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आशियाने में लगी आग, अब सुलग रही जिंदगी

By Edited By: Published: Sun, 06 Apr 2014 12:37 AM (IST)Updated: Sun, 06 Apr 2014 12:37 AM (IST)
आशियाने में लगी आग, अब सुलग रही जिंदगी

-जनप्रतिनिधि मांग रहे वोट, सहायता पर बंद है मुंह

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-अजनबी को आशा भरी निगाहों से देख रहे पीड़ित

रजनेश सिन्हा, बेगूसराय

एक-एक पैसे जुटाकर बड़ी मेहनत से परिवार के लिए आशियाना बनाया था। इन आशियानों में गरीबों के छोटे-छोटे सपने पल रहे थे। अचानक मेहनतकश मजदूरों के आशियाने के साथ-साथ कई गांवों को आग की नजर लग गई। घर-बासन चलाने के लिए पहले सबकुछ था। अब कुछ नहीं है। रहने एवं खाने-पीने के लाले पड़े हुए है। हलक को तर करने वाले चापाकल आग के भेंट चढ़ गए। अब चापाकल पानी देना बंद कर दिए है। बेगूसराय जिले के चार गांवों के करीब पांच सौ से उपर घर अग्निदेव के आक्रोश के भेंट चढ़ गए हैं। सिलसिला अब भी जारी है।

बसही पंचायत के भेलवा गांव में छठे दिन भी अग्नि पीड़ित खेतों में प्लास्टिक के तम्बू में छिपे बैठे हैं। किसी भी अजनबी को आते देख आशा भरी निगाहों से मुखातिब होते हैं। निरीह जनता चुनाव आचार संहिता जैसे शब्दों से बेखबर है। राजनीतिक दलों ने भी चुनावी मौसम में किसी भी प्रकार की सहायता से तौबा कर रखा है। अब पूरी आशाएं स्वयंसेवी संगठनों की सहायता के इर्दगिर्द घूमती दिखती है। इन बेकसूर निरीह अग्निपीड़ित आम जन के सामने भुखमरी, बच्चों एवं महिलाओं की सुरक्षा एवं फिर से जीवन को पटरी पर लाने की मुख्य चुनौती है।

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रिलीफ कोड के अनुसार सहायता के रूप में 42 सौ रुपये की दर से नकद, एक क्विंटल खाद्यान्न, प्लास्टिक सीट अग्निपीड़ितों को दिए गए हैं।

सुरेश कुमार, सीओ


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