कागजी नियमों से सड़कों पर हारती है जिंदगी
भागलपुर । लाख प्रयास के बाद भी यातायात नियमों का पालन नहीं हो रहा है। यहां यातायात के सारे नियम कागज
भागलपुर । लाख प्रयास के बाद भी यातायात नियमों का पालन नहीं हो रहा है। यहां यातायात के सारे नियम कागजों पर ही चल रहा है। व्यवहारिक रूप से नियम सड़कों पर नहीं दिखाई देता है। इसका मुख्य कारण जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन द्वारा यातायात नियमों का व्यवहारिक रूप से पालन करवाने की दिशा में दिलचस्पी नहीं लेने की है। भागलपुर में न तो वाहनों के फिटनेस की उचित जांच होती है और न ही सड़कों पर। न ही सड़कों के किनारे कलर रिफलेक्टर ही लगाए गए हैं। कई वाहनों के बैक व हेड लाइट टूटे हुए हैं। रात में भी वाहन चालकों द्वारा पार्किंग लाइट का उपयोग नहीं किया जाता है। ठंड बढ़ने के साथ ही कोहरा छाने लगा है। घने कोहरे में फॉग लाइट जरूरी होता है। मगर, 70 फीसद वाहनों में फॉग लाइट नहीं लगे हैं। यातायात नियमों का पालन नहीं होने की वजह से आए दिन सड़क हादसे होते हैं। लोग सड़क हादसों का शिकार होते हैं। बावजूद इसके यातायात नियमों का पालन करवाने में प्रशासन की ओर से कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है और न ही यहां के लोग जागरूक हैं।
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प्रतिवर्ष 20 हजार नए वाहन होते हैं निबंधित
सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष 18 से 20 हजार नए वाहन निबंधित होते हैं। वाहनों के निबंधन की संख्या पिछले छह सालों में बढ़ी है। इस हिसाब से 15 साल पुराने निबंधित वाहनों को मिलाकर जिले में तीन लाख से अधिक वाहन हैं। दोपहिया, चारपहिया, तीनपहिया के साथ-साथ बस, ट्रक व टैक्सी-मैक्सी की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। आधुनिक तकनीक के इस दौर में साइकिल भी काफी कम नजर आता है। यद्यपि ऑटो की संख्या में वृद्धि का रिक्शा पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ा है। शहर में बेलगाम दौड़ रही जुगाड़ गाड़ी की सूची नगर निगम या जिला परिवहन विभाग के पास नहीं है। वहीं आधुनिक तकनीक के दौर में टमटम की संख्या में काफी कमी आई है। अब इक्के-दुक्के दिखाई देता है।
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सड़कों का नहीं हुआ विकास
वाहनों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। उस अनुपात में सड़कों का विकास नहीं हो रहा है। सड़कों चौड़ा नहीं किया गया है। वाहनों दबाव को झेलने में सड़कें सक्षम नहीं है। सड़कों की यह स्थिति तब है जब सरकार को प्रतिवर्ष राजस्व के रूप में 16 से 17 करोड़ रुपये की आय वाहनों के निबंधन, टैक्स व जुर्माने से हो रही है। रही सही कसर अतिक्रमण और अव्यवस्थित यातायात व्यवस्था ने पूरी कर दी है। खराब सड़कें व अव्यवस्थित यातायात की वजह से आए दिन सड़क हादसों के लोग शिकार हो रहे हैं।
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मार्गो के सभी रिफ्लेक्टर्स खराब
कोहरा में सुरक्षित यातायात के लिए सड़कों पर कलर लाइट रिफ्लेक्टर्स आवश्यक है। छह साल पूर्व सड़कों पर कलर लाइट रिफ्लेक्टर्स लगाए गए थे। लेकिन पांच-छह महीने में ही सभी रिफ्लेक्टर्स खराब हो गए। हालांकि शहर के बीचोबीच गुजरने वाली राष्ट्रीय उच्च पथ व दक्षिणी क्षेत्र में गुजरने वाली राज्य राजमार्ग के किनारे कुछ जगहों पर पेड़ों में कलर रिफ्लेक्टर्स लगाए हैं।
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कैसे होती है वाहनों की जांच
डीजल मशीन से सिर्फ डीजल गाड़ियों का फिटनेस टेस्ट होता है। जबकि पेट्रोल मशीन से पेट्रोल व गैस चालित वाहनों की जांच होती है। इंजन, लाइट सिस्टम, फॉग लाइट, हेड लाइट, पार्किंग लाइट, कलर रिफ्लेक्टर, ब्रेक सिस्टम, व्हील एलॉयमेंट, सेफ्टी ग्लास, साइलेंसर, ग्लास वाइपर, बुश पिनियन, स्टेय¨रग, हॉर्न आदि की जांच की जाती है। इन सभी बिंदुओं की जांच के पर खरा उतरने पर ही फिटनेस प्रमाण पत्र देने का प्रावधान है।
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बिना ऑटोमोबाइल इंजीनियर के चल रही है जांच एजेंसियां
