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समन्वय व सहमति से ही सुलझेगा अयोध्या का मुद्दा

भागलपुर। अयोध्या मुद्दे का हल सामाजिक सहमति और परस्पर समन्वय से ही किया जा सकता है। यह लोगों की धार्मिक आस्था और संवेदना से जुड़ा मामला है। कानून की भी अपनी सीमा है। यह समय, काल और परिस्थिति के अनुरूप बदलता है। न्यायपालिका विवेक पर अतिसंवेदनशील मामलों बहुत कुछ कर नहीं सकती।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Mar 2017 02:19 AM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 02:19 AM (IST)
समन्वय व सहमति से ही सुलझेगा अयोध्या का मुद्दा
समन्वय व सहमति से ही सुलझेगा अयोध्या का मुद्दा

भागलपुर। अयोध्या मुद्दे का हल सामाजिक सहमति और परस्पर समन्वय से ही किया जा सकता है। यह लोगों की धार्मिक आस्था और संवेदना से जुड़ा मामला है। कानून की भी अपनी सीमा है। यह समय, काल और परिस्थिति के अनुरूप बदलता है। न्यायपालिका विवेक पर अतिसंवेदनशील मामलों बहुत कुछ कर नहीं सकती। सुप्रीम कोर्ट भी निर्णय दे सकता है पर निदान नहीं, सो कोर्ट ने अयोध्या मसले का हल अदालत से बाहर आपसी बातचीत के आधार पर करने का सुझाव दिया है। यही उचित है।

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'दैनिक जागरण' के संपादकीय विमर्श में उक्त बातें उभरकर सामने आई। विषय था- 'अयोध्या मसले का हल : बातचीत बेहतर या अदालती फैसला?' अतिथि वक्ता के रूप में पीजी राजनीति विज्ञान के प्रो. सीपी सिंह ने कहा कि 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि तीनों दावेदार रामलला न्यास, निर्मोही अखाड़ा एवं सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच विवादित जमीन को बराबरी के आधार पर बांट दे। पर किसी पक्ष ने इसे नहीं माना और सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दी। यह सही है कि न्यायाधीश तथ्य, सबूत के साथ स्वविवेक से भी फैसले लेते हैं। पर कानून पत्थर पर लिखा शिलालेख नहीं होता। कोई कानून शत प्रतिशत वस्तुनिष्ठ भी नहीं होता। आप देखते हैं कि जजों के बेंच में फैसले बहुमत के आधार पर होते हैं। इस मामले का दूसरा पक्ष यह भी है कि फैसले का अनुपालन सरकार को कराना है। कोई सरकार देश की 70 या 30 फीसद आबादी के विरोध में आने वाले फैसले को बलपूर्वक लागू करा सके ऐसा नहीं दिखता। सो रास्ता बातचीत की ओर ही जाता है। परिवर्तनशील न्यायिक आधार को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सही फैसला दिया है। इसके पूर्व समाचार संपादक संयम कुमार ने अतिथि वक्ता का स्वागत किया।

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वातावरण बनाएं बुद्धिजीवी

अतिथि वक्ता ने कहा कि यह मामला धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक-पुरातात्विक यथार्थ, सामाजिक चाहत से अधिक राजनीतिक है। कोई व्यक्ति आज के समय में विवाद नहीं चाहता, पर वह इस मसले का जल्द से समाधान चाहता है। समाधान होते ही यह मुद्दा खत्म हो जाएगा सो नेता ऐसा नहीं चाहेंगे। ऐसे में अवाम को जागरूक करने की जरूरत है। बुद्धिजीवियों की जवाबदेही बढ़ गई है कि वे वातावरण बनाएं। वैसे कई स्तर पर बुद्धिजीवी इस मसले के समाधान हेतु लग गए हैं। उम्मीद है कि अन्ना हजारे जैसा कोई नया जननायक सामने आएगा और अवाम इस मुद्दे के समाधान के लिए खड़ी हो जाएगी। यह प्लेटफार्म स्वयं विकसित होगा। ऐसा होने पर नेता खुद ही पीछे हो जाएंगे और वे भी समाधान के प्रयासों के साथ खड़े होने को बाध्य होंगे।

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अतिथि वक्ता ने यह भी कहा

- देश में कट्टरता घटी है। धर्म का महत्व कर्मकांड में घटा और जाति का महत्व समाज में। अब इसका महत्व सिर्फ राजनीति में नजर आता है।

- भारत विविधता वाला देश है। सभी धर्मो को बराबरी का स्थान है। इसका ख्याल रखना भारतीयता की मान है।

- धार्मिक मुद्दों को सकारात्मक प्रयोग हो तो यह राष्ट्र की शक्ति बन जाएगी।

- नेताओं का उद्देश्य और नजरिया स्थाई नहीं होता, इस मुद्दे को खींचने वाले बेनकाब होंगे


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