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श्रावण कृष्ण दशमी पर चले एक लाख कावरिया

भागलपुर । श्रावण कृष्ण पक्ष की दशमी पर शुक्रवार को एक लाख से अधिक कावरियों ने पवित्र उत्त

By Edited By: Published: Sat, 30 Jul 2016 03:38 AM (IST)Updated: Sat, 30 Jul 2016 03:38 AM (IST)
श्रावण कृष्ण दशमी पर चले एक लाख कावरिया

भागलपुर । श्रावण कृष्ण पक्ष की दशमी पर शुक्रवार को एक लाख से अधिक कावरियों ने पवित्र उत्तरवाहिनी गंगा का जल अपने कावरों में लेकर बाबाधाम की पदयात्रा का संकल्प लिया। इसके बाद मनोकामना ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ के जलाभिषेक के लिए पैदल प्रस्थान किया। हालाकि सरकारी अनुमानित आकड़े में हमेशा की तरह सोमवारी को छोड़ कर बाकी दिन संख्या कम दिखाने की परंपरा में शुक्रवार को भी भीड़ 77 हजार 560 बताई गई। इतना ही नहीं अपनी गिनती को परफेक्ट बनाने के चक्कर में सरकारी गणकों ने ये भी बताया है कि पुरुशों की संख्या 59 हजार 040 एवं महिलाओं की संख्या 18 हजार 520 तक बताया है। अब ये तो वे ही बता सकते हैं कि 59 हजार 39 के बाद चालीसवा पुरुश कावरिया ने किस रेखा को पार किया कि उसके बाद शुक्रवार को चलने वाले की गिनती का काम पूरा हो गया। उस कावरिया के बाद जो भी चल रहे हैं अब उनकी गिनती शनिवार के कावरियों में की जा रही है। इस गिनती की समय सीमा क्या है। जब कि कावरिया तो बिना रुके दिन रात लगातार चले जा रहे हैं।

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ठहराव स्थल के अभाव में धार्मिक परंपरा को तिलाजलि

संवाद सूत्र, सुल्तानगंज: एक दषक पूर्व तक ये परंपरा थी कि मा गंगा की महाआरती के बाद से सुबह के चार बजे तक गंगा में स्नान या कावरों का संकल्प पूजन नहीं होता था। लेकिन फिर कावरियों की लगातार बढ़ती संख्या और प्रषासन के पास उनके ठहराव स्थल का आज की तरह ही पूर्ण अभाव के बीच ये व्यवस्था दी गई कि रात के 12 बजे से 3 बजे तक पूजा संकल्प नहीं होगा। लेकिन लगातार बढ़ते भीड़ के दवाब को नहीं संभाल पाने के चक्कर में सारी धार्मिक मान्यताओं एवं परंपराओं को तिलाजलि देकर 24 घटे पूजा पाठ कराने का अलिखित फरमान जारी कर दिया गया। इसमें बाहर से आए पंडों के कमाने के लोभ ने भी सहयोग किया। उन्हें धर्म से क्या वे तो एक महीने धंधे के लिए आए हैं। आपराधिक तत्वों ने भी इस व्यवस्था को परोक्ष षह दिया। ताकि रात 11 से सुबह 3 के बीच ही तो उन्हें भी हाथ साफ करने का मौका मिलता है। अब हर कोई अपना बटुआ गायब होने की षिकायत दर्ज कराने के लफड़े में पड़ना भी तो चाहता नहीं। बस सब का काम इसी एक बहाने बन जाता है कि भीड़ को संभालना मुष्किल है। लेकिन इस का कोई तार्किक जवाब नहीं है कि जब इतनी ही भीड़ देवघर के मंदिर परिसर में सुबह 4 से रात 8 के बीच संभल जाता है तो यहा लंबे चौड़े खुले घाटों पर स्नान करने में उन्हें संभालना क्यों संभव नहीं है। लेकिन आड़े आ जाती है बात कि दिन में बटुआ साफ करना कैसे संभव होगा जिसके लिए महीनों पहले पाकेटमारों के अंतरप्रातीय गिरोहों के बीच उंची बोली लगती है। अब तो कावरिया वेष में पुरुशो को नहीं महिलाओं एवं बच्चों को उतारा जाने लगा है। बीते वशरें तक ऐसे पकड़े गए लोग कुछ घटों में पागल विक्षिप्त कह कर छोड़ दिए जाते हैं। जब कि कोई पंडित या दुकानदार अरोपी हो तो उससे कावरियों को दो चार हजार दिला कर मामला निपटा दिया जाता है।


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