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भाजपा व कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्र]। पूर्व बिहार हॉट सीट भागलपुर। भारतीय जनता पार्टी का गढ़ मानी जाने वाली विध

By Edited By: Published: Fri, 09 Oct 2015 01:16 AM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2015 01:16 AM (IST)
भाजपा व कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर

भागलपुर [शंकर दयाल मिश्र]। पूर्व बिहार हॉट सीट भागलपुर। भारतीय जनता पार्टी का गढ़ मानी जाने वाली विधानसभा सीट। एक वर्ष पहले उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के इस अभेद्य दुर्ग को ध्वस्त कर किला फतेह कर लिया। इस दफे भाजपा अपने इस परंपरागत दुर्ग को फिर से वापस पाने के लिए पूरी ताकत झोंक चुकी है तो कांग्रेस अपने पास बचाए रखने के लिए। खासकर भाजपा की ओर से संघ-संगठन के छोटे-बड़े नेता जमीनी स्तर पर प्रयास करते दिख रहे हैं। एनडीए की ओर से भाजपा ने यहां से 19 वर्षो तक विधायक रहे अश्रि्वनी चौबे के पुत्र अर्जित शाश्वत को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि महागठबंधन की ओर से विधायक अजीत शर्मा फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। कांग्रेसी खेमा प्रत्याशी की शक्ति, गठबंधन की ताकत और भाजपा के बागियों के भरोसे खुश है। भाजपा के बागी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे विजय साह कितना प्रभाव डाल पाते हैं यह तो चुनाव बाद पता चलेगा। इधर, भाजपा खेमा को अपने कैडर और कार्यकर्ताओं के दम पर पूरा भरोसा है। यहां एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ी टक्कर की स्थिति बन चुकी है। वैसे, मतदान के महज तीन दिन शेष बचे हैं वोटर भी अपने-अपने तर्को के साथ किनारा पकड़ने लगे हैं।

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दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर

गढ़ वापस पाने और बचाने के लिए दोनों दलों और गठबंधनों के दिग्गजों ने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी है। भाजपा के कई बड़े व नामचीन नेता जमीनी स्तर पर काम करते दिख रहे हैं। पर, दूसरा सच यह भी कि इस सीट के लिए भाजपा की एकमात्र सभा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित साह ने की। शेष अन्य नामी नेता जमीनी संपर्क में लगे रहते हैं या कार्यकर्ताओं से बात कर यहां प्रेस कांफ्रेंस करते हैं और फिर आसपास के सीटों पर जनसभा को चले जाते हैं। वैसे, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित साह की सभा के बाद यहां व्यवसायियों व कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की। कहा गया कि वे खुद यहां के बागियों कारण हुए डैमेज को कंट्रोल के लिए आए। इसका असर भी दिखने लगा है। शुरुआती दौर में बगावत की डोर थामने वाले वार्ड पार्षद व अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन के प्रदेश महासचिव संतोष कुमार, पार्षद सदानंद मोदी आदि कहते हैं अपनी चीजों को लेकर घरों में लड़ाई होती है, पर इसका मतलब यह नहीं घर में आग लगा दें। हमने अपनी भावना राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुंचा दी है। उपचुनाव के बाद भाजपाइयों ने हार का दंश भोगा है और अब कमल मुरझाने नहीं देंगे। हालांकि, बागी उम्मीदवार विजय साह और उनके समर्थक मजबूती से डटे हुए हैं। दूसरी ओर, महागठबंधन की ओर से भी महज दो सभाएं ही की जा सकी है। एक नीतीश कुमार और दूसरी कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की। जबकि, कांग्रेस में खुद जिलाध्यक्ष सहित एक बड़ा धड़ा प्रत्याशी के चुनाव प्रचार से दूरी बनाए था, पर एक दिन पहले जिलाध्यक्ष ने चुनाव कार्यालय आकर बगावत की चर्चा को विराम दे दिया।

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मुद्दा नहीं बन पाई स्थानीय समस्याएं

