ढूंढते रह जाओगे, सदर अस्पताल में नहीं मिलेगा पीने का पानी
बांका। आपातकालीन वार्ड में भर्ती एक महिला मरीज के परिजन संतोष कुमार हाथ में बोतल लिए पीने का पानी ढू
बांका। आपातकालीन वार्ड में भर्ती एक महिला मरीज के परिजन संतोष कुमार हाथ में बोतल लिए पीने का पानी ढूंढते हुए सामान्य वार्ड से प्रथम तल फिर वहां से बाहर निकल आते हैं। लेकिन कहीं भी उन्हें पीने के लिए पानी नहीं मिलता है। इतने में अस्पताल के बाहर खड़े एक अन्य मरीज के परिजन दायीं ओर चापानल होने का इशारा करते हैं। उन्हें वहां से पानी लेने के लिए कहते हैं। तभी वहां और भी चार-पांच महिला व पुरुष पहुंच जाते हैं। जो देखने से परेशान लग रहे थे। बातचीत में पता चला कि वे भी पीने के पानी की तलाश पिछले दो घंटे से कर रहे हैं। लेकिन उन्हें आरओ वाटर नहीं मिल रहा है। दरअसल, ये उस मरीज के परिजन थे, जिनको अस्पताल के चिकित्सक ने स्वच्छ पानी पीने की सलाह दी थी। इस वक्त दिन के 12 बजने से सूरज भी आसमान चढ़ आया था। साथ ही उमस भरी गर्मी के चलते मरीज से लेकर परिजन तक का प्यास से हलक सूख रहा था। ऐसे में हर एक लोग पानी के लिए इधर उधर भटक रहे थे। हालांकि अस्पताल में ओपीडी की ओर कुछ नल जरूर लगाए गए हैं। लेकिन वहां साफ पानी तो दूर वह जगह भी साफ सुथरा नहीं रहता है। इस कारण लोग हाथ मुंह धोने के अलावा पीने के लिए उस पानी का प्रयोग कभी नहीं करते हैं।
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गंदा पानी पर होना पड़ता निर्भर
सदर अस्पताल में मरीज हो अथवा उनके परिजन बाहर के बोतल बंद पानी पर निर्भर करने के लिए मजबूर हैं। वहीं आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का पैसा नहीं रहने पर प्यास से हलक सूख जाता है। लेकिन उन्हें स्वच्छ पानी मयस्सर नहीं हो पाता है। अस्पताल में मरीजों की परेशानी की गाथा यहीं नहीं रूकती है।
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एंबुलेंस सेवा के लिए होता है मोलभाव
एंबुलेंस सेवा के लिए भी जरूरत पड़ने पर मोल भाव करना पड़ता है। साथ ही शव वाहन नहीं रहने के चलते भी पोस्टमार्टम के बाद शव को लेकर जाना एक बड़ी समस्या बन जाती है। दरअसल, पोस्टमार्टम के बाद शव को ले जाने के लिए भाड़ा वाले वाहन भी जल्दी तैयार नहीं होते। किसी तरह तैयार होने पर मुंह मांगी रकम मांगते हैं। इस हालात में परिजनों के सामने अस्पताल से शव लेकर जाना बड़ी चुनौती बन जाती है।