साइलेज अर्थात हरे चारे का विकल्प
संजय ठाकुर, बेगूसराय :
कृषि के क्षेत्र में नित्य नये प्रयोग करने वाले कई अवार्ड से सम्मानित किसान अरुण पंडित ने साइलेज (पशुओं का आहार) बनाकर पशुपालन के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है।
जानकारी अनुसार क्षेत्रीय मक्का अनुसंधान केंद्र, कुसमहौत के वैज्ञानिक डा.रमेश के निर्देशन में साइलेज का उत्पादन कर अरुण पंडित ने पहले अपनी गायों को खिलाया। फिर इसे व्यवसायिक रूप दिया।
अरुण के अनुसार साइलेज से पशुओं की पाचन क्रिया बढ़ती है। नियमित साइलेज खिलाने से 20 प्रतिशत तक दूध का उत्पादन बढ़ सकता है। बकौल अरुण, जहां हरे चारे की कमी है, वहां के लिए साइलेज वरदान है। अरुण को 17 मार्च 2012 को पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। इफको द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया है।
ऐसे बनता है साइलेज
अरुण के अनुसार दो मीटर लंबे, दो मीटर चौड़े व चार मीटर गहरे गड्ढे में प्लास्टिक शीट लगाया जाता है। इसमें मकई, बाजरा, सुजान,नेपियर आदि के पौधे को चारा मशीन से काटकर कसकर दबाया जाता है। कटे चारे को इतना कसकर दबाया जाता है कि अंदर से हवा बाहर निकल जानी चाहिए। फिर उसे ऊपर से मिट्टी से ढंक दिया जाता है। 45 दिनों के बाद हरा चारा साइलेज बनकर तैयार हो जाता है। इसका उपयोग 12 वर्षो तक किया जा सकता है। इसमें एक विशेष प्रकार की गंध पायी जाती है, जिसके कारण पशु इसे चाव से खाते हैं। साइलेज में प्रोटीन की मात्र 35 से 40 प्रतिशत तक पायी जाती है।
कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
पूसा के कृषि वैज्ञानिक डा. अनिल कुमार 5 दिसंबर 2012 को सदर प्रखंड स्थित अरुण के गांव अझौर पहुंचे। उन्होंने साइलेज बनाने की इस विधि को देखा,परखा। कहा- यह पशुपालकों के लिए वरदान साबित हो सकता है। जबकि, कृषि वैज्ञानिक डा. रमेश कुमार ने इसे 'लक्ष्मण बूटी' की संज्ञा दी।
बोले, सदर बीएओ संजय शर्मा
'' अरुण पंडित द्वारा बनाये गये साइलेज का जायजा लेंगे। इसके बाद उन्हें उचित सुझाव दिया जायेगा। ''
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