है। इसका निर्माण 1850 के दशक में किया गया था। निर्माण एजेंसी इस्ट इंडिया रेल कंपनी थी और इस परियोजना के एमडी राबर्ट इस्टीफेंस थे जो रेल भाप इंजन का आविष्कार करने करने वाले जार्ज स्टीफेंस के पुत्र थे। परियोजना के इंजीनियर एफडब्ल्यू सीम्स थे ।
रेलवे के इतिहास में जमालपुर सुरंग का नाम उन चार सुरंगों के नाम में शामिल है जो सबसे पहले बनी थी।
इंजीनियरों का का कहना है कि इसकी मजबूती का परीक्षण लगातार किया जाता है और ट्रेन चलने के दौरान कंपन एवं स्टोन स्थिति के अनुसार मजबूती का आकलन किया जाता है। जिस जगह पर नया सुरंग बनना प्रस्तावित है वहां पहाड़ में दो तरह के पत्थर हैं। दोनों पत्थर की मजबूती अच्छी मानी जाती है।