नौकरी की मजबुरियां, बढ़ रही जोरू से दूरियां
जागरण प्रतिनिधि,बांका : तनहाइयों का साथ तो हमें भी डंसता है पर क्या करें अकेलेपन को गले लगाए बैठे हैं, एक तरफ नौकरी तो दूसरी ओर सजनी का साथ, पर मजबूरी है कि अलग-अलग रहकर जीए जा रहे है.. ऐसा ही दर्द शायद बांका उन दंपती को है जो नौकरी के कारण अलग-अलग जीए जा रहे रहे हैं। जिले की करीब 24 हजार महिलाएं नौकरी कर रही है। इनके पति भी किसी न किसी विभाग में कार्यरत है। अलग-अलग स्थानों पर काम करने की वजह से दोनों के बीच दूरियां बन गई है। संडे को ही दोनों मिल जाते हैं। इसका जिम्मेवार कहीं न कहीं बेहिसाब बढ़ रही मंहगाई भी है। जिसके कारण परिवार को चलाने के लिए दोनों को काम करना पड़ रहा है। सरकारी विभाग में कम्प्यूटर ऑपरेटर के रूप में काम कर रहे संदीप कुमार ने बताया कि उसकी पत्नी शिक्षिका है। उनकी शादी दो साल पहले हुई है। दोनों को अलग-अलग रहना मजबूरी बन गई है। पत्नी भी निजी संस्थान में काम करती है। वहीं कटोरिया के शुभम राज ने बताया कि क्या करें, मंहगाई इतनी है कि अकेले कमाने से गुजारा मुश्किल हो गया है। दोनों काम करते हैं तो परिवार चलता है। ऐसे में समझौता तो करना ही होगा। इसी प्रकार प्रमिला देवी बताती है कि वह शंभुगंज में रहकर नौकरी कर रही है, जबकि पति बांका में शिक्षक हैं। सप्ताह के छह दिन तो यादों ही यादों में बीत जाती है। पत्नी से दूर रह रहे पुरुष कहते हैं कि कौन पत्नी से दूर रहना चाहता है, लेकिन मंहगाई व पैसे की किल्लत को दूर करने के लिए मन को मारना पड़ता है। यह स्थिति सिर्फ इन लोगों की ही नहीं है बल्कि ऐसे 24 हजार दंपती की है जो अलग-अलग रहने को विवश हैं।
मालूम हो कि 21 लाख आबादी वाले जिले में करीब 24 हजार दंपती सिर्फ आर्थिक तंगी से निदान के लिए अलग-अलग रहकर नौकरी कर रहे हैं।
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक
फोटो नंबर - 19 बीएएन 60 जिप।
आपाधापी भरी जिन्दगी में सभी भौतिक सुख की कामना कर रहे हैं। ऐसे में सभी पैसे की ओर भाग रहे हैं। सिर्फ पति की कमाई से काम नहीं चलता। पति-पति दोनों को काम करना मजबुरी बन गई है। इस स्थिति में दोनों के बीच दूरियां।
प्रो.हरिकिशोर प्रसाद सिंह
पूर्व विभागाध्यक्ष
मनोविज्ञान
पीबीएस कॉलेज, बांका
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