डॉक्टरों ने जब इस इंसान के शरीर को देखा तो फटी रह गई आंखें
एक एेसा इंसान जिसके बारे में जानकर डॉक्टर भी दंग रह गए। इस इंसान की छाती में ही किडनी लीवर और आंत है।
पटना [जेएनएन]। भागलपुर के अस्पताल के डाइग्नोस्टिक विंग में में एक एेसा मरीज आया है, जिसकी छाती में किडनी, लीवर और आंत है। शरीर की इस अजीबोगरीब संरचना को देख डॉक्टर भी हैरान हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि हमने कॅरियर में इस तरह का मरीज नहीं देखा। फिलहाल मरीज सामान्य जीवन जी रहा है लेकिन मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने इसे रेयरेस्ट आफ द रेयर केस मानते हुए रिसर्च सेंटर भेजने की बात कही है।
महिषामुंडा कहलगांव के रहने वाले मो. शफीक को सर्दी-खांसी थी। आर्थिक रूप से कमजोर शफीक इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ओपीडी में पहुंचा था। लगभग एक सप्ताह तक दवा खाने के बाद भी आराम नहीं मिला तो मरीज को एक्स-रे के लिए भेजा गया। एक्स-रे में छाती की दायीं ओर काफी विषमता दिखी।
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एक्स-रे की रिपोर्ट देखने के दौरान रेडियोलॉजिस्ट डा. प्रसून कुमार की जिज्ञासा बढ़ गई। उन्होंने इस केस पर विभागाध्यक्ष डॉ. एके मुरारका और डॉ. मुकेश बिहारी से विमर्श किया। विभागाध्यक्ष भी रिपोर्ट देख चौंक गए और बिना एडवाइस मरीज का नि:शुल्क अल्ट्रासाउंड और सिटी स्कैन कर आंतरिक बनावट को जानने का प्रयास किया।
दोनों जांच में स्पष्ट हुआ कि मरीज की दायीं किडनी, आंत और लीवर छाती में हैं। इसके बाद मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डा. विनय कुमार के साथ डॉक्टरों ने मशविरा कर मरीज को किसी रिसर्च सेन्टर में रेफर करने का निर्णय लिया है।
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हालांकि मरीज को सामान्य जीवन में फिलहाल किसी तरह परेशानी नहीं है। लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि आगे परेशानी हो सकती है। हार्ट पर प्रेशर, सांस की बीमारी या इंटेसटाइन चॉक होने यानी बंद होने जैसी समस्या हो सकती है।
मामला अलग तरह का
जेएलएनएमसीएच के अधीक्षक डॉ. आरसी मंडल ने कहा कि मैंने रिसर्च बेस पर नि:शुल्क सीटी स्कैन व अन्य जांच का आदेश दिया था। यह मामला अलग किस्म का है। मंगलवार को मेडिसिन और रेडियोलॉजी विभाग के डाक्टरों के साथ मामले की समीक्षा करेंगे। ऐसे मामले में सीधे एम्स रेफर करने का प्रावधान है।
दायें फेफड़े में है सिकुड़न
रेडियोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. एके मुरारका ने कहा कि मैंने अपने कॅरियर में इस तरह का केस नहीं देखा है। मरीज अभी सामान्य जीवन जी रहा है लेकिन दायें फेफड़े में इसकी वजह से सिकुड़न है। रिसर्च सेन्टर में ऐसे केस के समाधान का प्रयास होता है।