एक दीया को तरसता बिन मूरत का यह मंदिर
भागलपुर। तिलकमांझी चौक से नगर निगम चौक की ओर सौ मीटर आगे क्लीवलैंड स्मारक के आधुनिक
भागलपुर। तिलकमांझी चौक से नगर निगम चौक की ओर सौ मीटर आगे क्लीवलैंड स्मारक के आधुनिक तोरण द्वार के पीछे स्वामी विवेकानंद की आदमकद प्रतिमा और इस परिसर पिछले हिस्से में एक बड़ा सा मंदिर बरबस ध्यान खींच लेता है। अगस्टस क्लीवलैंड भागलपुर जिला के प्रथम कलक्टर थे। अंग्रेज अफसर के स्मारक स्थल में विवेकानंद की मूर्ति और मंदिर परस्पर विरोधाभास पैदा कर रहा था। उत्सुकता परिसर के अंदर खींच ले गई। सामने धूल-धूसरित हो चुकी विवेकानंद की मूर्ति के बाल अफ्रीकन स्टाइल में, अंदर कहीं भी क्लीवलैंड की कोई स्मृति चिह्न नहीं और सबसे पीछे बुलंदी से खड़ा मंदिर भी खाली-खाली।
यह संभवत: देश का सौ फीट ऊंचाई वाला पहला मंदिर होगा जो बाहर से शिवालय प्रतीत है, पर अंदर न कोई शिवलिंग है और न कोई मूरत। कुछ बांस रखे हुए हैं, शायद पेंटिंग के लिए। परिसर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर एक सेक्शन पुलिस व एक सेक्शन होमगार्ड का बल रहता है, पर यह मंदिर एक दीया को तरस रहा है। सवाल पूछने पर जवानों ने प्रतिप्रश्न किया जब मंदिर में मूरत ही नहीं तो दीया किसे दिखाए?
भागलपुर के इतिहास पर शोध कर रहे यहां के एसएसपी मनोज कुमार एवं उनकी पत्नी चेतना त्रिपाठी सिंह ब्रिटिश म्यूजियम में लगे इस मंदिर का चित्र दिखाती हैं। इसके मुताबिक अंग्रेज सर चार्ली डी ऑयली ने गंगा भ्रमण के दौरान इस मंदिर का चित्र सितंबर 1820 में तैयार किया था। 1786 में मंदिर तैयार होने का प्रमाण मिलता है। चेतना व मनोज बताते हैं कि 12 जनवरी 1784 को बीमार क्लीवलैंड की मृत्यु इंग्लैंड जाने के क्रम में पानी के जहाज में हो गई थी। उनके शव को 30 जनवरी को कोलकाता पोर्ट पर लाया गया और फिर पार्क स्ट्रीट में दफनाया गया। वहां क्लीवलैंड के कब्र संख्या 1484 पर इसका उल्लेख मिलता है। भागलपुर स्थित क्लीवलैंड स्मारक में मंदिर का उल्लेख गजेटियर में भी है। तब के ¨हदु जमींदारों एवं स्थानीय कर्मचारियों व क्लीवलैंड समर्थकों ने यह मंदिर उनके लिए ही मंदिर बनाया। मंदिर में कोई मूरत क्यों नहीं है, इसको लेकर अभी शोध जारी है।
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दो से एक हजार रुपये तक हुआ था चंदा
इतिहासकार सतीश कुमार त्यागी के अनुसार मंदिर निर्माण के लिए तब दो रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक चंदा हुआ था, ऐसा प्रमाण मिलता है। मंदिर निर्माण का उद्देश्य था कि क्लीवलैंड के नाम पर यहां रोज एक दीया जले। इसमें शिवलिंग स्थापित करना था या क्लीवलैंड की मूर्ति यह कहीं स्पष्ट नहीं है।
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चाटुकारिता या जन स्वीकार्यता
मंदिर दो सदी पुरानी है। इसका इतिहास तब के लोगों की 'गुलाम मनोदशा' को बयां कर रहा है कि वे किस प्रकार एक अंग्रेज अफसर को शिवतुल्य बनाने पर आमादा थे। यह चाटुकारिता का चरम था या क्लीवलैंड की जन स्वीकार्यता या कुछ और, इसपर व्यापक शोध की दरकार है। हालांकि एसएसपी मनोज कहते हैं कि भागलपुर के जनमानस के मन मस्तिष्क पर क्लीवलैंड का प्रभाव था। अंग्रेजी हुकूमत के सार में मानवीय दृष्टिकोण के वे प्रथम सूत्रधार थे। ऐसा इतिहास के किताबों से पता चलता है।
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विवेकानंद के प्रतिमा की अलग है कहानी
कुछ दशक पूर्व यहां विवेकानंद के नाम से स्कूल चलता था। स्कूल के नाम पर संचालक इसे कब्जा करना चाहता था, उसने ही गेट पर विवेकानंद की प्रतिमा बनवा दिया था। कोर्ट से केस जीतने के बाद प्रशासन ने इसे अपने कब्जे में लिया और 2011 में 17 लाख रुपये से अधिक खर्च कर स्मारक स्थल का जीर्णोद्धार कराया। इसके बाद प्रशासन का दायित्व संभवत: खत्म हो गया और इतिहासकारों की स्थिति यह कि इतिहास के दो बड़े प्रोफेसरों ने इस मंदिर की जानकारी होने से ही इनकार कर दिया।