अदालत ने माना ऐसा अभियुक्त समाज के लिए संकट हो सकता
भागलपुर।एडीजे प्रथम जनार्दन त्रिपाठी ने फैसले में कहा है कि विरल से विरलतम मामला वहां बनता है जब एक
भागलपुर।एडीजे प्रथम जनार्दन त्रिपाठी ने फैसले में कहा है कि विरल से विरलतम मामला वहां बनता है जब एक दोषी समाज के सुव्यवस्थित और शांतिमय वातावरण के लिए संकट बन जाए। अपराध जघन्य या नृशंस हो सकता है किंतु यह आवश्यक नहीं कि वह विरल से विरलतम की कोटि में आ जाए। अभियुक्त समाज के लिए संकट हो सकता है और आगे भी समाज के सुव्यवस्थित और शांतिमय वातावरण के लिए संकट बना रह सकता है। अदालत ने माना है कि जिस रीति में अपराध किया गया है वह ऐसी होनी चाहिए कि उससे समाज को अत्यंत घृणा हो जाए और उससे समाज की संचयी अंतरात्मा को ठेस पहुंचती हो। जब कोई अभियुक्त अचानक प्रकोप करता है और सूक्ष्मता केसाथ इसका निष्पादन करता है तब ऐसी स्थिति में ऐसे जघन्य अपराध के लिए मृत्युदंड का आदेश दिया जाना ही उचित होगा। मृत्यु दंडादेश वहां वांछित होता है जहां आहत अबोध बच्चे और असहाय महिलाएं होती है। इस प्रकार यदि अपराध अत्यंत ही क्रूर और अमानवीय रीति से किया गया है जो नृशस राक्षसी, नारकीय, प्रतिशोधात्मक और नीचता के साथ किया गया है। और जहां अपराधी के कारण समाज की संपूर्ण नैतिकता क्षत-विक्षत हो जाए। तब ऐसी परिस्थिति में मृत्यु दंडादेश अधिनिर्णित ही किया जाना चाहिए। अदालत ने माना कि रेशमा कुमारी पंद्रह वर्ष की छात्रा थी तथा कक्षा सात में पढ़ती थी। यह भी स्पष्ट है कि वह अभियुक्त से ना तो प्यार करती थी और ना ही वह शादी करना चाहती थी। फिर भी अभियुक्त अभिषेक कुमार मात्र अपनी काम वासना की पूर्ति के लिए पहले से एक योजनाबद्ध तरीके से दो चाकू खरीद कर ले आया और घटना के समय अत्यंत क्रूरतापूर्वक और अमानवीय रीति से अपराध किया और एक असहाय बच्ची की जीवन लीला समाप्त कर दिया जो उस समय पूरे महिला समाज को भयभीत कर दिया और समाज को झंकझोर कर रख दिया। स्कूल कोचिंग जाने वाली लड़कियां भयभीत हो गई। घर से स्कूल जाना बंद कर दिया, संरक्षक भी डर गए। छात्राओं तथा महिलाओं की सुरक्षा तथा मर्यादा के लिए पूरा सरकारी एवं सामाजिक तंत्र लगा हुआ है फिर भी उनके साथ आए दिन इस तरह की घटनाएं हो रही है। इसलिए इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए अपराधियों को कठोरतम दंड दिया जाना यानी फांसी दिया जाना वह आवश्यक समझते हैं।