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बहुत सुहाना नहीं रहा गणतंत्र का सफर

भागलपुर। पीजी सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन डॉ. क्षेमेन्द्र कुमार सिंह अपने गांव के वयोवृद्ध स्वत

By Edited By: Published: Tue, 24 Jan 2017 02:26 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jan 2017 02:26 AM (IST)
बहुत सुहाना नहीं रहा गणतंत्र का सफर
बहुत सुहाना नहीं रहा गणतंत्र का सफर

भागलपुर। पीजी सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन डॉ. क्षेमेन्द्र कुमार सिंह अपने गांव के वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी मधुकर काका का लोकतंत्र के सफर की प्रतिक्रिया को गंवई भाषा में ही साझा करते हैं- हो प्रोफेसर साहब! अंग्रेज राज यै स बढि़या रहै। यह कहने के बाद रो पड़े थे 97 वर्षीय मधुकर काका।

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दैनिक जागरण के संपादकीय विमर्श 'गणतंत्र का सफर कितना सुहाना' पर इस वाकये के उल्लेख के बाद कुछ पल के लिए डॉ. सिंह भी खो गए। डॉ. सिंह का पैतृक घर खगड़िया जिला के अतिपिछड़े गांव बेलदौर में है। बतौर अतिथि वक्ता उन्होंने खुद को ही उदाहरण बनाया और बताया कि कैसे 66 वर्ष के गणतंत्र के सफर में देश अब इंडिया और भारत में बंट गया है। इंडिया यानी शहरी आबादी और भारत यानी ग्रामीण आबादी। डॉ. सिंह कहते हैं कि देश तरक्की कर रहा है। हम चांद पर जा रहे हैं। हमारी सैन्य शक्ति और ताकतवर हुई है। शहरों का आधुनिकीकरण हो रहा है। गणतंत्र के अब तक के सफर में यह हमें गौरव देता है। पर दूसरा पहलू यह कि मानवीय मूल्यों में पाते हैं कि हम नैतिक तौर पर नीचे चले गए हैं। गणतंत्र के सफर पर विमर्श कर रहे हैं तो जरूरत है हमारे पूर्वजों के सपनों के आकलन की जिन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। तब से गांधी जी सर्व स्वीकृत नेतृत्व थे। रामराज की कल्पना और वसुधैव कुटुम्बकम् की सोच थी। हर गांव, हर व्यक्ति स्वाबलंबी बने यह लक्ष्य था। पर नया संस्करण भूमंडलीकरण का है। यह वसुधैव कुटुम्बकम की सोच के ठीक विपरीत है। इसने शिक्षा के अर्थ को बदल दिया है। शिक्षा का उद्देश्य संस्कार निर्माण नहीं बल्कि रोजगार हो गया है। रोजगारी लोग शहर में बस रहे हैं। यहां आकर हम अपनी माटी के कर्ज को भूल जाते हैं। मनुष्य पर मशीन हावी हो चुका है। हम शहरों में बसने वाले इंडियन अंग्रेज की तरह हो गए हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले भारतीय अब भी गुलाम हैं।

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भ्रष्ट लोगों की बढ़ी इज्जत

अतिथि वक्ता ने कहा कि इसी भागलपुर विश्वविद्यालय में प्रो. वीपी वर्मा विभागाध्यक्ष थे। एक लड़के की दो उपस्थिति कम थी। वह सेंटअप नहीं किया गया तो उसने अपने बदमाश मित्र को वर्मा जी के पास भेज दिया। बदमाश ने पिस्तौल तान दी। तब वर्मा जी ने कहा कि मुझे मार सकते हो पर विभागाध्यक्ष जिंदा रहेगा और जो भी मेरी जगह लेगा वह भी सेंटअप नहीं करेगा। और अब का दौर है। पैरवी करने वाले नौकरी जाने का खतरा दिखाते हैं और बिना हाजिरी बनाए भी बच्चे सेंटअप किए जाते हैं। आप सुनेंगे तो ठीक नहीं तो साइड कर दिए जाएंगे। आशय यह कि अब तक के सफर में भ्रष्ट लोगों की पूछ बढ़ी है।

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अब हर जगह मधुकर काका भी तो नहीं हैं

डॉ. सिंह ने कहा कि मधुकर काका की प्रेरणा से वापस गांव के उत्थान के लिए कुछ करने की सोच रहा हूं। पर अब मधुकर काका की पीढ़ी बची ही कितनी है? ग्रामीण भारत की बदहाली के लिए मैं और मेरे जैसे लोग ही दोषी हैं। मैं जब यहां अपना घर बड़ा कर रहा था तो दिल्ली में रह रहे बेटे ने अपनी मां से कहा यह बेकार की कसरत क्यों? जब पापा अपने बाबूजी के घर खगड़िया में नहीं रह रहे तो मैं दिल्ली से आकर भागलपुर रहूंगा यह कैसे सोच लिया। इस सोच के लिए मेरा बेटा नहीं बल्कि मैं दोषी हूं, क्योंकि उसने मुझसे ही शिक्षा ली।

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जनता को करना होगा शिक्षित

गणतंत्र के अब तक सफर में अंग्रेजियत बढ़ता जा रहा है। लोकतंत्र का अर्थ है कि जनता मालिक। नेता जी लोग ऐसा कहते भी हैं। गणतंत्र के अब तक के सफर में हर गण मान रहा है कि राजनीति गलत तरीके से पैसे कमाना का जरिया बन गई है। ऐसे में जनता को शिक्षित करना जरूरी है ताकि वह खुद को सच में मालिक समझ सके। जनता की सत्ता मजबूत होगी तो शासन पर नियंत्रण रहेगा।


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