बाबूपुर सबौर, बाल्टीकारखाना, बिहपुर व झंडापुर के पास फिटनेस जांच के लिए एजेंसियां प्रतिनियुक्त है। इनमें अधिकांश एजेंसियों में फिटनेस टेस्ट के लिए मशीन व अन्य उपकरणों की कमी है। साथ एजेंसी में ऑटोमोबाइल या मैकेनिकल इंजीनियरों का होना जरूरी है। फिटनेस जांच के लिए वही इंजीनियर नियुक्त किए जा सकते हैं जिनके पास हल्के व भारी वाहनों का पांच सालों का कार्य अनुभव हो। इसके अभाव में एजेंसियों के संचालकों द्वारा जैसे-तैसे वाहनों के फिटनेस जांच की जाती है।
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संसाधन विहीन है एमवीआई
एमवीआई को भी फिटनेस जांच का अधिकार है। मगर, परिवहन विभाग के पास वाहनों के फिटनेस जांच के लिए सभी एजेंसियों में जरूरी उपकरण नहीं है। ऐसी स्थिति में अपने कार्य अनुभव के आधार पर फिटनेस टेस्ट निपटा दिया जाता है।
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फिटनेस जांच में मानकों का नहीं हो रहा पालन
मोटर व्हीकल एक्ट का अनुपालन कागजों पर हो रहा है। व्यवसायिक वाहनों की फिटनेस जांच के नाम पर महज खानापूर्ति कर वाहन स्वामियों को दे दिया जाता है फिटनेस प्रमाण पत्र। हालांकि एजेंसियों के संचालकों का दावा है कि वे प्रावधान की शर्तो को पूरा करते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक छह सालों के दौरान शहर के विभिन्न उत्सर्जन मनकों पर आधारित नए-नए मॉडलों के वाहनों की संख्या बढ़ी है। मगर, पुराने व खटारा व्यवसायिक वाहन भी सड़क पर घिसट रहे हैं।
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खास बातें
-गाड़ी चलाते वक्त बेल्ट नहीं बांधते कार चालक
-90 फीसद बिना हेलमेट के चलाते हैं गाड़ी
-यातायात नियमों के अनुसार दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करते चालक, जैसे-तैसे बीच से ही मोड़ देते हैं गाड़ी
-कोहरा में फॉग लाइट का उपयोग जरूरी होता है, लेकिन 80 फीसद वाहनों में नहीं लगाए गए हैं फॉग लाइट
-कई वाहनों के बैक लाइट टूटे हैं तो कइयों का हेड लाइट खराब है
-कुछ जागरूक व्यवसायिक वाहन मालिकों द्वारा ही गाड़ी की फिटनेस जांच कराई जाती है, लेकिन 90 फीसद निजी वाहनों की फिटनेस जांच कराई ही नहीं जाती है
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नहीं होता निबंधन फिर भी सड़कों पर धड़ल्ले दौड़ रही जुगाड़
सर्वोच्च न्यायालय के रोक लगाने के बावजूद शहर में दौड़ रही जुगाड़ गाड़ी के चालकों को यातायात नियमों-कानूनों की जरा भी परवाह नहीं है। एमवीआई एक्ट के दायरे में नहीं आने की वजह से जुगाड़ का निबंधन नहीं होता है। दुर्घटना के शिकार होने पर न तो जुगाड़ चालक के आश्रित को और न तो जुगाड़ के धक्के से मरने वाले राहगीर के आश्रित को ही किसी तरह का मुआवजा मिलेगा। यद्यपि जुगाड़ की चपेट में आकर मरने वाले राहगीर के आश्रित को बीमा दावा जरूर मिलेगा।
वहीं ट्रैक्टर व ट्रॉली का निबंधन होता है। गत वर्ष जिले में 4,749 ट्रैक्टरों व 2,620 ट्रोलियों का निबंधन हुआ था। इससे स्पष्ट होता है कि 45 फीसद ट्रांलियां बिना निबंधन के ही सड़कों पर दौड़ रही है। यानी 55 फीसद ट्रैक्टर स्वामियों ने ही ट्रांलियों का निबंधन नहीं कराया है। जुगाड़ व ट्रैक्टर से ग्रामीण इलाकों व राज्य राजमार्ग पर अधिक दुर्घटनाएं होती है।
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ये है डेंजर जोन
-भागलपुर-अमरपुर स्टेट हाइवे पर गौराचौकी-कजरैली मार्ग
-चंपा पुल-दोगच्छी के बीच एनएच-80 पर सड़क हादसे होते हैं।
-नाथनगर-परबत्ती के बीच भी एनएच-80 पर सड़क हादसे में पिछले दो सालों तकरीबन एक दर्जन लोगों की हो चुकी है मौत, कई लोग घायल हुए हैं।
-गुड़हट्टा-जगदीशपुर के बीच सड़क हादसे में स्टेट हाइवे पर पिछले दो सालों तकरीबन दो दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है। 30-35 लोग घायल हुए हैं।
-विक्रमशिला सेतु व सेतु पहुंच पथ पर सड़क हादसे में पिछले दो सालों में 27-28 लोगों की मौत हो चुकी है। जिनमें 15 लोगों की मौत गत वर्ष हुई है। 50 से अधिक लोग हुए हैं घायल।