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तेघड़ा के श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेले का है ऐतिहासिक महत्व

बेगूसराय : तेघड़ा के भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेले का इतिहास गौरवमयी है।

By Edited By: Published: Wed, 24 Aug 2016 05:05 PM (IST)Updated: Wed, 24 Aug 2016 05:05 PM (IST)
तेघड़ा के श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेले का है ऐतिहासिक महत्व

बेगूसराय : तेघड़ा के भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेले का इतिहास गौरवमयी है। यह एक ऐतिहासिक मेला है। देश भर में दूसरा सबसे बड़ा मेले का आयोजन यहां किया जाता है। तेघड़ा में मेले का आयोजन प्रत्येक वर्ष धूमधाम से होता है। इसमें आसपास के क्षेत्रों से हजारों लोग यहां पहुंचते हैं।

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1927 में फैली थी भयंकर महामारी : वर्ष 1927 में तेघड़ा में प्लेग की बीमारी भयंकर महामारी के रूप ले ली थी। सैकड़ों की संख्या में लोग प्लेग से मारे गए थे। महामारी के कारण तेघड़ावासी बाजार छोड़कर गांवों जाकर बसना शुरू कर दिया। कई लोग तेघड़ा छोड़कर दूसरे शहरों एवं राज्यों में जाकर बस गए थे।

महामारी से बचने के लिए किया था यज्ञ अनुष्ठान : प्लेग की इस भयंकर महामारी से बचने के लिए लोगों ने काफी उपाय किए। बड़े-बड़े यज्ञ और अनुष्ठान किया गया। नामी वैद्यों को बुलाया गया। लेकिन फिर भी कोई निदान नहीं निकला। लोग परेशान होकर भगवान की पूजा करने लगे थे। वहीं 28 फरवरी 1928 को भारत भ्रमण के दौरान चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली तेघड़ा पहुंची। कीर्तन मंडली तेघड़ा में रात में रुकी थी। इसी दौरान तेघड़ा बाजार के प्रबुद्ध लोगों ने कीर्तन मंडली के संतों से मिलकर प्लेग से निजात पाने के उपाय पूछा था। तब मंडली के एक संत ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाने की सलाह दी थी।

1928 में पहली बार मनाया गया जन्मोत्सव : चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली की सलाह पर सर्वप्रथम 1928 में स्टेशन रोड में शिवमंदिर के समीप स्व. वंशी पोद्दार, विशेश्वर लाल, लखन साह के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। तत्पश्चात कुछ ही दिनों के बाद प्लेग से लोगों को छुटकारा मिल गया था। तब से तेघड़ावासियों की आस्था भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ गई। 1929 में स्व. सूर्यनारायण पोद्दार हाकिम, नुनु पोद्दार, हरिलाल सहित अन्य के नेतृत्व में मेन रोड़ में मुख्य मंडप में भी मनाया जाने लगा। यह सिलसिला करीब दशकों चला। 1980 में चैती दुर्गा स्थान व 1990 के दशक में प्रखंड कार्यालय परिसर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का मेला मनाया गया। धीरे-धीरे यह मेला तेघड़ा में वृहद रूप धारण करने लगा। मंडपों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ झूला, सर्कस, थिएटर, मीना बाजार आदि भी लगाया जाने लगा।


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