फिर अपने बसेरे में लौट आई डॉल्फिन
शंकर दयाल मिश्र, भागलपुर बरारी घाट पर स्नान करते वक्त एक बच्चा बीच गंगा की ओर उंगली दिखाते हुए चीख
शंकर दयाल मिश्र, भागलपुर
बरारी घाट पर स्नान करते वक्त एक बच्चा बीच गंगा की ओर उंगली दिखाते हुए चीख पड़ता है- पापा, पापा.. वो देखिए। पिता सहित गंगा स्नान कर रहे अधिकतर लोग नदी की ओर देखते हैं। पानी में हलचल थी, पर कुछ दिखा नहीं। बच्चा आश्चर्य व कौतूहलवश नदी की ओर लगातार देखे जा रहा है। बच्चे की उत्सुकता शांत करने के लिए पास ही पानी में खड़े आकाश वर्मा ने बताया वह डॉल्फिन थी। वैसे, 15-20 मिनट बाद एक डॉल्फिन फिर गंगा के पानी के उपर आई और स्वभावत: अगले सेकेंड पानी में पलटते हुए अंदर चली गई।
भागलपुर के डॉल्फिन अभयारण्य क्षेत्र में डॉल्फिन का दिखना कोई नई बात नहीं। पर, इसका पानी की सतह के ऊपर निकलना और पलटते हुए पानी में गोता लगा देना बच्चे-बड़े सब के लिए कौतूहल है। बरारी घाट पर नियमित गंगा स्नान करने वाले आकाश के अनुसार तकरीबन तीन माह बाद उन्होंने यहां डॉल्फिन देखा। पूरे बरसात यह नहीं दिखी।
डॉल्फिन दिवस पर डॉल्फिनों का दिख जाना भी महज संयोग ही है। डॉल्फिनों का गंगा में स्वछंद विचरण पर्यावरणविदों को उत्साहित करने वाला है। डॉल्फिन पर शोध कर चुके ज्यूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में बिहार-झारखंड के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. गोपाल शर्मा बताते हैं कि भागलपुर के बरारी घाट का गांगेय क्षेत्र डॉल्फिनों का स्थाई बसेरा समझा जाता है। यहां के सौ-डेढ़ सौ मीटर के दायरे में अक्सर डॉल्फिनें दिखती हैं। हां, बाढ़ के समय में ये पानी के बहाव के साथ किसी और इलाके में चली गई होंगी। लगता है पानी घटने पर फिर से यहां लौट आई हैं। ऐसे में अब एक बार फिर ये पर्यटकों को लुभाती नजर आएंगी। सरकारी स्तर पर हुए एक शोध के मुताबिक विश्व के अधिकतर पर्यटक डॉल्फिन को देखने के लिए भी इस इलाके में आना चाहते हैं।
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बढ़ी है डॉल्फिनों की संख्या
सुल्तानगंज से कहलगांव के 60 किमी गंगा अभ्यारण्य क्षेत्र में डॉल्फिन की संख्या 140 के करीब है। डॉ. शर्मा ने बताया कि बीते मई में उन्होंने सर्वेक्षण किया था। भागलपुर से कहलगाव की अपेक्षा सुल्तानगंज से भागलपुर का गांगेय क्षेत्र डॉल्फिनों के लिए विशेष उवर्रक मालूम हुआ। यहां गंगा नदी गहरी हैं और छोटे डॉल्फिनों की संख्या बहुत अधिक दिखी। ज्ञात हो कि बीते वर्ष तक अभ्यारण्य क्षेत्र में डॉल्फिनों की संख्या 123 बताई गई थी।
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डॉल्फिनों के लिए बना बचाव दल
डॉ. शर्मा के मुताबिक भारत में तकरीबन 25सौ डॉल्फिन हैं। इनमें से करीब 13सौ बिहार में ही हैं। भारत सरकार की ओर से संरक्षित जलीय जीव में शामिल डॉल्फिन को बचाना सभी लोगों की जवाबदेही है। कुछ डॉल्फिन कोल ढ़ाबों में फंसने या महाजाल में फंसने की वजह से मारी जाती थीं। तब इन्हें बचाने का सरकार के पास कोई उपाय नहीं था। पर, अभी उनके नेतृत्व में बचाव दल काम कर रहा है। ऐसी स्थिति आने पर बचाव दल तत्काल काम शुरू कर देता है।
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मछुआरे की नाव से पर्यटक देखेंगे डॉल्फिन
डॉ. शर्मा के मुताबिक डॉल्फिन को सबसे अधिक खतरा मछुआरों से है। मछुआरे डॉल्फिन के तेल का उपयोग अन्य मछलियां मारने में करते हैं। तीव्र गंध की वजह से डॉल्फिन मछुलियों को आकर्षित करती है। किंतु, अब सरकार ने मछुआरों को सीधे पर्यटन उद्योग से जोड़ने की योजना बनाई है। इसके तहत पर्यटकों को मछुआरों की नाव से ही गंगा में डॉल्फिन को दिखाने के लिए भेजा जाएगा। इससे मछुआरों की कमाई बढ़ेगी और स्वभाविक तौर पर वे डॉल्फिन के रक्षक बनेंगे। हां, इस योजना के जमीन पर उतरने तक मछुआरों को डॉल्फिन के शिकार से रोकना होगा।
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छुट्टियों में ही बीत गया डॉल्फिन डे
भागलपुर डॉल्फिन अभ्यारण्य क्षेत्र को लेकर यहां का सरकारी महकमा सजग और गंभीर नहीं दिखता। डॉल्फिन दिवस पर भी वन विभाग शिथिल रहा। विभाग के सक्षम अधिकारी छुट्टी पर बताए गए। डीएफओ संजय कुमार सिन्हा ने मोबाइल पर बताया कि इस मौके पर किसी प्रकार का कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया है। हां, यहां के अभ्यारण्य के प्रबंधन के लिए योजना बनाई जा रही है। डीपीआर बनाकर आगे काम किया जायेगा।