क्यों आते हैं जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में गजराज?
भागलपुर । बीते पांच दिनों से हाथी के आतंक में जी रहे गोराडीह एवं कहलगांव के लोगों को भले शुक्रवार को
भागलपुर । बीते पांच दिनों से हाथी के आतंक में जी रहे गोराडीह एवं कहलगांव के लोगों को भले शुक्रवार को इससे मुक्ति मिल गई, पर उन्हें इस बात की आज भी चिंता सता रही है कि आखिर जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में क्यों आते हैं गजराज?
आखिर इसके उत्पात से बचाव का उपाय क्या है। कब तक लोग झारखंड से आने वाले हाथी के उत्पात को झेलते रहेंगे।
दो वर्ष पूर्व छह लोगों की ली थी जान
बता दे कि दो वर्ष पूर्व मई 2015 में जिले के सबौर प्रखंड में भी दियारा क्षेत्र के मार्ग से एक हाथी का प्रवेश हुआ था, जिसने फतेहपुर, झुरखुरिया एवं राजपुर गांव के छह लोगों को कुचल कर मार डाला था।
खनन की वजह से जंगल पर संकट
झारखंड में खनन की वजह से दिन प्रतिदिन जंगल घटता जा रहा है। वहां रह रहे हाथी सहित अन्य जंगली जानवर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। उन्हें ठीक से उन्हें भोजन भी नहीं मिल पा रहा है। वन विभाग ने भी झारखंड में जंगल डिस्टर्व होने की बात स्वीकारी है।
हाथी को पसंद है मक्का की फसल
डीएफओ ने कहा कि हाथी को मक्का फसल पसंद है। दियारा में गंगा का पानी और मक्के की फसल सहजता से उपलब्ध हो जाता है। जिस कारण वहां से हाल के वर्षो में हाथी दियारा के रास्ते सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रवेश कर जाता है। एक सवाल के जबाव में उन्होंने कहा कि दियारा का सीमावर्ती क्षेत्र काफी बड़ा है। उसकी कहीं घेराबंदी नहीं है। वन विभाग के पास उसे रोकने का कोई व्यवस्था नहीं है। सूचना पर कर्मी उसे सुरक्षित स्थान पर पुन पहुंचा देने का काम करते हैं।