भागलपुर शहर की सड़कों पर आप निकलें और जाम में न फंसे तो इसे चमत्कार मान लें। कहां और कब जाम में फंस जाएंगे यह तो ऊपरवाला भी नहीं जानता। सड़कों की खास्ताहाल स्थिति, अनियोजित विकास, सुरक्षा, बारिश के दिनों में जलजमाव, सड़कों का नाला बन जाना जैसे कई मुद्दे हैं इस शहर में। पर, फिलहाल यह चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया। भाजपा के बागी प्रत्याशी यहां पार्टी के अंदर वंशवाद के मुद्दे को हवा दे रहे हैं। अन्य विपक्षी भी इसे ही तूल दे रहे हैं। हालांकि, बीते 6 अक्टूबर को अमित साह की सभा के बाद मिरजान के विकास साह, अंकित कुमार साह, मोनू शुक्ला आदि युवाओं ने वंशवाद के सवाल पर प्रतिप्रश्न किया वंशवाद से आम वोटर को क्या लेना देना है? उनका कहना है कि आम वोटर को नेता चाहिए, जिसके पास विकास का विजन हो और जनप्रतिनिधि सहजता से उपलब्ध हो। वैसे, यहां भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी की ओर से भविष्य के विकास का खाका भी खींचा गया और इसे वे जनता के बीच रख भी रहे हैं। कांग्रेस का विकास गीत नीतीश कुमार से जुड़ता है, जबकि भाजपा का नरेंद्र मोदी के साथ।

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गणित जात-जमात की

पूछने पर विकास की बातें भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी करें, पर अंदरूनी सेटिंग वही जात-जमात की है। दोनों अपने-अपने बेस वोटरों को समेटने में जुटे हैं। भागलपुर दंगे के बाद कांग्रेस से टूटे मुस्लिम वोटर अब फिर से अपने पुराने घर में लौट आए हैं। इसके अतिरिक्त स्वजाति वोटर व महागठबंधन के बेस वोटर कांग्रेसी रणनीतिकारों के चुनावी गणित को मजबूती देते हैं। इसी प्रकार भाजपा के रणनीतिकारों के गणित में उसके बेस वोटरों में ब्राह्माण, वैश्य, व्यवसायी, दलित-महादलित आदि शामिल हैं। जबकि शहरी क्षेत्र होने के कारण हर जाति के पढ़े-लिखे वोटरों और युवाओं को भी वे अपने गणित में शामिल किए हुए हैं।

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अपने-अपने दावे

कांग्रेस समर्थकों का कहना है कि पिछले एक वर्ष में बतौर विधायक उनके प्रत्याशी अजित शर्मा ने जिस मजबूती से शहर के विकास के लिए काम किया है वह मतदाताओं को आकर्षित करता है। प्रत्याशी के पास विकास कार्य के लिए स्पष्ट दृष्टि है। इसके अलावा सारे समीकरण पक्ष में हैं। जबकि, भाजपा समर्थकों के अनुसार उनका प्रत्याशी युवा है, शिक्षित है और मिलनसार छवि का है। समर्पित कार्यकर्ताओं और कैडरों की ताकत और प्रत्याशी की पारिवारिक स्वच्छ छवि उसकी नैया को पार निकाल देगा।

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क्यों है इस सीट की चर्चा

भाजपा की परंपरागत यह सीट तकरीबन एक दशक से पार्टी के अंदर बड़े नेताओं की गुटबाजी के कारण चर्चा में है। लगभग एक दशक पूर्व यहां पर निशिकांत दुबे (वर्तमान गोड्डा सांसद) ने पैर जमाने की कोशिश की पर तब के विधायक व वर्तमान बक्सर सांसद अश्रि्वनी चौबे से उनकी नहीं बनी और जबरदस्त टकराव की स्थिति बनी। यह दूरी आज तक है। तब गुटबाजी को थामने के लिए खुद सुशील मोदी को यहां कूदना पड़ा। 2004 संसदीय चुनाव के सुशील मोदी यहां पर पार्टी के प्रत्याशी बने और जीते। 2005 नवंबर के बिहार चुनाव के बाद वे उपमुख्यमंत्री बने। उनके जाने के बाद यहां पर शाहनवाज हुसैन भाजपा के लोकसभा के प्रत्याशी बने और जीते। इसके बाद चौबे और शाहनवाज दोनों की गुटबाजी जगजाहिर है। यह स्थिति बरकरार थी। भाजपा के बागी उम्मीदवार के नामांकन से हाल तक की गतिविधियों में यह दिख रहा है। हालांकि, अभी बड़े नेताओं के कड़े दखल के बाद ये दोनों नेता दोनों एक जगह दिखने लगे हैं। अब चर्चा यह कि दोनों मिले तो हैं पर दिल कितना मिला यह चुनाव परिणाम के बाद पता चलेगा।

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पिछले विजेता का नाम- अजित शर्मा, कांग्रेस, 63753

उपविजेता- नभय चौधरी, भाजपा- 46524

हार का अंतर- 17229


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