भागलपुर दंगा कांड का मुख्य आरोपी उम्र कैद की सजा से मुक्त
भागलपुर दंगे के मुख्य आरोपी कामेश्वर यादव को निर्दोष मानते हुए पटना हाईकार्ट ने उम्रकैद की सजा से मुक्त कर दिया।
पटना [निर्भय सिंह]। पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को अपने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए भागलपुर दंगा कांड के मुख्य आरोपी कामेश्वर प्रसाद यादव को निर्दोष मानते हुए उम्र कैद की सजा से मुक्त कर दिया। इसके साथ ही अदालत ने भागलपुर की अदालत और पुलिस प्रशासन को सजायाफ्ता को तुरंत जेल से मुक्त करने का निर्णय सुनाया। वे विगत दस साल से भागलपुर की जेल में बंद थे।
न्यायाधीश अश्वनी कुमार सिंह की पीठ 49 पृष्ठ के फैसले में घटना चक्र का विस्तार से विवेचना करते हुए कहा कि अभियुक्त के खिलाफ कहीं ऐसा साक्ष्य नहीं पाया गया जिससे यह तय किया जा सके कि वह किसी तरह सें संलिप्त रहा है।
दंगा कांड के आरोपी को लेकर दो जजों में हुआ था विभेद
भागलपुर जिला न्यायालय के एडीजे नं. -7 ने सेशन ट्रायल संख्या 54/2007 में सुनवाई पूरी कर उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इस फैसले को पटना हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ में सुनवाई चली। लेकिन जजों के बीच मतांतर हो गया।
न्यायाधीश धरणीधर झा ने 3 सितंबर 2015 को आरोपी को अपराध मुक्त कर दिया था। लेकिन न्यायाधीश ए अमानुल्लाह ने न्यायाधीश झा के फैसले से इत्तफाक नहीं रखते हुए उम्र कैद की सजा को सही करार दिया। तब मुख्य न्यायाधीश ने तीसरे जज न्यायाधीश अश्वनी कुमार सिंह के विचारार्थ मामले की सुनवाई के लिए भेज दिया।
17 साल के बाद राज्य सरकार ने भागलपुर दंगा कांड को रिओपेन कराया
दंगा की घटना के चार महीने के बाद 7 फरवरी 1990 को कामेश्वर प्रसाद यादव के अभियुक्त बनाया बनाया गया था। इस बात की जानकारी भागलपुर में अभियुक्त के वकील रहे वरीय अधिवक्ता कामेश्वर प्रसाद पांडेय ने दी। उन्होने कहा कि मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने 25 मार्च 1995 को फाइनल फॉर्म स्वीकार कर लिया था।
लेकिन राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद फिर से अनुसंधान करवाया गया।
पटना हाईकोर्ट में सजायाफ्ता के वकील रहे सुबोध कुमार झा ने कहा था कि राजनीतिक कारणों से कामेश्वर यादव को अभियुक्त बना दिया गया। जबकि अभियोजन पक्ष साक्ष्य प्रस्तुत करने में विल्कुल असफल रहा। अभियुक्त को 23 सितंबर 2007 से नाहक जेल में रहना पड़ा। इसकी भरपाई राज्य सरकार को करनी चाहिए।
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इस प्रकार से रहा पूरा घटनाक्रम-
23 अक्टूबर 1989- भड़का भागलपुर दंगा दंगा कांड। जिसमें सैकड़ों हिन्दू मुस्लिम मारे गये।
7 फरवरी 1990- लगभग चार महीने के बाद अभियुक्त पर दर्ज हुई प्राथमिकी
31 मार्च 1990 - पुलिस ने फाइनल फॉर्म प्रस्तुत किया।
24 जून 2005- सीजेएम ने पुलिस द्वारा प्रस्तुत फाइनल फॉर्म को स्वीकार कर लिया।
25 जून 2006 - राज्य सरकार के आदेश से दोबारा केस खुला
30 सितंबर 2006 को पुलिस ने आरोप पत्र दायर कर दिया।
6 नवंबर 2009- अभियुक्त को निचली अदालत से उम्र कैद करी सजा
3 सितंबर 2015- हाईकोर्ट के दो जजों के बीच फैसले को लेकर मतांतर
25 मई 2015- तीसरे जज की अदालत में फैसला सुरक्षित
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