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धरोहर के रूप में चिह्नित की गई चंडिका स्थान की मां दुर्गे की प्रतिमा

भागलपुर। कहलगांव के एकचारी से गोड्डा (झारखंड) जाने के रास्ते में सनोखर और दिग्धी के बी

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 May 2017 03:21 PM (IST)Updated: Thu, 18 May 2017 03:21 PM (IST)
धरोहर के रूप में चिह्नित की गई चंडिका स्थान की मां दुर्गे की प्रतिमा
धरोहर के रूप में चिह्नित की गई चंडिका स्थान की मां दुर्गे की प्रतिमा

भागलपुर। कहलगांव के एकचारी से गोड्डा (झारखंड) जाने के रास्ते में सनोखर और दिग्धी के बीच एक प्रसिद्ध स्थल है चंडिका स्थान। यहां से गुजरते हुए ¨हदु मतावलंबियों सिर बरबस श्रद्धा से झुक जाता है। पर बहुत कम लोगों को पता होगा कि यहां स्थापित मां दुर्गा (महिषासुर मर्दिनी) पत्थर की प्रतिमा सदियों के इतिहास को अपने में समेटे हुए है। यह प्रतिमा 10-11वीं सदी है। निदेशक पुरातत्व बिहार सरकार की खोज टीम ने इसे भागलपुर जिले के ऐतिहासिक धरोहर के रूप में चिह्नित किया है।

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इस मूर्ति की स्थापना के बाद यह स्थल चंडिका स्थान के रूप में प्रख्यात हुआ। स्थानीय लोगों ने खोज टीम को बताया कि करीब दो सौ वर्ष पहले यह मूर्ति अरार में इमली के पेड़ की कटाई के दौरान मिली थी। तब अरार में जंगल बहुत था। स्थानीय आनंद पांडेय बताते हैं कि उनके दादा जी बताते थे कि उनके परदादा के पहले से यह मूर्ति स्थापित है। किंवदंतियों के अनुसार पत्थर को काटकर एक मीटर से बड़ी बनाई गई यह मूर्ति मां दुर्गा के चंडी स्वरूप साक्षात दर्शन कराती दिखती थी। सो इसकी ख्याति फैलने लगी। मूर्ति स्थापना के बाद लोग पूजा-पाठ करने लगे और यह स्थल इलाके के बड़े धार्मिक स्थल के रूप में पहचाना जाने लगा। खोज टीम की अगुआई कर रहे पुराविद अरविंद सिन्हा रॉय बताते हैं कि कई राज्यों में ऐतिहासिक धरोहरों की खोज किया हूं, पर महिषासुर मर्दिनी स्वरूप में देवी की इतनी बड़ी पत्थर की मूर्ति उन्होंने अपने जीवनकाल में पहली बार देखी है। भागलपुर के बूढ़ानाथ मंदिर में भी देवी की ऐतिहासिक मूर्ति है, पर वह करीब 40 सेमी की ही है। चंडिका स्थान वाली मूर्ति महिषासुर मर्दिनी का अति प्रचानी स्वरूप है। मूर्ति में सिंदूर का लेप लगने से इसकी स्थिति बहुत खराब है। इसलिए इसके निर्माण के काल की वास्तविक पहचान ठीक से नहीं हो रही है, पर स्थाप्य शैली के आधार पर यह मूर्ति 10-11वीं शताब्दी की प्रतीत होती है।

बहरहाल, इस मूर्ति में आठ भुजाओं वाली देवी के सभी हाथों में अस्त्र-शस्त्र हैं। देवी शेर पर सवार हैं और शेर महिषासुर पर। कमोबेश अभी दुर्गापूजा के दौरान इसी भाव की प्रतिमाएं गढ़ी जाती हैं।

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छोटी मूर्ति और पुरानी

यहां एक छोटे पत्थर पर गढ़ी गई महिषासुर मर्दिनी की छोटी प्रतिमा भी ऐतिहासिक धरोहर के रूप में चिह्नित की गई। यह मूर्ति अरार के टीले के पास तालाब की खोदाई के दरम्यान मिली थी। इस मूर्ति में देवी को चार हाथ हैं और महिषासुर वध की मुद्रा में हैं। पुराविद अरविंद के अनुसार इसकी शैली से पता चलता है कि यह बड़ी वाली प्रतिमा से अधिक पुरानी है।

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¨हदु सभ्यता का प्रमाण हैं ये प्रतिमाएं

अरार इलाके में सदियों से ¨हदु सभ्यता फलती-फूलती रही है, चंडिका स्थान में मिली मूर्तियां इसका प्रमाण मानी जा रही हैं। इस मान्यता को और पुष्ट करता है अरार का टीला। यहां खोदाई से निकलने वाली मूर्तियां ¨हदु सभ्यता से ही जुड़ी हैं। मसलन विष्णु, शिव आदि देवताओं की भी मूर्तियां मिलती हैं। हालांकि यहां से पांच-सात किमी दूर सनोखर के टीले के पास से बुद्ध की प्रतिमाएं मिल रही हैं।


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